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कोरोना के साये में कितना सुरक्षित मन पायेगा लोकतंत्र का उत्सव ?

कोरोना के साये में लोकतंत्र का उत्सव इतने बड़े पैमाने पर पहली बार हो रहा है, जब यूपी समेत पांच राज्यों के 18 करोड़ से ज्यादा लोग 690 सीटों पर ये फैसला करेंगे कि अगले पांच साल के लिए उनका विधायक कौन होगा. आज चुनाव तारीखों का ऐलान होने के साथ ही आचार संहिता लागू हो गई है और इसके साथ ही इन पांच राज्यों की सरकारें लाचार और असहाय बन गई हैं और अगले दो महीने तक इन पांच चुनावी सूबों का मायबाप सिर्फ निर्वाचन आयोग ही बना रहेगा.

हालांकि कोरोना के खौफ के चलते चुनाव आयोग को भी बहुत सारे बदलाव करते हुए कुछ नई पाबंदियां लगानी पड़ी हैं. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद वोटरों को सबसे बड़ी सहूलियत ये मिली है कि अब उन्हें ये जानने का अधिकार होगा कि चुनाव मैदान में उतरे किस उम्मीदवार के खिलाफ कितने आपराधिक मामले दर्ज हैं. लिहाज़ा, मतदाता अपना वोट देने से पहले पूरी तसल्ली कर संकेंगे कि कहीं वे किसी अपराधी को अपना विधायक तो चुनने नहीं जा रहे हैं.

राजनीति से अपराध का खात्मा करने और उसे स्वच्छ बनाने की दिशा में सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को ऐतिहासिक माना गया था. उसी मकसद को पूरा करने के लिए चुनाव आयोग ने Know Your Candidate ऐप लॉन्च किया है. इस ऐप पर चुनावी मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों को अपने ऊपर दर्ज आपराधिक मुकदमों की सारी जानकारी देनी होगी. इस ऐप के जरिए कुछ ही देर में उम्मीदवार की पूरी जानकारी आपके सामने होगी.

हालांकि, जिन उम्मीदवारों पर मामले दर्ज हैं, उन्हें तीन बार इसकी जानकारी अखबार और टीवी के जरिये देनी होगी. पार्टियों को भी अपनी वेबसाइट पर ऐसे उम्मीदवारों की जानकारी देना अनिवार्य होगा. इसके अलावा उनके चयन के पीछे का कारण भी बताना होगा. 

वैसे शायद ही कोई चुनाव ऐसा होता हो जिसमें बड़ी पार्टियों के उम्मीदवार वोटरों को लुभाने के लिए पैसा,शराब या और दूसरी चीजें न बांटते हो. इसे वोट खरीदना माना जाता है, जो जन प्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक एक अपराध है. हर चुनाव से पहले पार्टी के छुटभैये नेताओं की गाड़ियों से नोटों के बंडल और शराब की पेटियां पकड़ी जाती हैं, जिन्हें वोटरों के बीच बांटने के लिए चोरी-छुपे ले जाया जा रहा होता है.

लिहाज़ा, उम्मीदवारों की इस प्रवृत्ति पर लगाम कसने के लिए भी चुनाव आयोग ने सख्त इंतजाम किए हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा के मुताबिक आयोग के cVIGIL ऐप के जरिए मतदाता किसी भी तरह के आचार संहिता के उल्लंघन से जुड़े मामले, पैसे या फिर मुफ्त बांटी जा रही चीजों की जानकारी दे सकते हैं. उन्होंने दावा किया है कि शिकायत दर्ज कराने के 100 मिनट यानी तकरीबन पौने दो घंटे के भीतर ही चुनाव अधिकारी उस जगह पर पहुंच जाएंगे.

कोरोना संक्रमण के बढ़ते खौफ के चलते ही चुनाव आयोग ने पहली बार ये फैसला भी लिया है कि अब उम्मीदवार अपना नामांकन आयोग के सुविधा एप के जरिये ऑनलाइन कर सकते हैं. यानी इसके लिए चुनाव अधिकारी के दफ्तर जाने की जरूरत नहीं होगी. हर उम्मीदवार नामांकन भरने के लिए अपने समर्थकों की भीड़ जुटाकर जुलूस की शक्ल में वहां जाता था, वह सब अब नहीं होगा और इसका फायदा ये होगा कि संक्रमण के विस्फोट का खतरा नहीं रहेगा. उसी ऐप के जरिये लोग वोटर लिस्ट में भी अपना नाम जुड़वा सकते हैं.

देश के चुनावी इतिहास में ये भी पहली बार होगा कि महामारी की बीमारी का शिकार हुए लोगों के लिए वोट देने अलग इंतजाम किया गया है. इन पांच राज्यों में कोविड पॉजिटिव लोगों के लिए बैलट पेपर वोटिंग की सहूलियत होगी. संक्रमित मरीज बैलेट पेपर के जरिए अपना वोट डाल पाएंगे. आयोग ने कोविड मरीजों के अलावा 80 साल से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों, दिव्यांगजनों को भी पोस्टल बैलेट के ज़रिए मतदान की सुविधा दी है. इसका असर ये होगा कि लोकतंत्र के इस उत्सव में अधिकतम लोगों की भागेदारी बढ़ेगी जिसके चलते वोट प्रतिशत में भी इज़ाफ़ा होगा.

हालांकि चुनाव आयोग ने फिलहाल 15 जनवरी तक किसी भी तरह के रोड शो, पदयात्रा, साइकिल या बाइक रैली या फिर जुलूस निकालने पर रोक लगाई है. 15 जनवरी के बाद स्थिति की समीक्षा की जाएगी और फिर आयोग नए आदेश जारी करेगा. लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि आयोग को पूरे चुनाव होने तक ही इस पर रोक लगानी होगी क्योंकि जनवरी के तीसरे हफ्ते से 15 फरवरी के दौरान कोरोना की तीसरी लहर अपने पीक पर होगी.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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