राम मंदिर मामले से हिंदुओं को मिली है तप करने कि सिद्धि, ज्ञानवापी और मथुरा पर भी कोर्ट करें अपना काम
![राम मंदिर मामले से हिंदुओं को मिली है तप करने कि सिद्धि, ज्ञानवापी और मथुरा पर भी कोर्ट करें अपना काम Hindus have learnt to wait and win in Ram Janmbhoomi, For Mathura and Kashi, court should do the work राम मंदिर मामले से हिंदुओं को मिली है तप करने कि सिद्धि, ज्ञानवापी और मथुरा पर भी कोर्ट करें अपना काम](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2024/01/22/badc69cabd62d46248b80d4d1c5dfc1d1705927869087702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=1200&height=675)
ज्ञानवापी हो या मथुरा दोनों जगहों के लिए भक्तगण कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे है. उन भवनों के अंदर जा करके ये बात मालूम पड़ेगी कि वो जगह, उनकी प्रकृति मंदिर की है. अगर कहीं शिवलिंग मिल जाए बड़ा सा तो वो जगह मंदिर ही हो सकती है. काशी में शिव लिंग मिला है. न्याय तभी हो सकता है जब सत्य का पता हो. और सत्य का पता सर्वे करने से चलेगा. इसलिए सभी लोगों ने मिलकर विश्वास पूर्वक सर्वे का सर्मथन करना चाहिए था. अयोध्या की बात की जाए तो यह मामला कोर्ट में 70 सालों तक चला है.70 सालों तक केवल तारीखें देते थे. 1992 में जो जगह हमारी थी, हाईकोर्ट से कहा गया कि यहां काम करने दो. लेकिन उन्होंने इसकी अनुमति नहीं दी. फैसला लिखवा लिया लेकिन घोषित नहीं किया. इससे हिन्दुओं का धैर्य टूट गया. वहीं काशी और मथुरा के मामले में कोर्ट देरी नहीं कर रही है. वो अपने सामने आये विषयों को निपटाते हुए आगे बढ़ रही है.
यदि प्रकृति से जगह हिंदुओं की, तो उन्हें दें
यदि काशी की वो जगह हिन्दू प्रकृति की है तो वो जगह हिन्दुओं को मिलनी चाहिए. 1991 का कानून भी यही कहता है और आज के समय में टेक्नोलॉजी के जमाने में किसी भी भवन को तोड़ने की आवश्यकता नहीं है. भवन को टेक्नोलॉजी के माध्यम से कहीं और शिफ्ट किया जा सकता है. स्पेशल वर्शिप एक्ट में यह कहा गया है कि आजादी के बाद के पूजा स्थल जैसे थे वैसे ही रहेंगे. लेकिन ये नहीं कहा गया था कि जिस जगह जो पूजा है, वो चलती रहेगी. उन्होंने ये कहा था कि जिस जगह की जो प्रकृति है वो प्रकृति बदली नहीं जायेगी. ये कोर्ट द्वारा देखा जाएगा कि उस जगह की प्रकृति क्या है. इस बात के बावजूद कि वहां नमाज पढ़ी गई की नहीं पढ़ी गई. अगर उसके अंदर शंख, चक्र, गदा या बाकी देवताओं के चिह्न या चित्र ज्ञानवापी पर पाए, जो शिव लिंग वजूखाने में मिला है, तो उस स्थान की क्या प्रकृति है ये फैसला कोर्ट द्वारा लिया जाएगा.
