बुजुर्ग समाजसेवी अन्ना हजारे क्या अब महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने में कोई अहम भूमिका निभाने वाले हैं? ये सवाल इसलिये कि लंबे अरसे से खामोशी ओढ़े अन्ना ने रविवार को अचानक अपनी चुप्पी तोड़ते हुए महाराष्ट्र सरकार को चेतावनी दी है कि वह या तो लोकायुक्त कानून बनाये या फिर सत्ता से बाहर होने की तैयारी कर ले. इसके लिए उन्होंने पूरे प्रदेश में जन आंदोलन छेड़ने की तैयारी लगभग पूरी कर ली है. लिहाज़ा, सियासी गलियारों में ये कयास भरे सवाल उठ रहे हैं कि इतना बड़ा आंदोलन शुरु करने के लिए क्या बीजेपी उन्हें पर्दे के पीछे से मदद दे रही है?
हालांकि इसका सच तो आंदोलन शुरु होने के बाद ही सामने आएगा कि वह कितने बड़े स्तर पर होता है और उसके लिए संसाधन कौन जुटाता है. अपने गृह जिले अहमदनगर में रविवार को अन्ना ने आंदोलन छेड़ने का ऐलान करके उद्धव ठाकरे सरकार की सिरदर्दी बढ़ा दी है. दरअसल,अन्ना के दावे के मुताबिक ढाई साल पहले महाराष्ट्र की सत्ता में आई महाविकास अघाड़ी सरकार ने लोकायुक्त कानून बनाने का उन्हें लिखित आश्वासन दिया था. इतना वक़्त बीत जाने के बाद भी उसने इस बारे में कोई ठोस पहल नहीं की है.
वैसे तो अन्ना हजारे पिछले चार दशक से महाराष्ट्र में शराब माफिया और सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करते रहे हैं, लेकिन उन्हें राष्ट्रीय पहचान साल 2011 में ही मिली थी, जब उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ सशक्त जन लोकपाल कानून बनाने के लिए दिल्ली आकर आमरण अनशन किया था. उसी आंदोलन के जरिये कई नये चेहरे सक्रिय राजनीति में कूदे जिसमें सबसे बड़ा नाम दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल का है. दिल्ली के रामलीला मैदान में 10 दिन तक चले इस आंदोलन को लेकर तब भी ये कहा गया था कि हजारों लोगों के लिए प्रतिदिन खाने-पीने और अन्य सुविधाओं के इंतजाम में पर्दे के पीछे से संघ व बीजेपी का ही योगदान था, क्योंकि अन्ना और उनके साथियों के लिए इतने बड़े पैमाने पर इसका आयोजन करना संभव नहीं था. उसी आंदोलन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में एक ऐसा नरेटिव सेट किया, जो 2014 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह सरकार की विदाई और बीजेपी के सत्ता में आने का सबसे बड़ा औजार साबित हुआ.
महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार मानते हैं कि पिछले दो साल से अपने गांव रालेगण सिद्धि में आराम कर रहे अन्ना हजारे को आंदोलन छेड़ने का सपना अचानक नहीं आया है. इसके लिए उन्हें कुछ उसी तर्ज पर तैयार किया गया है कि चेहरा आपका, बाकी सारा इंतज़ाम हमारा. चूंकि अन्ना की छवि आज भी एक विश्वसनीय चेहरे की है, इसलिये उन पर आसानी से कोई उंगली नहीं उठा सकता कि वे किसी और ताकत के इशारे पर सरकार के खिलाफ आंदोलन करेंगे.
पिछले साल भर में महाराष्ट्र की राजनीति के घटनाक्रम का बारीकी से विश्लेषण करने वाले जानकार मानते हैं कि उद्धव सरकार को बाहर का रास्ता दिखाने की विपक्ष की सारी कोशिश अब तक फ्लॉप ही साबित हुई हैं. सरकार के दो मंत्रियों की गिरफ्तारी के बाद लाउड स्पीकर से अजान बनाम हनुमान चालीसा जैसे मुद्दों की असलियत भी लोगों को जल्द समझ आ गई. इस बहाने प्रदेश का साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने और उसके बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगाने को जायज करार देने की कोशिश को भी राज्य सरकार ने अपनी सतर्कता से बेकार साबित कर दिया. इसलिये सरकार को घेरने के लिए इस वक्त अन्ना से बड़ा चेहरा कोई नहीं हो सकता, जिनके आंदोलन में आम लोगों की भागीदारी भी हो, लेकिन देखना ये है कि अन्ना हजारे की इस धमकी से उद्धव सरकार की मुश्किलें कितनी बढ़ती हैं?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)