हिमाचल की कांग्रेस सरकार आखिर क्यों बना रही है प्रदेश को दिवालिया?
लोहड़ी पर्व वाले दिन यानी 13 जनवरी को हिमाचल प्रदेश के सवा लाख से भी ज्यादा रिटायर सरकारी कर्मचारी भांगड़ा करते हुए खुशियां मना रहे थे. कारण जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ? वह इसलिये कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार ने उन्हें पुरानी पेंशन योजना लागू करने की सौगात देने का ऐलान कर दिया है.
ये हाल तब है जबकि हिमाचल करीब 75 हजार करोड़ रुपये के कर्ज में डूबा हुआ है. इसलिये सवाल ये उठ रहा है कि कांग्रेस की नई सरकार इस छोटे व पहाड़ी प्रदेश को आर्थिक कंगाली की बदहाली की तरफ और आगे क्यों ले जा रही है? सवाल उठाने वाले भी कोई और नहीं बल्कि मनमोहन सिंह सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके मोंटेक सिंह अहलूवालिया हैं जिनके मुताबिक सरकार के इस फैसले से प्रदेश दिवालिया होने की कगार पर पहुंच जाएगा.
दरअसल, हिमाचल सरकार ने अप्रैल 2004 में खत्म कर दी गई पुरानी पेंशन योजना को फिर से बहाल करने का ऐलान किया है जिसका फायदा प्रदेश के उन करीब 1 लाख 36 हजार कर्मचारियों को मिलेगा जो फिलहाल राष्ट्रीय पेंशन व्यवस्था NPS के तहत अपना अंशदान दे रहे हैं. हिमाचल से पहले छत्तीसगढ़ और राजस्थान की कांग्रेस सरकार भी अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना लागू करने का फैसला ले चुकी हैं. हालांकि पंजाब में भगवंत मान की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने भी इसी तरह के फैसले का ऐलान किया है. साथ ही अब हिमाचल ऐसा चौथा राज्य बन गया है जिसने अपने खाली हो चुके सरकारी खजाने की परवाह न करते हुए सिर्फ अपनी पार्टी के चुनावी वादे को पूरा करने को ही तरजीह दी है.
हालांकि ये हर राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है कि वह अपनी पार्टी के चुनावी एजेंडे को अमल में लाए लेकिन बहस का मुद्दा ये है कि वो जमीनी हकीकत को समझे बगैर ऐसे लुभावने फैसले आखिर लेती ही क्यों है जिसका खामियाजा भुगतने के लिए पूरे प्रदेश की जनता को मजबूर होना पड़े. जाहिर है कि जब सरकार का खजाना ही खाली होगा तो वह कारोबारियों के टैक्स में इज़ाफ़ा करके ही इस योजना के लिए पैसा जुटाएगी जिसकी सीधी मार तो आम आदमी पर ही पड़ेगी. लेकिन कोई भी सरकार इसकी ज्यादा फिक्र नहीं करती है और जब सवा साल बाद सामने लोकसभा के चुनाव दिख रहे हों तो उसका एकमात्र लक्ष्य अपनी पार्टी के सियासी एजेंडे को किसी भी तरह से पूरा करना ही होता है.
वहीं हिमाचल सरकार भी कर रही है और मुख्यमंत्री सुक्खू दावा कर रहे हैं कि इसे लागू करने के लिये हमारे पास पर्याप्त पैसा है. वे तो दलील ये भी दे रहे हैं कि उनकी सरकार इस योजना को लागू करने का बोझ अपने खर्चों में कटौती करने साथ ही आमदनी के नये तरीके ईजाद करने से भी जुटाएगी. लेकिन सरकार के तमाम दावों के बावजूद जमीनी हक़ीक़त इसके बिल्कुल उलट दिखाई देती है. वह इसलिये कि हिमाचल सरकार को सालाना जो राजस्व आय होती है उसका सबसे बड़ा यानी 77 फीसदी हिस्सा तो महज़ तीन बड़े खर्चों में ही खत्म हो जाता है. मसलन, 42 प्रतिशत वेतन पर, 21 फीसदी पेंशन और 14 फीसदी ब्याज़ का भुगतान करने में ही चुकता हो जाता है. बाकी के जो खर्चे हैं, सो अलग. शायद इसीलिये हिमाचल पर ये कहावत बिल्कुल सटीक बैठती है कि कमाई तो अठन्नी लेकिन खर्चा है रुपैया.
आपको ये जानकार भी हैरानी होगी कि हिमाचल कहने को तो बेहद छोटा राज्य है लेकिन कर्मचारियों के लिहाज से अन्य राज्यों के मुकाबले वहां उनकी संख्या बेहद ज्यादा है. इससे भी बड़ी बात ये है कि वहां लगभग 60 हजार पद खाली हैं जिन्हें भरने के साथ ही एक लाख नई नौकरियां देने का चुनावी वादा भी कांग्रेस ने किया था. जाहिर है कि मौजूदा सरकार को उसे भी पूरा करना है जो केंद्र सरकार से कर्ज मिले बगैर संभव ही नहीं है. हिमाचल में फिलहाल 1 लाख 60 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं जबकि 1.36 लाख पेंशनभोगी हैं. राज्य सरकार की योजना है कि NPS वाले इन सभी पेंशनधारियों को 2004 वाली पेंशन योजना के अधीन ले आया जाये.
इसके अलावा अगले एक साल में 60 हजार खाली पदों पर नियुक्त होने वाले और नए कर्मचारी भी इस योजना में जुड़ जायेंगे. यही नहीं, इस सरकार ने महिलाओं को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन को भी अब 1500 रुपये मासिक कर दिया है और इसके अलावा हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने के चुनावी वादे को भी लागू कर दिया है. जाहिर है कि ये तमाम फैसले सरकार को कर्ज के दलदल में फंसाते चले जायेंगे. इसीलिये मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने पुरानी पेंशन योजना लागू करने के फैसले को गलत ठहराते हुए कहा है कि ये हिमाचल को आर्थिक रुप से दिवालिया बना देगा.
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