यूक्रेन पर हमला करके दुनिया को डराने वाले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें, तो उन्होंने पिछले दो दशक में रूस में विपक्ष को लगभग खत्म कर दिया है और जोसफ स्टालिन के बाद देश पर सबसे लंबे वक्त तक एकछत्र राज करने वाले शासक बनने का रास्ता भी उन्होंने तलाश लिया है. विपक्ष को खत्म करने के लिए पुतिन ने हर वो तरीका अपनाया, जो किसी जमाने में जर्मनी के तानाशाह अडोल्फ हिटलर ने अपनाया था. रूस में हर 6 साल के अंतराल में राष्ट्रपति का चुनाव होता है. साल 2018 में पुतिन चौथी बार इस पद पर चुने गए थे और उनका कार्यकाल 2024 तक है. रूस में पुतिन की छवि अपने विरोधियों को निपटाने वाले एक सख्त शासक की मानी जाती है और कहते हैं कि वे संसद से अपने मनमाने फैसले कराने के लिए भी मशहूर हैं.


लेकिन करीब दो साल पहले यानी जुलाई 2020 में पुतिन ने रूस को हमेशा के लिए बदल दिया. हालांकि उनकी यूनाइटेड रशिया पार्टी और उसके समर्थक तो पहले ही ऐसा मानते थे, लेकिन दो साल पहले उन्होंने जो बदला, वो ऐतिहासिक है. उसी साल जून में रूस के लोगों को फ़ोन पर मैसेज मिला कि उन्हें लाखों के इनाम जीतने के लिए रजिस्टर किया गया है.


दरअसल, रूस में संविधान संशोधन के लिए एक जनमत संग्रह करवाया गया. तब ज़्यादातर लोगों ने संशोधन के पक्ष में वोट किया. ज़्यादा से ज़्यादा लोग वोटिंग करें, इसके लिए इनाम रखे गए थे. हालांकि इस संविधान संशोधन के ख़िलाफ़ मुख्य विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी ने रूस के सेंट पीटर्सबर्ग विरोध प्रदर्शन भी किया, लेकिन उसका कोई असर नहीं हुआ. इस संविधान संशोधन का आइडिया भी पुतिन का ही था. रूस की संसद तो पहले ही संशोधन पास कर चुकी थी, लेकिन पुतिन ने इस आइडिया पर जनता की मुहर भी लगवाई और अब पुतिन के 2036 तक सत्ता में रहने का रास्ता तो साफ हो गया. ये संभव है कि वे जोसेफ़ स्टालिन से भी ज़्यादा लंबे वक्त तक सत्ता में रहने वाले नेता बन जाएंगे.


वैसे सात दिनों तक चली इस वोटिंग की कोई स्वतंत्र जांच नहीं हुई है. विपक्ष ने वोटिंग में अनियमितताओं के आरोप भी लगाए लेकिन पुतिन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. वैसे संविधान संशोधन को लेकर पुतिन ने यही कहा था कि ऐसा उन्होंने लोकतंत्र को मजबूत करने और बेहतर सरकार देने के लिए किया है लेकिन रूस में कई जानकार मानते हैं कि ये उनकी बदलाव योजना है. मतलब 20 साल सत्ता में रहने के बाद उनके कुछ निजी हित हैं, दोस्त हैं, एक सिस्टम है उनका. वो भला एकदम कैसे गायब हो सकते है.


सबसे बड़ा सवाल तो यही था कि 2024 में जब उनका राष्ट्रपति का कार्यकाल खत्म हो जाएगा तो फिर क्या होगा. तो इस संविधान संशोधन से क्या ख़ास हासिल होगा? जानकारों के मुताबिक पहली बात तो ये कि अब राष्ट्रपति की शक्तियां थोड़ी कम होंगी और पुतिन की तरह और पुतिन जितने लंबे वक्त तक सत्ता में कोई और बने नहीं रह पाएगा. अब तक किसी भी और देश के मुक़ाबले रूस का राष्ट्रपति पद ज़्यादा ताक़तवर इसलिये समझा जाता है कि रूस का राष्ट्रपति ड्यूमा यानी वहां की संसद को भी बर्ख़ास्त कर सकता है.


दूसरा, इस संशोधन से संसद की शक्तियां थोड़ी बढ़ेंगी. अभी तक राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री को नियुक्त करता था और ड्यूमा उस फ़ैसले को मंज़ूर करती थी. अब संसद प्रधानमंत्री को नियुक्त कर पाएगी और फिर प्रधानमंत्री अपनी कैबिनेट बनाएगा. पुतिन ने खुद कहा था कि इसका मतलब है कि राष्ट्रपति इन उम्मीदवारों को रिजेक्ट नहीं कर पाएगा. उसे संसद की बात माननी ही पड़ेगी.


