हाय रे रंगों की सियासत: मिटा दें जो भी है दिल का ग़ुबार होली में

रंगों की सियासत से तो हम पहले ही परेशान थे जब इंसानों ने अपने अपने हिसाब से प्रकृति के रंगों पर अपना अधिकार जता दिया था. कोई हरा ले भागा तो कोई लाल. किसी को नीले रंग से चिढ़ होती है तो कोई भगवा रंग को देख कर परेशान होने लगता है. ऐसे में रंग बिरंगे इंद्र धनुषी रंगों से सजा होली का त्यौहार भी निशाने पर आ गया है. होली जैसे रंगों और हर्षोल्लास के त्यौहार पर जिस प्रकार इस बार पूरे देश में माहौल बनाया गया है वह निंदनीय है.
यह पहली बार तो नहीं है कि होली जुमे को पड़ रही ही या मुस्लिम त्यौहारों पर कभी होली न पड़ी हो या मंगलवार को कभी बक़रीद न पड़ी हो. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देखा गया है कि किसी धर्म से संबंधित कोई भी त्यौहार आते ही एक अलग प्रकार का राग कुछ लोग अलापना शुरू कर देते हैं. जो त्यौहार पहले एक दूसरे को जोड़ने का काम करते थे वही अब दूरियां बढ़ाने में लगे हैं.
त्यौहारों का धार्मिक और सामाजिक पहलू
हमारे भारत में किसी भी त्यौहार को दो भाग में बांटा जा सकता है. एक है धार्मिक और दूसरा सामाजिक. धार्मिक भाग में त्यौहार की वह विशेष धार्मिक रीति रिवाज पूजा इबादत आती है जो इस त्यौहार संबंधित धर्म के लोग करते हैं. लेकिन त्यौहार का सामाजिक पहलू बहुत महत्वपूर्ण होता है जिस में इस त्यौहार से संबंधित धर्म के लोग समाज के दूसरे धर्मों के लोगों के साथ त्यौहार की खुशियां बांटते हैं.
ईद पर जब नमाज़ हो जाती है तो फिर मुसलमानों के घर हिन्दू दोस्त पड़ोसी ईद की मुबारकबाद देने पहुंचते हैं. इसी प्रकार दिवाली पर लक्ष्मी पूजा के बाद मुस्लिम दोस्त पड़ोसी अपने हिंदू देशवासियों के साथ दीवाली मनाते हैं. यही हर त्यौहार में होता आया है. मैं पूरे वर्ष होली की गुजिया का इंतज़ार करता हूं. बाज़ार से आने वाली गुजिया में वह मज़ा नहीं आता जो होली पर पड़ोसी के घर से आने वाली गुजिया मज़ा देती है.
रंगों से कैसा परहेज़
चर्म रोग से पीड़ित रोगियों और कुछ दूसरे लोगों को छोड़ कर होली पर देखें तो होली के रंगों से किसी को परहेज़ नहीं है. अगर मैं अपने परिवार की बात करूं तो हमारे यहां कभी भी होली मनाने पर रोका नहीं गया. न जाने यह किस ने उड़ा रखी है कि जहां होली का रंग पड़ा उतना हिस्सा काटा जाएगा. मैं ढूंढता रहा गया कि कहीं मुझे यह लिखा मिल जाए. उर्दू काव्य ग्रंथ तो होली पर नज़ीर अकबराबादी और मौलाना हसरत मोहानी आदि की होली पर शायरी से भरे पड़े हैं.
अभी मित्र हसन राशिद ने अपने पिता और हास्य व्यंगय के मशहूर शायर साग़र ख़य्यामी की नज़्म होली की बहारें का वीडियो गीत के रूप में डाला है जिस से पता चलता है कि होली को लेकर किसी को भी परहेज़ नहीं है. फ़ेसबुक और व्हाट्सप्प पर मैं जितने शायरों से जुड़ा हूं वह सब लगातार होली पर अपना कलाम साझा कर रहे हैं.
