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2024 के लिए बीजेपी की इन तैयारियों का मुकाबला आखिर कैसे करेंगे राहुल गांधी?
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कहते हैं कि राजनीति का न कोई रंग-रूप होता है और न ही कोई चाल-चरित्र लेकिन जो भी राजनीतिक दल लोगों की भावनाओं को किसी भी तौर- तरीके से अपने पक्ष में भुनाने में कामयाब हो जाता है तो वही सिकंदर भी कहलाता है. राहुल गांधी बेशक अपनी यात्रा के जरिये भारत को जोड़ने की कवायद कर रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी कांग्रेस के दिग्गजों को भी शायद ये अहसास नहीं होगा कि बीजेपी ने जमीनी स्तर पर खुद को मजबूत करने के लिए कितनी सारी प्लानिंगके जरिये उसे अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया है.
हम राहुल गांधी की इस मुहिम के ख़िलाफ़ कतई नहीं हैं लेकिन उन्हें ये अहसास भी होना चाहिए कि लोकतंत्र की चुनावी-राजनीति में सिर्फ संख्या बल ही मायने रखता है जो किसी को भी फर्श से अर्श पर पहुंचाने की आखिरी ताकत भी रखता है. बीजेपी की तैयारियां अपनी जगह पर हैं लेकिन सवाल उठता है कि राहुल गांधी अपनी इस यात्रा के जरिए देश की जिस फ़िज़ा बदलने का दावा कर रहे हैं वह 2024 के लोकसभा चुनाव तक क्या ऐसे ही बनी रहेगी?
ये सवाल इसलिए कि कांग्रेस का सारा फोकस इस यात्रा पर ही है और उसके शीर्ष नेताओं ने ये पलटकर पता लगाने की शायद ही कोई जहमत उठाई हो कि जिन राज्यों से ये यात्रा गुजरी है वहां अगले लोकसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस कितनी दमखम से तैयार है. राहुल को अपनी मुस्कराती शक्ल दिखाने की होड़ में लगे इन तमाम प्रदेशों के नेता शायद ये भूल गए कि उन्हें अपने यहां बूथ लेवल पर पार्टी को कैसे मजबूत करना है. उन्हें तो यही लग रहा है कि राहुल की इस यात्रा का कुछ ऐसा सियासी करिश्मा होगा कि 2024 की सूरत अपने आप ही बदल जाएगी.
कांग्रेस और बीजेपी की राजनीति में यही सबसे बड़ा बुनियादी फर्क है जिसे बारीकी से समझने के साथ ही ये भी देखना होगा कि ऐसा क्या है कि भगवा पार्टी ने इतनी जल्द लोगों का भरोसा जीत लिया. सवाल ये नहीं है कि देश का माहौल बदलने के लिए ऐसी यात्राएं भला क्यों न हों लेकिन बड़ी बात ये है कि जब इसका मकसद ही राजनीतिक हो तब विपक्षी दल को ये भी ख्याल रखना जरूरी होता है कि उसने जमीनी स्तर पर अपनी जमीन को कितना मज़बूत किया है.
राहुल की इस यात्रा से कांग्रेस की जमीन कितनी मजबूत होगी या हुई है के तो चुनाव-नतीजे ही बताएंगे. लेकिन बीजेपी ने साल 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर अपनी तैयारियों को जिस तरीके से अंजाम देना शुरू कर दिया है वो हमारे तमाम विपक्षी दलों के लिए एक बड़ा सबक इसलिये है कि उन्हें अपने विरोधी से ये सीखना चाहिये कि चुनाव जीतने से पहले लोगों के दिलों को कैसे जीता जाता है और उसके लिए क्या कुछ करना होता है. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 144 सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी दूसरे या तीसरे नंबर पर रही थी.
