रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़ने के बादल मंडरा रहे हैं जिसका असर यूरोप के बाकी देशों के अलावा भारत पर भी पड़ना तय है क्योंकि उस सूरत में कच्चे तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी और देश में महंगाई और भी अधिक बेकाबू हो जाएगी.यूक्रेन संकट ने आज शेयर मार्केट की हालत भी बिगाड़ दी.इस संकट के चलते कच्चा तेल 7 साल के उच्च स्तर पर पहुंच चुका है.ऐसी आशंका है कि क्रूड ऑयल 100 डॉलर प्रति बैरल के स्तर को पार कर सकता है. अगर ऐसा होता है तो यह भारत की अर्थव्यवस्था समेत ग्लोबल इकोनॉमी पर भी गहरा असर डालेगा.
हालांकि कल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फ़ोन पर लंबी बात करके उसे चेतावनी दी है कि अगर उसने यूक्रेन पर हमला किया,तो रुस को इसकी गंभीर कीमत चुकानी पड़ेगी.लेकिन जंग टलने के आसार कम हैं क्योंकि रुस ने अपने सवा लाख से ज्यादा सैनिकों को हथियारों-मिसाइलों के साथ यूक्रेन की सीमाओं पर तैनात कर दिया है और अमेरिकी खुफिया एजेंसी ने आशंका जताई है कि रुस 16 फरवरी को हमला कर सकता है.
यूक्रेन में 20 हजार से ज्यादा भारतीय छात्र व अन्य नागरिक रहते हैं,लिहाज़ा यूक्रेन से उन हजारों लोगों को निकालना भी मोदी सरकार के लिये एक बड़ी टेंशन होगी. हालांकि भारत फिलहाल तटस्थ भूमिका में है और उसने दोनों मुल्कों में से किसी का भी साथ न देने की रणनीति अपना रखी है लेकिन देर-सवेर भारत को भी अपना रुख साफ करना ही पड़ेगा.
वैसे सच तो ये है कि यूक्रेन को लेकर दुनिया की दो महाशक्तियों अमेरिका और रूस के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है. अमेरिकी बॉम्बर यूरोप में गश्त लगा रहे हैं,तो वहीं रूस ने भी हाइपरसोनिक मिसाइलें तैनात कर दी है. राष्ट्रपति बाइडन ने ऐलान कर दिया है कि रूस अगर यूक्रेन पर हमला करता है तो वह मास्को के खिलाफ बेहद कड़े प्रतिबंध लगाएंगे. विशेषज्ञों के मुताबिक अमेरिका अगर रूस के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाता है तो इससे भारत की मुश्किलें बढ़ जाएंगी.यही नहीं, S-400 एयर डिफेंस डील पर भी संकट आ सकता है.
कूटनीतिक मामलों के जानकार मानते हैं कि भारत के लिए फिलहाल पसोपेश वाली स्थिति है क्योंकि हमारे लिये रुस और अमेरिका,दोनों ही सहयोगी देश है.लिहाज़ा,भारत ऐसी स्थिति नहीं चाहेगा, जिसमें उसके दोनों सहयोगी आपस में टकरा जाएं. अगर ऐसा हुआ तो भारत को किसी एक पाले में आना होगा और यह उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को बड़ा झटका दे सकता है. बदलते भू-राजनीतिक समीकरण में भारत के लिए यह मुश्किल घड़ी होगी.
थल सेना सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल हर्ष कक्कड़ ने 1 फरवरी को अंग्रेजी अखबार में लिखे अपने लेख में कहा है- ''भारत के लिए निष्पक्ष रहना सबसे बढ़िया विकल्प है. इसमें कोई शक नहीं है कि भारत की निष्पक्षता ने अमेरिका को चिढ़ा दिया है. अगर भारत ऑकस (AUKUS) का सदस्य होता तो उसे अमेरिका का समर्थन करना ही पड़ता."