कोर्ट को तय करने दें मामला
ये भी एक तरह का तप ही है, तप हिन्दू समाज राम जन्मभूमि मामले में कर चुका है. राम जन्मभूमि से हिन्दू समाज को अपनी बात कहने, उसपर अड़ने, असके पक्ष में प्रमाण ढूढंने और उसके पक्ष में सही तर्क तक पहुंचने में सिद्धता प्राप्त हुई है. मणि शंकर अय्यर ने अपने एक लेख में यह लिखा है कि उन्होंने राजीव गांधी से पूछा था तब राजीव गांधी ने यह जवाब दिया था कि ताला खुलने का उनको कोर्ट के आदेश के बाद मालूम पड़ा. वो निर्णय न्यायालय का था. 1989 में जब बीजेपी ने पालमपुर में राम मंदिर का प्रस्ताव पास किया था, तब से वो राम भगवान के साथ खड़ी है. बाकी पक्षों को भी यह तय करना है कि वो कहां खड़े है. यदि सब राम भगवान के साथ होंगे तो किसी को फायदा या नुकसान नहीं होगा. पर यदि कोई राम भगवान पर अपनी आंखे तरेरता ही रहेगा तो फिर ये उनका दुर्भाग्य है. देश में अच्छे गुणों का विकास हो अब इसके लिए प्रयत्नन करेगें. समरस्ता के लिए प्रयास करेंगे, गौ सम्वर्द्धन के लिए काम करेंगे, संस्कृत के लिए काम करेंगे. हम ये नहीं कह रहे है कि हिन्दू राष्ट्र बनाओ, हम ये कह रहे है कि ये हिन्दू राष्ट्र है. और हम राष्ट्र कह रहे है, राज्य नहीं कह रहे है. संविधान में सभी धर्मो को मानने वालों को बराबर का नागरिक माना है. उनके अधिकार एक से हैं, उनको कानून की सुरक्षा प्राप्त है. और हम सभी उससे सहमत है. पर इस देश और संस्कृति की जो प्रकृति है, सारे मानव जाति के लिए उपयुक्त है. राज्य के रूप में, सरकार के रूप में ये देश हमेशा सेक्युलर रहेगा और संस्कृति के रूप में इसका स्वभाव हिन्दू का है.
सभी नागरिकों का बराबर का अधिकार
मुसलमानों को, ईसाइओं को सभी को राज्य बराबर का अधिकार देगी. सभी अपने धर्म का पालन करने में स्वतंत्र रहेंगे. मस्जिद से कोई विरोध नहीं है, गिरजाघर से कोई विरोध नहीं है, पर वहीं जिहाद से विरोध होगा. क्योंकि जिहाद का मतलब यह है कि जो मुसलमान नहीं हैै उसको जबरदस्ती मुसलमान बनाओ. ये भारत का तरीका नहीं है. जो मुसलमान है वो अपने धर्म पर रहे, जो हिन्दू है वो अपने धर्म पर रहे. दोनों एक दूसरे का आदर करें. हमारे हिन्दू होने का मतलब है सबको स्वीकार करो, सभी का आदर करो. राम मंदिर बनने के बाद इस तरह की भावनाएं बढ़ेगी तो अपने देश में संस्कृति के अनुरूप लोग जीवन जीने के लिए तैयार होंगे. कुछ बड़े लोगों ने मुसलमानों के लीडरशिप में आशराफ मुसलमानों ने ये धंधा और षडयंत्र बनाया है कि जो पसमांदा मुसलमान हैं वो अपनी गरीबी का ध्यान न करें, शिक्षा का रोजगार का ध्यान न करें. वो स्वच्छता और स्वास्थ्य का ध्यान न करें. और इसलिए लगातार एक हौवा खड़ा किया गया है कि इस्लाम खतरे में है. दंगे होते है तो जिहाद के नाम पर होते हैं. भोले-भाले मुसलमान को भड़काकर मरने और लड़ने के लिए भेज दिया जाता है, दिक्कत उधर है, इधर नहीं है. देश का आम मुसलमान भी शांति और प्रगति चाहता है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
![](https://feeds.abplive.com/onecms/images/uploaded-images/2025/02/16/5295b5c58ebc7d04f3e4ac31e045fb101739698520998702_original.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=470)
![डॉ ख्याति पुरोहित](https://feeds.abplive.com/onecms/images/author/16fa62bb77829d4f0c19a54b63b7d50e.jpg?impolicy=abp_cdn&imwidth=70)
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस
![ABP Premium](https://cdn.abplive.com/imagebank/metaverse-mid.png)