राहुल गांधी को मानहानि केस में सूरत कोर्ट ने गुरुवार को 2 साल की सजा सुनाई. हालांकि, कोर्ट ने सजा पर एक महीने की रोक लगाते हुए इस फैसले के खिलाफ अपील के लिए उन्हें 30 दिन की मोहलत दे दी. इसके एक दिन बाद शुक्रवार को उनकी संसद सदस्यता भी चली गई. संसद से अयोग्य करार दिया जाना कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए बड़ा झटका है. 


इसके बाद वे रिप्रजेंटेशन ऑफ द पीपुल एक्ट 1951 के तहत 8 साल तक (2 साल की सजा और 6 साल उसके बाद) चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. सबसे खास बात ये है कि इस जून में राहुल गांधी 53 साल के हो जाएंगे. अयोग्यता का मतलब है कि वे सिर्फ सांसद नहीं रह गए, बल्कि 60 साल की उम्र होने तक उन्हें पीएम का ख्वाब भी छोड़ना होगा.


अगर भारत में कोई मध्यावधि चुनाव नहीं होता है तो 2029 के बाद आम चुनाव 2034 में होगा. उस समय वे करीब 65 साल के हो चुके रहेंगे. लेकिन सिर्फ यही नहीं है. राहुल गांधी के खिलाफ बाकी केस भी अभी लंबित है, जिनमें सबसे अहम है मोदी सरकार के दौरान नेशनल हेराल्ड केस में केन्द्रीय जांच एजेंसी ईडी की तरफ से चल रही जांच.


कोर्ट का ये फैसला उस वक्त आया है जब पार्टी के सीनियर नेता लगातार पार्टी छोड़कर जा रहे हैं और 2019 के चुनाव में लगातार दूसरी बार करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है. इस चुनाव में हमने देखा कि किस तरह से अमेठी में राहुल गांधी को प्रतिद्वंद्वी स्मृति ईरानी के सामने पराजय हाथ लगी थी. हालांकि, वे सांसद इसलिए बन पाए क्योंकि उन्हें केरल के वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ने का फैसला किया था.



कुछ लोगों का ये तर्क है कि पार्टी आज जिस तरह का सामना कर रही है और राहुल को संसद से अयोग्य करार दिया, ऐसे में ये अमूमन 1977 जैसी ही स्थिति है. आपातकाल के वक्त इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा था. सीबीआई ने उन्हें अपनी कस्टडी में लिया था. पूर्व पीएम को उस वक्त इन्क्वायरी कमीशन के सामने पेश होना पड़ा था और कड़े सवाल पूछे गए. बाद में उन्होंने खुद को पीड़ित और बाद में योद्धा बताया.


इसके बाद बिहार के बेलछी गांव में नरसंहार हुआ. इंदिरा ने मौके की नजाकत को भांपा और वहां जाने का फैसला किया. सबसे पहले ट्रेन, फिर जीप और उसके बाद ट्रैक्टर पर बारिश में भींगती हुई गईं. वे पीड़ित परिरवारों के साथ मिलने में कामयाब रहीं और 1980 में शानदार तरीके से सत्ता में वापसी की.


लेकिन, आज कांग्रेस के लिए स्थिति बिल्कुल अलग है. उस वक्त इंदिरा गांधी इसलिए सत्ता में आई थी क्योंकि जनता पार्टी की खिचड़ी सरकार थी. कांग्रेस ने उस समय मोरारजी देसाई की सरकार गिरवाई और चौधरी चरण सिंह की सरकार बनवाई. इसके बाद उसे भी गिराकर चुनाव कराया. राहुल गांधी की इंदिरा वाली छवि नहीं है और बेलछी जैसे आंदोलन के लिए उन्हें चुनावी राजनीति में रहना होगा.     


इसलिए सवाल उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी को सजा क्या कांग्रेस के लिए बैड न्यूज़ है? वास्तव में देखें तो ऐसा नहीं है. अब ऐसा हो सकता है कि इस सजा और लंबित मामलों के चलते राहुल अब मोदी सरकार पर कम हमलावर हों. इसके साथ ही, ये उनके लिए एक अवसर होगा कि क्या वैकल्पिक विजन हो सकता है, जो कांग्रेस देश के लिए ऑफर कर सकती है.


राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म होने के बाद कई मायनों में पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है. बीजेपी लगातार ये कहती रही है कि उसके चुनाव जीत में राहुल बड़ा फैक्टर रहे हैं. हालांकि, ये पूरी तरह से सच नहीं है. बीजेपी को जीत इसलिए मिलती रही क्योंकि पीएम मोदी की लोकप्रियता, हिन्दुत्व-राष्ट्रवाद, कल्याणकारी योजनाएं और विपक्ष में बिखराव बड़ी वजह है. बीजेपी चुनाव को मोदी वर्सेज राहुल करने में लगी थी. 


वहीं दूसरी तरफ मोदी वर्सेज राहुल करने से 2024 में बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में कांग्रेस को सफलता नहीं मिल पा रही थी. ऐसे वक्त में जब पीएम मोदी लगातार अपना तीसरा कार्यकाल देख रहे हैं. तीसरे मोर्चे की वकालत कर रही ममता बनर्जी ने तो यहां तक कह दिया था कि पीएम मोदी के लिए राहुल सबसे बड़े टीआरपी हैं. ऐसे में अगर राहुल आक्रामक रुख नहीं अपनाते है और कांग्रेस बड़े भाई के अपने बर्ताव वाले रूख को छोड़ती है तो विपक्षी पार्टियां उनके साथ आ सकती है और तीसरे मोर्चे की जरूरत नहीं होगी.


ममता बनर्जी ने हमेशा बातचीत के लिए राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी को ही तरजीह दी है. बीआरएस नेता और पीएम के संभावित चेहरा के. चंद्रशेखर राव की बेटी कविता भी कई विपक्षी नेताओं की तरह भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही हैं. उन्होंने भी सोनिया से संपर्क साधने की कोशिशें कीं. बिहार के सीएम नीतीश कुमार, जो पीएम पद के लिए हाल के समय तक बड़े दावेदार माने जाते रहे, उनकी भी सोनिया गांधी से अच्छी बनती है. दिल्ली सीएम केजरीवाल भी कई मौके पर राहुल पर तंज कसते हैं.


हालांकि, राहुल को सजा सुनाए जाने के बाद केजरीवाल ने ट्वीट करते हुए ये कहा था कि कांग्रेस के साथ हमारे मतभेद है, लेकिन मानहानि केस में राहुल को इस तरह से फंसाना ठीक नहीं है. गैर बीजेपी नेताओं और पार्टियां को हटाने के लिए साजिश रची जा रही है.


ऐसे में कोर्ट के इस फैसले के बाद जहां एक तरफ राहुल गांधी का हस्तक्षेप पार्टी के लिए जाने वाले फैसलों में जहां कम हो सकता है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के साथ आने की संभावना है. इसके अलावा, राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के बाद कर्नाटक, केरल में विधानसभा का चुनाव होगा. हो सकता है कि इस सहानुभूति का कर्नाटक में कांग्रेस को फायदा मिले.   


केन्द्रीय एजेंसियों के खिलाफ कांग्रेस समेत 14 पार्टियां का एक साथ सुप्रीम कोर्ट का रुख करना ये बताता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस दूसरे विपक्षी दलों को अपने साथ लेकर आगे बढ़ सकती है. ऐसे में गैर बीजेपी पार्टियों का गठबंधन आने वाले समय में और प्रभावी हो सकता है.


(ये लेखक के अपने निजी विचार हैं)