हिमाचल के सीएम सुक्खू क्या इतनी आसानी से ले पाएंगे 'सत्ता का सुख'?
देश के सबसे छोटे पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो बन गई है लेकिन उसके सामने चुनौतियों का ऐसा बड़ा पहाड़ है जिससे पार पाना उतना आसान भी नहीं है. कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा-पत्र में जो वादे किये थे उसे पूरा करना तो एक अलग बात है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हिमाचल पर करीब 65 हजार करोड़ रुपये का जो कर्ज़ है उसे सरकार कैसे चुकायेगी और अपनी माली हालत को आखिर कैसे मजबूत कर पायेगी?
नए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुखू को एक साथ दो मोर्चों का सिर्फ मुकाबला ही नहीं करना है बल्कि पांच साल तक अपनी सरकार को चलाने के लिए उसका माकूल तरीका भी ढूंढना होगा. उन्हें एक तरफ पार्टी की अंदरुनी गुटबाजी से निपटना है तो वहीं ये फार्मूला भी तलाशना होगा कि प्रदेश को इतनी बुरी आर्थिक हालत से बाहर आखिर कैसे निकाला जाए. पार्टी के चुनावी वादों को पूरा करना तो अब उनकी सरकार की मजबूरी है ही लेकिन इससे सरकारी खजाने पर जो बोझ बढ़ेगा वो उसे कर्ज़ के और गहरे दलदल में फंसाने के लिये तैयार रहेगा. इसलिये कांग्रेस ने हिमाचल का जो ताज पहना है वो चौतरफा कांटों से भरा हुआ है.
पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी और प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह ने कांग्रेस आलाकामान की समझाइश पर बेशक सीएम पद के लिए अपनी दावेदारी छोड़ दी लेकिन वे अब अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए सरकार में मलाईदार पद हासिल करने के लिए अवश्य ही अड़ी रहेंगी. विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से विधायक चुने गए हैं. हालांकि दिल्ली में पार्टी सूत्रों का दावा है कि शीर्ष नेतृत्व विक्रमादित्य सिंह को राज्य सरकार में वरिष्ठ मंत्री बनाने पर सहमत हो गया है. लेकिन संगठनात्मक स्तर पर पार्टी को एकजुट बनाये रखने के अलावा कांग्रेस सरकार के लिए जमीनी स्तर पर काम करने और घोषणापत्र के वादों को पूरा करना ही सबसे बड़ी चुनौती होगी. हालांकि दो गुटों के बीच संतुलन बनाते हुए ही कांग्रेस नेतृत्व ने वीरभद्र सिंह के करीबी माने जाने वाले मुकेश अग्निहोत्री को डिप्टी सीएम बनाकर इस सियासी खटास को दूर किया है. लेकिन देखना ये होगा कि दोनों के बीच कितना बेहतर तालमेल बन पाता है और ये जोड़ी कब तक पटरी पर दौड़ती है.
एक मोटे अनुमान के मुताबिक कांग्रेस सरकार को अपनी चुनावी वादों को पूरा करने के लिए लगभग 10 हजार करोड़ रुपये सालाना खर्च करने होंगे. वैसे भी हिमाचल पर इस साल 31 मार्च, तक पर 65,000 करोड़ रुपये के कर्ज का जो बोझ है, उसे उतार पाना बच्चों का खेल भी नहीं है. दरअसल, कांग्रेस ने मुख्य रूप से वहां की जनता के साथ 10 चुनावी वादे किए थे. लेकिन इनमें भी दो वादे हैं जिन्हें राज्य सरकार की कैबिनेट की पहली बैठक में ही पास करके उसे लागू करने का वचन दिया गया था. पहला ये कि पुरानी पेंशन योजना की बहाली होगी और दूसरा कि राज्य की सभी वयस्क महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये का भत्ता दिया जायेगा. जाहिर है कि इन दोनों वादों को पूरा करते ही सरकार कर्ज़ के बोझ तले और भी बुरी तरह से दब जाएगी.
इनके अलावा कांग्रेस ने पहले साल में 1 लाख नौकरी देने का वादा किया है. राज्य में वर्तमान में 62,000 खाली पदों को भरना होगा इससे सरकार की लागत और बढ़ेगी. राज्य में वयस्क महिलाओं को 1500 रुपये देने के वादे को पूरा करने में 5,000 करोड़ रुपये सालाना खर्च होंगे. जबकि हर घर को 300 यूनिट तक फ्री बिजली देने के वादे पर एक साल में 2,500 करोड़ रुपये खर्च होंगे. कांग्रेस ने अपनी सरकार बनने पर 680 करोड़ रुपये की ‘स्टार्टअप निधि’ बनाने के साथ ही प्रदेश के सभी बुजुर्गों के लिए 4 साल में एक बार मुफ्त तीर्थ यात्रा का भी वादा किया हुआ है.
हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके कांग्रेसी मुख्यमंत्री को पूरा सहयोग देने का भरोसा दिलाया है. उन्होंने अपने ट्विट में लिखा कि, "सुखविंदर सिंह सुक्खू को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने पर बहुत-बहुत बधाई. मैं हिमाचल प्रदेश के विकास के लिए केंद्र की ओर से हर संभव सहयोग का आश्वासन देता हूं." वैसे भारतीय नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने कर्ज ली गई धनराशि का 74.11 प्रतिशत हिस्सा पिछले कर्ज (मूलधन) के पुनर्भुगतान के लिए और 25.89 प्रतिशत पूंजीगत व्यय के लिए उपयोग किया है.
राज्य विधानसभा में 2020-21 के लिए पेश की गई कैग की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, करीब 39 प्रतिशत ऋण (लगभग 25,000 करोड़ रुपये) अगले दो से पांच वर्षों में देय है. बता दें कि साल 2022-23 के बजट अनुमानों के अनुसार, कुल प्राप्तियां और नकद व्यय क्रमशः 50,300.41 करोड़ रुपये और 51,364.76 करोड़ रुपये अनुमानित हैं. हिमाचल के लिए 2022-23 में राजस्व घाटा 3,903.49 करोड़ रुपये और राजकोषीय घाटा 9,602.36 करोड़ रुपये रहने की संभावना है. लिहाजा,सीएम बने सुक्खू के लिये अगले पांच साल तक सरकार चलाना कोई खालाजी का घर नहीं है,इसीलिये पनघट की राह भी उतनी आसान नहीं दिखती.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.