पीएम मोदी के बारे में कहा जाता है कि राजनीति में आने से पहले जब वे संघ के प्रचारक थे तब भी वे किसी कार्य मे आशातीत सफलता न मिलने के पीछे का पूरा पोस्टमार्टम किया करते थे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ और संघ की तरफ से अगर कोई चूक हुई तो किस वजह से हुई ताकि उसे सुधारने का तरीका खोजा जाए. संघ अब उनका इतिहास बन चुका है लेकिन बीजेपी और सरकार ही अब उनका वर्तमान हैं इसलिये उनकी सारी चिंता यही रहती है कि लगातार तीसरी बार सत्ता पर अपना दबदबा कायम कैसे रहे. लिहाजा, मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने पिछले चुनाव में बीजेपी की हारी हुई 144 सीटों का दायरा बढ़ाकर अब इसे 160 कर दिया है. यानी बीजेपी ने अब एक तरह से 463 सीटों को जीतने का लक्ष्य अपने सामने रख लिया है.
इनमें से अकेले 60 सीटें दक्षिण भारत के राज्यों की है लेकिन इनमें भी पार्टी का सबसे ज्यादा जोर तेलंगाना पर है जहां इसी साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. हालांकि वहां की 17 में 4 लोकसभा सीटों पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है लेकिन पार्टी की रणनीति है कि थोड़ी और मेहनत करके दहाई के आंकड़े को आसानी से छुया जा सकता है. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के सी आर भी बीजेपी की इस सियासी गोलबंदी से वाकिफ हैं और इसीलिए वे बीजेपी के खिलाफ सबसे मुखर हमलावर बने हुए हैं.
हालांकि बीजेपी के पास आरएसएस जैसा मजबूत जमीनी संगठन है जिसके स्वयं सेवक हर चुनाव में अपना जी-जान एक कर देते हैं. लेकिन इसके बावजूद पार्टी ने कोई रिस्क न लेते हुए 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने पिछले साल लोकसभा प्रवास योजना शुरू की थी. इस योजना के तहत मंत्रियों सहित पार्टी नेताओं को आगामी आम चुनावों के लिए उन चुनौतीपूर्ण संसदीय क्षेत्रों को संभालने का जिम्मा सौंपा गया है, जहां पार्टी 2019 के आम चुनावों में दूसरे या तीसरे स्थान पर रही या बहुत ही कम वोटों के अंतर से जीती. प्रवास योजना के शुरूआती चरण में देश भर से ऐसे 144 निर्वाचन क्षेत्रों की पहचान की गई थी जिन्हें अब बढ़ाकर 160 कर दिया गया है.
इस योजना के तहत चुने हुए संसदीय क्षेत्रों में से प्रत्येक एक क्लस्टर का हिस्सा होंगे जिसके लिए एक मंत्री या पार्टी के वरिष्ठ नेता को प्रभारी के रूप में नियुक्त किया जाएगा. इसका मकसद संगठन को मजबूती देते हुए पार्टी कार्यकर्ताओं को चुनावी रणनीति से जुड़ी कई स्थितियों के लिए प्रेरित करना है. मसलन स्थानीय लोगों को बूथ स्तर की गतिविधियों से प्रभावित करने से लेकर व्हाट्सएप समूहों सहित सोशल मीडिया पर काम करना.
2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 436 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिनमें से 303 पर उसे जीत मिली थी. ऐसे में प्रवास योजना के शुरूआती चरण में पार्टी द्वारा चुने गए 144 निर्वाचन क्षेत्रों में उन सीटों को शामिल किया गया, जहां पार्टी को हार मिली थी. इनमें उन सीटों को भी शामिल किया गया, जहां बीजेपी बस किसी तरह मामूली अंतर से जीती. प्रवास योजना के प्रारंभिक चरण से सकारात्मक परिणाम और प्रतिक्रिया मिलने के बाद भाजपा नेतृत्व ने अब ऐसी सीटों की संख्या 160 तक बढ़ा दी है. कार्यक्रम को संभालने वाले वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि जल्द ही यह संख्या 200 से अधिक हो जाएगी.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.
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