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एकदिवसीय कर्मकांड से आगे, भाषा और उसके निवासियों की नैतिकता और एथिक्स पर बात कौन करेगा?
हिंदी की एक लघुपत्रिका के संपादक ने एक दिन अफसोस में लिखा, "कविता विशेषांक के लिए आई अनेक कविताओं में सिर्फ वक्तव्य है, कविता नहीं है. ज्यादातर कवियों का सरोकार न समय से है और न समाज से. लोक
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