तीसरी महत्वपूर्ण बात है- स्टेट काउंसिल की शक्तियों को बढ़ाना और इसे सरकारी एजेंसी के तौर पर मान्यता देना. अब ये स्टेट काउंसिल एक जज की तरह काम करेगी. मतलब जब भी कोई विवाद होगा, स्टेट काउंसिल का फैसला ही आख़िरी होगा. इस तरह की अफवाहें हैं कि पुतिन नए स्टेट काउंसिल के प्रमुख हो सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो उनका फ़ैसला ही आखिरी फैसला माना जाएगा. यानी एक तरह से सब कुछ उनके कंट्रोल में ही रहेगा. लेकिन पुतिन को समझना इतना आसान नहीं है. कोई नहीं जानता कि वे क्या करने वाले हैं.


वैसे अगस्त 1999 में तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने व्लादिमीर पुतिन को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. पुतिन जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उन्हें रूस में शायद ही कोई जानता था. लोगों को इतना ही पता था कि वे सेंट पीटर्सबर्ग से हैं और सोवियत यूनियन की खुफिया एजेंसी केबीजी में काम करते थे. लेकिन जब वो आए तो ऐसे छाए कि उनकी अप्रूवल रेटिंग 80 फीसदी तक पहुंच गई. पश्चिमी देशों में कोई नेता ख़्वाब में ही ऐसी रेटिंग के बारे में सोच सकता है.


बहुत लोगों का मानना है कि ये रेटिंग उस छवि की वजह से है जो सरकारी चैनलों ने बनाई है. ये तो जगजाहिर है कि सत्ता में आने के बाद सबसे पहले उन्होंने मीडिया को ही काबू में किया था. दूसरी एक वजह ये भी थी कि उनके सामने मज़बूत विपक्ष नहीं रहा. उनके विरोधियों को या तो देश निकाला दे दिया गया, या वो जेल में रहे या उनकी मौत हो गई.


वैसे दो दशक लंबे उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी जीत कही जाती है फरवरी 2014 में पड़ोसी देश यूक्रेन के हिस्से वाले क्रीमिया पर कब्ज़ा करना. पूरी दुनिया उन्हें रोक नहीं पाई. पश्चिम के लिए ये बड़ा झटका था. उसके बाद रूस ने पश्चिमी देशों की पाबंदियां भी झेली लेकिन फिर भी रूस कमजोर नहीं हुआ.


पिछले राष्ट्रपति चुनाव के दौरान विपक्षी नेता एलेक्सेई नवलनी ने पुतिन के करीबी दिमित्री मेदिवेदेव की अकूत संपत्ति का खुलासा किया था, इसके चलते नवलनी रूसी युवाओं में खासे पसंद भी किए जा रहे थे. लेकिन एक पुराने मामले में दोषी ठहरा दिए गए और राष्ट्रपति पद के लिए उनकी उम्मीदवारी पर प्रतिबंध लगा दिया गया. आरोप है कि रूसी राजनीति से ठिकाने लगाने के लिए अगस्‍त 2019 में साइबेरिया से मास्‍को लौटते हुए नवलनी को विमान में चाय में मिलाकर खतरनाक जहर दिया गया. इसको पीते ही उनकी तबियत खराब होने लगी और वो अचानक बेहोश हो गए. इसके बाद उन्‍हें वहीं के एक स्‍थानीय अस्‍पताल में भर्ती कराया गया. 17 जनवरी 2021 को जर्मनी से इलाज कराकर मास्को लौटे एलेक्सेई नवलनी को रूसी सरकार ने पैरोल नियमों का उल्लंघन करने के मामले में जेल में डाल दिया. वे तब से जेल में ही हैं.


इससे पहले साल 2015 में पुतिन के कट्टर विरोधी और रूस के पूर्व उपप्रधानमंत्री बोरिस नेमत्सोव की भी मॉस्को में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बोरिस का मानना था कि क्रीमिया का विलय पुतिन का एकतरफा फैसला था, जो पुतिन ने निजी स्वार्थ में लिया. वो इसे लेकर कुछ खुलासा करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उनकी हत्या कर दी गई.


रूस में विपक्ष नाममात्र का ही है, तो मीडिया पर पुतिन की जबरदस्त पकड़ है. कहते हैं कि रूस में वही खबरें दिखाई जाती हैं, जो पुतिन के फैसलों का समर्थन करती हैं और उनके पक्ष में प्रोपेगैंडा चलाती हैं.


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