मध्य प्रदेश के दो जुडवां भाईयों की अपहरणकर्ताओं ने दर्दनाक तरीके से हत्या की है. ये दोनों बच्चे सतना के चित्रकूट के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ते थे. 12 फरवरी को दोनों को गन प्वाइंट पर स्कूल बस से किडनैप किया गया. 10 दिन बच्चे इन बेरहम अपहरणकर्ताओं के पास थे. अगर10 दिन किसी बच्चे के साथ रह लें तो हो ही नहीं सकता आपको उनके साथ लगाव ना हो. सहमे-बिलखते बच्चों ने कितनी बार डबडबाई आंखों से उन युवकों को देखा होगा जो प्रोफेशनल हत्यारे नहीं थे, बल्कि आम छात्र थे. कोई टीचर था, कोचिंग में पढ़ाता था, कोई सामाजिक कामों में लगा था. कोई अपना भविष्य संवारने की तैयारी में लगा था. एक बार भी किसी की आंखों में क्या प्यार की झलक उतर कर नहीं आई होंगी.
जब बच्चों को खाना दिया होगा तो प्यार से डबडबाई आंखों से किडनैपरों को जरूर देखा होगा, लेकिन ऐसा क्या था कि उन युवकों का दिल पसीजा नहीं. रीवा पुलिस की जो थ्योरी सामने आ रही है कि उसके मुताबिक सतना में छह युवकों ने बच्चों को जल्द पैसा यानी ‘इजी मनी’ कमाने के लिए किडनैप किया.
इस केस में चलती बस को रोककर बच्चों को गन प्वाइंट पर उठाया गया. ना स्कूल की सिक्योरिटी कुछ कर सकी ना पुलिस इस वारदात को रोक पाई. हम सबके परिवार से बच्चे स्कूल जाते हैं. कोई रिक्शे में जाता है, कोई ऑटो में तो कोई बस में सवार होकर. किसके दिल में आता है बच्चों को ऐसे ही उठा लिया जाएगा, बेखौफ, और कोई कुछ नहीं कर पाएगा. पुलिस गैंग के खिलाफ कार्रवाई कर सकती है पर इस तरह के ‘इजी मनी’ की सोच वालों को रोकने का क्या इंतजाम है? कितनी बसों में सिक्योरिटी गार्ड किए जा सकते हैं? कैसे बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है? ये ऐसी घटना है जिसके बाद हर माता-पिता के मन में बच्चे के स्कूल भेजते समय दहशत होगी.
इस केस की दूसरी गंभीर बात ये कि जिसने रेकी की वो बच्चे का टीचर था टीचर यानी बच्चे के भविष्य को गढ़ने वाला, सिर्फ बच्चे ही क्यों देश का भविष्य गढ़ते हैं टीचर. जिन मूल्यों को लागू करने में मां-बाप नाकाम हो जाते हैं उन्हीं को टीचर आसानी से बच्चों को सिखा देता है. टीचर का असर मासूम बच्चों के मन पर ताउम्र बना रहता है. लेकिन यहां तो टीचर ही देवांग और शिवांग का दुश्मन बन गया. वो प्लान का अहम हिस्सा था. शायद उसी ने बच्चों की किडनैपिंग के लिए उकसाया. उसी ने परिवार की रेकी की, उसी ने प्लान बनाने में मदद की. ऐसा शख्स टीचिंग के पेशे में आया ही क्यों? कुछ दिन में इस शख्स की भी कुंडली निकलेगी लेकिन क्या बड़ा सवाल ये है कि हमारा सिस्टम ऐसे टीचर तैयार कर रहा है?
तीसरा दुखद पहलू जो जांच में निकल कर सामने आ रहा है कि किडनैप की हुई गाड़ियों में रामराज्य की प्लेट लगी थी. ये किडनैपर कैसा ‘रामराज्य’ लाना चाह रहे थे. जिस राम की हम पूजा करते हैं उसके मन में तो कभी रावण के प्रति भी बैर नहीं रहा. धर्म और सत्य की स्थापना के लिए जो जरूरी लगा वो किया. पर इस तरह के लोग कैसे राम का नाम लेने के भी हकदार हैं? सामने आ रहा है कि परिवार धार्मिक है तो फिर ये ‘इजी मनी’ का सिद्धांत कैसे इन लोगों के मन पर घर कर गया?
जरा सोचिए छह लोगों ने मिलकर चित्रकूट के तेल कारोबारी ब्रजेश रावत से दो करोड़ की मांग की. बताया जा रहा है कि 20 लाख की फिरौती पर मामला सेटल भी हो गया. फिरौती मिल भी गई. लेकिन जब बच्चों को छोड़ने की बात आई तो किडनैपर्स ने बच्चों से आखिरी सवाल पूछा- क्या हमें जानते हो, पहचान लोगे? मासूमों ने झूठ नहीं बोला. करीब दस दिन साथ रहे थे. इजी मनी वालों ने तुरंत फैसला कर लिया. उन्होंने मासूम बच्चों के हाथ पैर बांधे, जंजीर में बांध कर उन्हें यमुना में फेंक दिया. फिरौती मिल चुकी थी, अब पहचाने जाने का डर भी खत्म हो गया.
पुलिस के हाथ जब तक आरोपियों तक पहुंचे तब तक मासूमों की जान जा चुकी थी. मासूमों के शव निकाले गए तो वो उसी स्कूल ड्रेस में थे जिस में आखिरी बार उनके माता-पिता ने पढ़ा-लिखा कर राजा बाबू बनाने के लिए स्कूल भेजा था. उनके हाथ बंधे हुए थे. उनके पैर बंधे हुए थे. नदी में फेंके जाते वक्त उन्हें चिल्लाने का वक्त भी नहीं मिला होगा. बच्चे खत्म हो गए. मासूमियत नदी में डुबो दी गई. इंसानियत मार दी गई. हैवानियत जीत गई. बस ‘इजी मनी’ के लिए.
अब पॉलिटिकल सिस्टम में वार-पलटवार चल रहे हैं. एक दूसरे की टांग खिंचाई की जा रही है. लेकिन ये सवाल बाकी है कि ये ‘इजी मनी’ की ख्वाब युवा सपनों पर क्यों और कहां से हावी हो रहा है? इन सारे युवकों के सामने सुनहरा भविष्य था. उनके हाथ-पांव ठीक थे. पढ़े-लिखे थे, दुनिया में नाम कमाने और जगह बनाने का पूरा वक्त था. बावजूद इसके बिना दुश्मनी, बिना गुस्से, ठंडे दिमाग से पूरी प्लानिंग करके इजी मनी की जुगत लगाई गई.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)