20000 साल पुराना हिमनद हिमालय के बचाव में हो सकता है सहायक
हिमालय एक अनबुझ पहेली है. निरंतर यहां परिवर्तन होता रहता है. अब तो शायद यह और ज्यादा हो. अभी तक हिमालय उत्तर की भारतीय भूखंड के साथ उत्तर की और बढ़ रहा था. अब यह खंड फिर से दक्षिण की और चलने लगा है. ऐसे वक्त उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिला में ऊपरी काली गंगा घाटी क्षेत्र में एक अज्ञात ग्लेशियर के मार्ग बदलने की जानकारी इस क्षेत्र के संवेदनशीलता की ओर ध्यान दिलाता है.
हिमनद का अध्ययन कर रहे देहरादून में स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (डब्ल्यूआईएचजी) के वैज्ञानिकों की एक टीम ने पाया कि उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित अज्ञात हिमानी के मार्ग 20000 वर्ष पूर्व अवरुद्ध होने से दक्षिण-पूर्व की तरफ बढ़ने लगा. शोधकर्ताओं ने बताया कि ग्लेशियर ने अचानक अपना मुख्य मार्ग बदल दिया. वैज्ञानिक मनीष मेहता ने बताया कि जलवायु और विवर्तनिकी (टेक्टोनिक्स) अर्थात धरातल की रचना के परिवर्तन से ऐसा हुआ था.
सामान्य विस्फोट से सिर्फ वहीँ के मिटटी और पत्थर नहीं दरकते है. इसका असर दूर तक देखा जा सकता है. जोशीमठ से 400 किलोमीटर दूर हिमाचल के चंम्बा भी उसी प्रकार जमीन दरक रहा है. इनमें क्या संबंध है नयी खोज गढ़वाल और कुमाऊ नाजुक पहाड़ों के रचना के बारे में यह जानकारी दे सकता है. यह पूरे हिमालय के संरक्षण में सहायक हो सकता है.
टेक्टोनिक्स हिमनद के जलग्रहण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ऋषिगंगा में आई आपदा एक उदाहरण यह बताती है कि जिस चट्टान पर ग्लेशियर टिका हुआ था वह समय के साथ धीरे-धीरे कमजोर हो गया. यह अपक्षय के कारण, संधि-स्थल में पिघले हुए पानी के रिसने से दरारें पड़ने लगी. जमने व पिघलने, बर्फबारी व अधिक बोझ बढ़ने और धीरे-धीरे टेक्टोनिक बलों के काम करने से चट्टान के यांत्रिक रूप विघटित हुआ. यह अपने स्रोत से अलग हो गया. इससे साफ होता है कि हिमालय एक सक्रिय पर्वत शृंखला है और यह अत्यंत भंगुर भी है जिसके लिए टेक्टोनिक्स और जलवायु की अहम भूमिका होती है.
जोशीमठ व गढ़वाल क्षेत्र में वर्त्तमान आपदा की गम्भीरता इससे समझा जा सकता है. निरन्तर हो रहे प्राकृतिक बद्लाव के साथ यदि मानवीय गतिविधिओं से प्रभावित होगा तो पूरे इलाके में तबाही मचने में देर नहीं लगेगी. जितना मानवीय सक्रियता बढ़ेगी उतना ही हिमालय के लिए समस्या बढ़ेगी.
रिमोट सेंसिंग और एक पुराने सर्वेक्षण मानचित्र के आधार पर किए गए अध्ययन से यह अनुमान लगाया गया कि इस ग्लेशियर अचानक एक 250 मीटर ऊंची बाधा का सामना किया और दिशा परिवर्तित हो गयी. यह अध्ययन ’जियोसाइंस जर्नल’ में प्रकाशित हुआ है. डब्ल्यूआईएचजी की टीम ने पाया कि 5 किमी लंबे अज्ञात ग्लेशियर, जो कुठी यांकी घाटी (काली नदी की सहायक नदी) में करीब 4 किमी क्षेत्र में फैला है, ने अचानक अपना मुख्य मार्ग बदल लिया था. पास स्थित समजुर्कचांकी ग्लेशियर में मिल गया. यह ग्लेशियर का एक अनूठा व्यवहार है. यह ग्लेशियर के कैचमैंट में टेक्टोनिक्स की अहम भूमिका के कारण होती है. इसी कारण हिमालय में आपदाएं आती हैं.
जोशीमठ में भी मानवीय गतिविधियों के कारण विभिन्न जलमार्गों में ऐसे परिवर्तन आये है. यह क्षेत्र बहुत ही संवेदनशील है और तमाम आपदाएं छोटी मानवीय भूल से भीषण आकार ले सकता है. इससे ग्लेशियर अध्ययन के क्षेत्र में, खासतौर से ग्लेशियर-टेक्टोनिक अंतरक्रिया द्वारा गढ़ी गई भू-आकृतियों में बदलाव और उसकी उत्पति पर केंद्रित एक नए नजरिये के लिए दरवाजे खुलते हैं.
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