हिमाचल प्रदेश में बीजेपी क्या अब अपना राजधर्म निभाएगी?
पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश की जनता ने हर पांच साल में सरकार बदलने के अपने पुराने रिवाज को दोहराते हुए बीजेपी को सत्ता से बाहर करके कांग्रेस को कुर्सी सौंप दी है. सवाल है कि क्या बीजेपी हिमाचल में अपना राजधर्म निभाएगी और कांग्रेस की सरकार को शांति से चलने देगी? हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी मुख्यालय में पार्टी कार्यकताओं को संबोधित करते हुए ये भरोसा दिलाया है कि भले ही वहां सरकार नहीं बना पाए लेकिन अपनी जिम्मेदारी पहले की तरह ही निभाते रहेंगे.
पीएम मोदी का ये ऐलान राजनीतिक पंडितों के लिए थोड़ा हैरान करने वाला है. वह इसलिये कि गैर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अब तक यही आरोप लगाते रहे हैं कि केंद्र उनके साथ सौतेला बर्ताव कर रहा है और विकास योजनाओं के लिये पर्याप्त फंड मुहैया नहीं कराता है. इस मामले में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अव्वल नंबर पर है.दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल और झारखंड के मुख्यमंत्री को भी केंद्र से अक्सर यही शिकायत रहती है.
कुछ हद तक उनकी शिकायतें जायज़ भी हैं क्योंकि राजनीतिक इतिहास बताता है कि केंद्र और राज्य में जब अलग-अलग पार्टी की सरकार होती है, तो अक्सर केंद्र की तरफ से कुछ मामलों में भेदभाव तो होता ही आया है. मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे और केंद्र में 10 साल तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार थी,तब वे भी मनमोहन सिंह सरकार पर योजनाओं को लटकाने और आवश्यक फंड न उपलब्ध कराने का आरोप लगाया करते थे.
लिहाजा, हिमाचल में बनने वाली कांग्रेस की नई सरकार के लिए मोदी के इस बयान के गहरे सियासी मायने हैं. महज 17 महीने के भीतर होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए मोदी ने ये घोषणा की है. सियासी जानकार भी मानते हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव तक केंद्र,हिमाचल को पर्याप्त सहयोग देता रहेगा, ताकि राज्य की जनता में ये गलत संदेश न जाये कि मोदी सरकार विकास से जुड़ी योजनाओं में अड़ंगा लगा रही है.
बीजेपी का मकसद भी यही रहेगा कि इस पराजय का बदला राज्य में लोकसभा की सभी सीटों पर कब्ज़ा करके लिया जाये. इसलिये कांग्रेस के नये मुख्यमंत्री के लिये एक राहत की बात तो ये है कि अप्रैल 2024 तक केंद्र की तरफ से कोई बड़ा संकट पैदा नहीं होगा और उनके पास भी काम करने के लिये भी फ्री हैंड होगा. उसके बाद की स्थिति लोकसभा के चुनावी नतीजों के आधार पर ही तय होगी.
लेकिन बीजेपी के लिए हिमाचल की हार ज्यादा खलने वाली इसलिये है कि उसके वोट प्रतिशत में महज़ एक फीसदी की कमी हुई है लेकिन पार्टी को 19 सीटों से हाथ धोते हुए सत्ता से बेदखल होना पड़ा. दरअसल,इतने कम अंतर से हिमाचल प्रदेश में कभी नतीजे नहीं आए हैं. हिमाचल में हर पांच साल में सरकार बदली है लेकिन हर बार हार-जीत के बीच 5-7 प्रतिशत का फासला होता रहा है. लेकिन इस बार हिमाचल की जनता ने कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोटों का इतना मामूली फर्क रखकर नया चुनावी इतिहास रचा है.
कांग्रेस को यहां 43.90 प्रतिशत वोट शेयर मिला है जबकि बीजेपी का 42.99 प्रतिशत रहा.लेकिन महज़ एक फीसदी वोट के साथ कांग्रेस ने राज्य की 68 में से 40 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत पा लिया .जबकि साल 2017 के चुनाव में काँग्रेस को 41.68 प्रतिशत वोट मिले थे यानी अब से सवा दो फीसदी कम लेकिन उसे महज 21 सीटें ही मिली थीं.इन सवा दो फीसदी वोटों ने ही उसे हिमाचल का ताज पहना दिया,जो आगामी लोकसभा चुनाव के लिहाज से पार्टी के लिए किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है.
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