तमाम काबिलियत और लोकप्रियता के बावजूद भारतीय मूल के सांसद ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनने की रेस में आखिरकार पिछड़ ही गये. बेहद करीबी मुकाबले में विदेश मंत्री लिज ट्रस (Liz Truss) ने जीत हासिल की है और वे मंगलवार को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगी. हालांकि ऋषि सुनक की पराजय थोड़ी चौंकाने वाली भी है क्योंकि भारत के अलावा ब्रिटेन (Britain) की बड़ी आबादी भी उनकी जीत तय मान रही थी. अगर वह जीत जाते, तो ये एक ऐतिहासिक पल होता, जो भारत-ब्रिटेन के रिश्तों में आने वाली गरमाहट की एक नई इबारत भी लिखता, लेकिन लोकतंत्र में वोटों का गणित ही हार-जीत तय करता है. उस लिहाज से ऋषि अपनी जीत के लिए आवश्यक वोटों का जुगाड़ करने में कामयाब नहीं हो पाए.
हालांकि ब्रिटेन की राजनीति के विश्लेषक मानते हैं कि पूरे देश में ऋषि सुनक की लोकप्रियता लिज ट्रस के मुकाबले कहीं ज्यादा महसूस की जा रही थी, इसलिये उनकी पराजय को आसानी से पचा पाना लोगों को भी थोड़ा मुश्किल लग रहा है. कहा जा रहा है कि अगर ये आम चुनाव होता तो ऋषि सुनक आसानी से जीत जाते, लेकिन इसके लिए ऋषि सुनक और उनके समर्थकों को अब 2024 के आम चुनाव का इंतजार रहेगा.
आठवें व आखिरी राउंड के चुनावी मुकाबले में लिज ट्रस ने ऋषि सुनक को तकरीबन 21 हजार वोटों से हरा दिया. लिज ट्रस को 81,326 वोट और ऋषि सुनक को 60,399 वोट मिले हैं. थेरेसा मे और मार्गरेट थैचर के बाद लिज ट्रस ब्रिटेन की तीसरी महिला प्रधानमंत्री बन गई हैं. पीएम चुनाव के अंतिम चरण का मतदान शुक्रवार को खत्म हुआ था. चुनाव नतीजों से पहले आए प्री-पोल सर्वे में ऋषि सुनक को लिज ट्रस से पीछे बताया गया था.
42 साल के ऋषि सुनक हिंदू हैं और धार्मिक तौर तरीके भी अपनाते हैं. साल 2015 में संसद का पहली बार चुनाव जीतने के बाद उन्होंने गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी. ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय मूल के लोग उनकी जीत के लिए प्रार्थना कर रहे थे. उनमें से एक ऋषि के शहर साउथैंप्टन के निवासी 75 वर्षीय नरेश सोनचाटला भी थे जो ऋषि को बचपन से जानते हैं. नरेश सोनचाटला ने एक विदेशी चैनल से कहा, "मुझे लगता था ऋषि प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन वो नहीं बन पाए. मुझे लगता है इसकी वजह उनकी चमड़ी का रंग हो सकता है."
दरअसल, ब्रिटिश मीडिया से जुड़े भारतीय पत्रकारों ने अपने विश्लेषण में पाया था कि एशियाई मूल के लोगों में इस बात का डर होने की बड़ी वजह कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्यों की वह सोच थी, जो किसी अश्वेत को इस सर्वोच्च पद पर देखना नहीं चाहते थे. पार्टी के एक लाख 60 हजार से अधिक सदस्यों को अपना वोट देकर ऋषि सुनक और लिज ट्रस में से किसी एक को लीडर चुनना था. इस चुनाव नतीजे से ये साफ हो गया कि कंजर्वेटिव पार्टी फिलहाल किसी अश्वेत को प्रधानमंत्री चुनने के लिए तैयार नहीं है.
खास बात ये है कि पार्टी के 97 प्रतिशत सदस्य श्वेत यानी गोरे हैं और उनमें भी 50 प्रतिशत से अधिक पुरुष हैं. कुल सदस्यों में से 44 प्रतिशत ऐसे सदस्य हैं, जिनकी उम्र 65 साल से ज़्यादा है. लिहाजा, उनकी पहली पसंद लिज ट्रस ही थीं. बताया जाता है कि पूरे चुनाव के दौरान कंजर्वेटिव पार्टी की युवा पीढ़ी ऋषि के पक्ष में खुलकर नजर आई, लेकिन वरिष्ठ सदस्यों का झुकाव लिज ट्रस की तरफ साफ दिखाई दिया.
वरिष्ठ सदस्यों का मन टटोलने के लिए पिछले महीने बीबीसी की टीम ने जब उनसे बातचीत की थी, तो अधिकांश ने साफ कह दिया था कि वे ऋषि को पसंद जरूर करते हैं, लेकिन उनका वोट तो लिज ट्रस को ही जाएगा. विश्लेषक मानते हैं कि पार्टी में वरिष्ठ सदस्यों का पलड़ा भारी होना और उनकी पहली पसंद लिज ट्रस का बनना ही ऋषि सुनक की हार का एक बड़ा कारण बना, लेकिन कुछ विश्लेषकों का कहना है कि लिज ने प्रधानमंत्री बनने पर तुरंत टैक्स कटौती करने का जो चुनावी वादा किया था, उसने आम जनता को आकर्षित किया और पार्टी के वोटर वही हैं, जो टैक्स के बढ़ने से प्रभावित हुए थे. इसीलिये वे पहले से ही ये कह रहे थे कि लिज ट्रस के वादे आम जनता को लुभाने वाले थे, जिसके कारण पार्टी के लोगों ने उन्हें वोट दिया.
लिज ने परिवारों की मदद करने के इरादे से कॉर्पोरेशन टैक्स में एक नियोजित वृद्धि को खत्म करने का वचन दिया था. दरअसल, ऋषि सुनक ने बीते अप्रैल में देश के वित्त मंत्री की हैसियत से नेशनल इंश्योरेंस यानी राष्ट्रीय बीमा में एक नियोजित वृद्धि की थी. लिज ने वचन दिया था कि वो इस बढ़ोतरी को वापस लेंगी. यही एक वादा उनके पीएम बनने का करिश्माई हथियार बन गया.
बताते हैं कि लिज ट्रस ने अपने स्कूल के दिनों में हुए एक नाटक में मार्गरेट थैचर का किरदार निभाया था जो उस समय ब्रिटेन की मशहूर प्रधानमंत्री थीं. तब शायद वे भी नहीं जानती होंगी कि एक दिन ऐसा भी आयेगा, जब वे असली जिंदगी में भी यही किरदार निभाएंगी. मंगलवार, वही दिन है जब वे इस नये किरदार की शुरुआत करेंगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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