(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Opinion: दुर्घटना कभी जानबूझकर नहीं होती, हिट एंड रन के कानून में 10 साल की सजा से खत्म हो सकता है किसी का पूरा करियर
केन्द्र सरकार की तरफ से हिट एंड रन के मामले में मौजूदा मोदी सरकार की तरफ से नया कानून लाया गया है. इसके विरोध में ट्रक और डंपर ड्राइवर के विरोध की वजह को समझना पड़ेगा. पहले हिट एंड रन के मामले में लापरवाही से गाड़ी चलान के मामले में अगर किसी की मौत हो जाती थी तो भारतीय दंड संहिता (IPC) के सेक्शन 304 (A) से इस स्थिति को डील किया जाता था. सड़क दुर्घटना में मौत के ऐसे मामलों में अधिकतम सजा 2 साल की थी.
इसके अलावा, ये अपराध जमानती था. अगर किसी से एक्सीडेंट हो जाता था तो उसे पुलिस थाने से ही जमानत मिल जाती थी. उसमें कुछ जुर्माने का भी प्रावधान था. लेकिन, आईपीसी को रिप्लेस कर अब जो प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता आ रहा है, उसमें पहली स्थिति में जब किसी से एक्सीडेंट हो गया और वो मौके से नहीं भागे और पुलिस को सूचना दे दी, घायलों की मदद की और मौके पर जो कुछ करना चाहिए , वो सब आपने किया तो उस केस में एक्सीडेंट करने वाले को अगर किसी की मौत हो जाती है, उस स्थिति में अधिकतम सजा 7 साल तक की होगी.
नया कानून काफी सख्त
लेकिन, अगर मौके से आरोपी ड्राइवर एक्सीडेंट के बाद मौके से भाग जाता है, न वो मजिस्ट्रेट को बताता है और न ही कोई ऐसा कदम उठाता है जिससे पीड़ितों को मदद मिल पाए, उस स्थिति में ये सजा 10 साल तक हो सकती है. साथ ही, जुर्माने का भी प्रावधान है. इस वजह से ट्रक ड्राइवर में गुस्सा होगा और इसके खिलाफ देश में प्रदर्शन कर रहे हैं. जब रोड पर एक्सीडेंट होता है तो ये जरूरी नहीं है कि सड़क पर जो बड़ी गाड़ी है, उसी की गलती या लापरवाही की वजह से होता है. कई बार छोटी गाड़ी वालों की गलती के चलते भी एक्सीडेंट हो जाता है.
एक्सीडेंट होने से कई बार मॉब इकट्ठी हो जाती है. आरोपी ड्राइवर की मॉल लिंचिंग का डर रहता है, मौके पर मौजूद लोग उसे जान से भी मार सकते हैं. हालांकि, इस केस में किसी को 10 साल की जेल काफी लंबी सजा है. दरअसल, एक्सीडेंट वर्ड ही ऐसा हो जो जानबूझकर नहीं किया जाता है. Death by Negligent part यानी लापरवाही हुई है लेकिन किसने की है, ऐसे में 10 साल की सजा लोगों को काफी सख्त लग रही है, ड्राइवरों के विरोध प्रदर्शन का ये एक बड़ा कारण है.
10 साल की सजा काफी लंबी
हालांकि, ये बात सच है कि जब कोई भी कड़ा कानून बनता है तो उसका सोसायटी को फायदा भी होता है और उसका नुकसान भी होता है. लेकिन, दूसरी तरफ कई बार निर्दोष लोग लंबे समय के लिए सलाखों के पीछे भी चले जाते हैं. यही एक बड़ा सवाल है. दुर्घटना कभी भी जानबूझकर नहीं होती है. ऐसे केस में अगर किसी की डेथ होती है, तो 10 साल की सजा में उस आरोपी ड्राइवर का तो करियर ही खत्म हो जाएगा. कानून तो सख्त होना चाहिए, सोसाइटी में रुल ऑफ लॉ (कानून का राज) तभी प्रीवेल करता है. लेकिन, उसका सही से इस्तेमाल होना चाहिए. मुझे लगता है कि इससे जरूर फायदा होगा.
लेकिन, हिट एंड रन के नए कानून में दोनों बातें एक साथ है. पहले भी 2 साल की सजा के बावजूद एक्सीडेंट केस में सजा नहीं हो पाती थी. ऐसे में हमें ज्यादा ये प्रूव करना है कि इन्वेस्टिगेशन सही तरीके से हो. उसमें एजेंसी बढ़िया तरीके से लगे. क्योंकि जब सजा इतनी सख्त हो गई तो फिर जांच के लिए भी हमें सोचना होगा कि कुछ तरीसे से ही पूरा इन्वेस्टिगेशन हो. कभी भी जब कानून सख्त होता है तो जरूर इसका फायदा सोसाइटी को होता है.
ट्रक ड्राइवर उड़ाते हैं नियमों की धज्जियां
एक सच ये भी है कि सड़कों पर ट्रक ड्राइवर नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए नजर आते हैं. करीब-करीब 90 फीसदी ट्रकों पर पर नंबर प्लेट तक नहीं दिखती है. न ट्रक के आगे और न ही उसके पीछे. ऐसे में जब किसी ट्रक पर नंबर ही नही है, अगर आपको वो मारकर निकल गया तो आप उसका नंबर ही नहीं पता कर पाते हैं. ये जरूरी है कि ट्रकों पर चार-पांच जगह साफ-साफ नंबर दिखे.
अभी जिन गाड़ियों का बीमा होता है, उस केस में जो पीड़ितों का परिवार होता है, उसे इंश्योरेंस कंपनी उसका मुआवजा पेमेंट करती है. 99 फीसदी गाड़ियां का बीमा हुआ रहता है. उसमें पीड़ित को इंश्योरेंस से फायदा हो जाता है.
लेकिन, नए कानून के अस्तित्व में आने के बाद ड्राइवर कोर्ट से बाहर ही सैटलमेंट करने की कोशिश करेंगे. दूसरा एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि कोई न्यूनतम सज़ा नहीं तय की गई है. कोर्ट परिस्थिति के हिसाब से इसे किस तरह से लेता है, मुझे लगता है कि हर केस में ये 10 साल नहीं होगा. जहां पर जैसी स्थिति होगी, कोर्ट उस हिसाब से अपना फैसला सुनाएगा.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]