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दिल्ली नगर निगम को एक कर देने से भी कैसे होगा 'आप' का सफाया?

वैसे तो दिल्ली देश की राजधानी है लेकिन वह एक राज्य भी है जहां विधानसभा भी है और हर पांच साल बाद दिल्लीवासी अपना नुमाइंदा भी चुनते हैं.लेकिन देश के राजनीतिक नक्शे पर दिल्ली इकलौता ऐसा प्रदेश है,जिसे हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुखारबिंद से निकले एक शब्द को लेकर ये कह सकते हैं कि ये हमारे देश का एकमात्र 'दिव्यांग' प्रदेश है.

यानी दिल्ली की सत्ता पर काबिज़ होने वाली किसी भी पार्टी की सरकार अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकती और उसे केंद्र सरकार के रहमोकरम पर ही निर्भर होना होगा.वह इसलिये कि 1993 में जब दिल्ली को एक राज्य का दर्जा दिया गया था, तो वह अधूरा था क्योंकि उससे पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि का अधिकार छीनकर केंद्र ने अपने पास ही रख लिया था.यानी, संविधान के मुताबिक दिल्ली की हालत आज भी सबसे अजीबोगरीब है.इसलिये कि यह एक राज्य होने के साथ ही केंद्रशासित प्रदेश भी है क्योंकि दिल्ली में आईएएस और आईपीएस जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के लिए दूसरे प्रदेशों की तरह अपना कोई अलग काडर नहीं है.इन सेवाओं के लिए यहां से जिसका भी चयन होता उसे केंद्र शासित यानी यूटी काडर ही अलॉट किया जाता है.

केंद्र में बैठी तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव की सरकार जब संसद में दिल्ली को आधे-अधूरे राज्य का दर्जा देने के बिल को पास कर रही थी,तब उसका सबसे ज्यादा विरोध बीजेपी ने ही किया था. लेकिन तब सरकार की तरफ से तर्क ये दिया गया था कि देश की राजधानी होने के नाते ऐसे संवेदनशील मसलों पर फैसला लेने का अधिकार दिल्ली में चुनी हुई सरकार को इसलिये नहीं दिया जा सकता क्योंकि इसके बेहद खतरनाक नतीजे देखने को मिल सकते हैं.लिहाज़ा, तबसे लेकर आज तक केंद्र में कई सरकारें आईं और चली गईं लेकिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की ज़हमत न तो किसी ने उठाई और न ही कोई इस पचड़े में ही पड़ा.

लेकिन कल यानी बुधवार को लोकसभा में एक महत्वपूर्ण विधेयक पास हुआ है,जिसके सियासी मायने बहुत कुछ हो सकते हैं लेकिन वो एक आम दिल्लीवासी की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ा हुआ है. ये सिर्फ आपकी जानकारी में इजाफा करने के लिए है कि दिल्ली आज भी लंगड़ा राज्य क्यों हैं और केंद्र में आने वाली किसी भी पार्टी की सरकार इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देने से आखिर डरती क्यों हैं? सवाल आपसे ही करता हूँ कि अपने प्रदेश के किसी नगर निगम में संशोधन करने के लिए कोई विधेयक वहां की सरकार अपनी विधानसभा में लाती है या फिर लोकसभा उसे पास करती है? इसीलिये कहते हैं कि दिलवालों की दिल्ली न सिर्फ अनूठी-अनोखी है, बल्कि वो सियासत की भी नई इबारतें लिखती जाती है.

दिल्ली से जुड़े राजनीति के ऐसे ही एक नए अध्याय की बुनियाद बुधवार को हमारी संसद ने रख दी. जो उम्मीद थी,वही हुआ और लोकसभा में कल दिल्ली नगर निगम संशोधन बिल पारित हो गया. इस बिल के जरिये दिल्ली में मौजूद तीन नगर निगमों को मिलाकर एक कर दिया जाएगा.

संविधान के मुताबिक केंद्र सरकार को ऐसा विधेयक लाकर उसे संसद से पारित कराने का पूरा हक है.दिल्ली नगर निगम यानी MCD में पिछले 15 साल से बीजेपी का राज है,यानी केंद्र में मोदी सरकार आने से सात साल पहले से ही. इसलिये दिल्ली के सियासी गलियारों में एक बड़ा सवाल ये उठा है कि क्या बीजेपी दिल्ली के बाद पंजाब में बड़ी ताकत बनकर उभरी अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से घबरा गई है? क्या उसे ये डर था कि दिल्ली की तीनों निगमों पर आप का कब्ज़ा हो जाएगा और देश की राजधानी में बीजेपी की इस पराजय से एक गलत संदेश जायेगा? एक सवाल ये भी है कि तीनों निगमों का एकीकरण करने से क्या बीजेपी अपना वर्चस्व कायम रख पायेगी? ये वो सवाल हैं,जिनका जवाब निगम चुनाव होने पर दिल्ली की जनता ही देगी.

दरअसल, बीती 12 मार्च को नगर निगम चुनावों की तारीखों का ऐलान करने से ऐन पहले इसे टाल देने पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच जबरदस्त टकराव शुरु हो गया था.तब केजरीवाल ने कहा था कि पिछले 75 साल के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ होगा कि केंद्र सरकार ने किसी राज्य के चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखकर चुनाव टालने के लिए कहा है. उन्होंने ये सवाल भी उठाया कि "पिछले 8 साल से केंद्र में बीजेपी की सरकार है और अगर केंद्र को तीनों एमसीडी को एक करना था तो अभी तक क्यों नहीं किया? चुनाव की तारीख घोषित करने से एक घंटे पहले अचानक याद आया कि अब तीनों एमसीडी को एक करना है, इसलिए चुनाव टाल दिए जाएं.लोग कह रहे हैं कि तीनों एमसीडी को एक करना तो एक बहाना है, असली मकसद तो चुनाव टालना है. आम आदमी पार्टी की जबरदस्त लहर को देखते हुए बीजेपी को अपनी हार का डर सता रहा था और इसके चलते चुनाव टाल दिए गए."

लेकिन केजरीवाल के इस आरोप का जवाब देने के लिए  गृह मंत्री अमित शाह कल लोकसभा में फ्रंट फुट पर आकर दिल्ली के बीजेपी पार्षदों के हौंसले बढ़ाते हुए नज़र आये.लोकसभा में इस बिल पर बहस के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ''जो लोग ये कह रहे हैं कि बीजेपी हारने के डर से नगर निगम के चुनाव टाल रही है, वे खुद डरे हुए हैं.'' आम आदमी पार्टी की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, ''अगर आपको जीत का इतना ही भरोसा है,तो आप अभी ही चुनाव क्यों चाहते हैं. अगर आपने अच्छा काम किया है, तो छह महीने बाद भी चुनाव होने पर आप जीतेंगे. ''

हालांकि केंद्र के इस फैसले की आलोचना करते हुए आप ने इसे असंवैधानिक और लोकतंत्र की भावना से खिलवाड़ बताया लेकिन अमित शाह ने इसका भी माकूल जवाब दिया.उन्होंने कहा,"संविधान के अनुच्छेद 239 एए और 3बी के मुताबिक संसद को दिल्ली संघ राज्य या इसके किसी भाग के बारे में इससे संबंधित किसी भी विषय पर कानून बनाने का अधिकार हासिल है. यह बिल संविधान के मुताबिक है.'' लेकिन बड़ा सवाल ये है कि तीनों निगमों के एक हो जाने के बाद दिल्लीवासियों को गंदगी,गड्ढे भरी सड़कों और हर स्तर पर पनपे भ्रष्टाचार से क्या छुटकारा मिल जायेगा?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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