दरअसल,भारत अपनी सैन्य जरूरतों के लिए रूस पर बहुत ज्यादा निर्भर है. भारत अपने सैनिक साजो-सामान का 55 फीसदी हिस्सा रूस से ही खरीदता है. भारत रूस से S-400 मिसाइल सिस्टम खरीदना चाहता है लेकिन अमेरिका ने इसे लेकर आपत्ति जताई है. अमेरिका भारत पर इस सौदे को रद्द करने का दबाव बनाता रहा है. लेकिन भारत का कहना है कि उसकी विदेश नीति स्वतंत्र है और हथियारों की खरीद के मामले में वह राष्ट्रहित को तवज्जो देता है.
अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाए रखने की कोशिश में ही भारत ने 31 जनवरी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में यूक्रेन तनाव पर चर्चा के लिए होने वाली वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया. लेकिन जब चर्चा हुई तब वहां मौजूद भारत के प्रतिनिधि ने इस तनाव को कम करने और क्षेत्र में स्थायी शांति और स्थिरता की अपील की.
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ सी राजामोहन ने हाल ही में एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि जब दुनिया की महाशक्तियां लड़ना शुरू कर देती हैं तो विदेश नीति को संभालना काफी मुश्किल होता है.अगर रूस के खिलाफ गंभीर प्रतिबंध लगते हैं और अमेरिका, भारत को मिली छूट को रोक देता है तो इससे भारत-रूस के बीच एस-400 डील पर प्रभाव पड़ेगा.उनके मुताबिक रूस-यूक्रेन की जंग से तेल की कीमतें आसमान छूने लगेंगी और महंगाई अपने चरम पर पहुंच जाएगी. 'भारत के लिए सबसे बड़ी मुश्किल तब होगी, जब रूस यूक्रेन में जनमत संग्रह की मांग करने लगता है. रूस ने क्रीमिया पर इस आधार पर कब्जा कर लिया था, क्योंकि वहां पर मास्को के मुताबिक 90 फीसदी लोगों ने रूस के साथ जुड़ने का समर्थन किया था.
उन्होंने कहा कि अगर रूस ऐसा करता है तो कल को पाकिस्तान भी पाक अधिकृत कश्मीर में जनमत संग्रह करवाकर यही दावा कर सकता है. इससे पहले जब क्रीमिया में जनमत संग्रह हुआ था, कश्मीर के अलगाववादी गुट हुर्रियत कॉन्फ्रेंस ने इसका स्वागत किया था. अगर यह जंग होती है तो भारत पर रूस और अमेरिका दोनों का ही दबाव आ जाएगा.
आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत कहते हैं,"अगर रूस और यूक्रेन के बीच जंग की स्थिति उत्पन्न हुई तो जाहिर तौर पर इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा और भारत इसका अपवाद नहीं होगा.लेकिन यह जंग सामान्य इसलिये नहीं होगी क्योंकि इसमें पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंट सकती है. ऐसे में इसका भारत पर भी काफी हद तक पड़ेगा. दरअसल, इस युद्ध में रूस और चीन की निकटता और बढ़ेगी,जो कि भारत के लिए शुभ स्थिति नहीं होगी.
हालांकि रूस-यूक्रेन के बीच किसी भी तरह के सैन्य टकराव का असर पश्चिमी देशों पर पड़ेगा. पश्चिम के देश रूस पर प्रतिबंध लगाएंगे,जिसके जवाब में रूस समूचे यूरोप में गैस की आपूर्ति में कटौती कर सकता है.इसका असर तेल की कीमतों पर पडे़गा. यूक्रेन का डोनबास इलाका जो रूस और यूक्रेन बीच इस विवाद में सबसे अहम है,वहीं पर सबसे बड़ा रिजर्व है.ऐसी स्थिति में रूस चीन के साथ तेल और गैस बेचने की बात करेगा जिससे वैश्विक ऊर्जा बाजार प्रभावित होगा और और तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी देखने को मिलेगी.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)