गंगा जमुनी संस्कृति निशाना
होली को लेकर जिस तरह का माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है उस से देश की गंगा जमुनी संस्कृति को जैसे कोई बर्बाद करना चाहता हो. हम भी उसी हवा में बहना शुरू कर देते हैं. ऐसे ऐसे बयानवीर सामने आते हैं जिन्हें आज से पहले कभी देखा न सुना गया होता है. इन्हें देख कर लगता है कि इन सब की इनके घरों में भी सुनी नहीं जाती होगी. लेकिन बाहर निकल कर ईंट से ईंट बजाने की बात ऐसे करते हैं जैसे इन्हों ने अपना ईंट का भट्ठा खोल रखा हो.
रंग अपवित्र कैसे हो सकते हैं
सवाल इस बात का है कि किसी पर रंग पड़ जाने से कोई अपवित्र कैसे हो सकता है. हम मान सकते हैं गांव देहात में अक्सर जो कीचड़ आदि में डुबाने की दोस्तों में होली होती है उस में कुछ गंदगी हो सकती है लेकिन जो रंग पाक हैं पवित्र हैं उन पर कोई बाहरी अपवित्रता नहीं छिड़की गई है तो फिर वह रंग अगर आप के कपड़ों पर गिर गया तो आप कैसे नापाक हो जाएंगे.
हां इतना हो सकता है क्योंकि आप ने हिन्दू भाईयों की तरह होली के लिए अलग से कपड़ा नहीं पहना है तो उस पर रंग गिरने से आप का वह साफ़ कपड़ा ख़राब हो जाए. आप घर जा कर नहा सकते हैं और रंग उसी दिन और अगर बहुत पक्का है तो एक दो दिन में उतर ही जाता है. मुझे लगता है कि भारत की मिली जुली संस्कृति को देखते हुए जहां हम होली के त्यौहार में शामिल हो सकते हैं वहां हमें अपने हिंदू भाइयों के साथ होली में गले मिलना चाहिए. अगर रंग भी लगता है तो लगने दें. रंगों के साथ सेल्फ़ी बहुत अच्छी आती है. मुझे नहीं लगता कि अगर आप पर रंग पड़ा है और रंग साफ़ और पाक है तो फिर उस से आप की नमाज़ में कोई ख़लल पड़ता होगा.
मस्जिदों को ढांकना ग़लत प्रवत्ति
यह बात भी समझ से परे है कि अगर मस्जिद पर रंग पड़ जाए तो क्या नुक़सान होगा? ज़्यादा से ज़्यादा अगली बरसात तक वह धुल जाएगा या फिर आप भी उस पर पानी डाल सकते हैं या सफ़ेदी कर सकते हैं. ऐसे में अब यह मस्जिदों को ढांकने का सिलसिला समझ से परे है. अगर ऐसा प्रशासन के आदेश पर हो रहा है तो इसकी कड़ी निंदा होना चाहिए क्योंकि कपड़े और तिरपाल से ढकी मस्जिदों के यह चित्र दुनिया भर में भारत की छवि को धूमिल कर रहे हैं. हां जो लोग होली के नाम पर हुड़दंग या हिंसा करें उनसे प्रशाशन को सख़्ती से निपटना चाहिए.
आज रंग है ए मां रंग है
हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारे देश में होली पर देवा शरीफ़ और हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह में रंग खेला जाता रहा है. हज़रत वारिस शाह की दरगाह देवा शरीफ़ में सो वर्ष से ऊपर हो गए होली का रंग खेलते हुए. इसी प्रकार हज़रत निज़ामुद्दीन की दरगाह पर भी फूलों से सूफ़ीयाना होली खेली जाती रही है. यह होली भारत के लोगों को एकता के रंग में रंगने की शानदार मिसाल हैं.
त्यौहारों से मिटे दूरियां
त्यौहार दूरियां मिटाने के लिए आते हैं दूरियां बढ़ाने के लिए नहीं. मुहब्बत का रंग लेकर एक क़दम आप आगे बढ़ा कर देखिए सामने वाला हो सकता है दस क़दम बढ़ा कर आप को गले लगा ले. आख़िर में अपने दो शेर के साथ सभी भारत वासियों को रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक शुभकामनाएं;
वह एक रंगे मुहब्बत जो सब को प्यारा है.
उसी का करते हैं हम एतबार होली में.
यह नफ़रतें यह अदावत हमारी दुश्मन हैं.
मिटा दें दिल का है जो भी ग़ुबार होली में.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
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