पिछले आठ सालों में देश के राजनीतिक नक्शे से अपना वजूद खोती जा रही सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस क्या दो फाड़ होने की तरफ बढ़ रही है? या फिर नेहरु-गांधी खानदान के साये से मुक्त होकर वह जिंदा रहने के लिए वाकई इतनी गंभीर है? सियासी गलियारों में ये सवाल उठने की सबसे बड़ी वजह ये है कि साल भर पहले नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने वाले ग्रुप-23 के जिन नेताओं ने ये आवाज़ उठाई थी,उनमें शामिल दिग्गज़ नेता कपिल सिब्बल ने सीधे तौर पर अब कांग्रेस को गांधी कुनबे से मुक्त करने की जबरदस्त वकालत कर दी है.


इसलिये कयास तो ये भी लगाए जा रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले क्या कांग्रेस टूट जाएगी और गुलाम नबी आजाद की अगुवाई में क्या एक नई पार्टी बनेगी जिसमें जी-23 के प्रमुख चेहरों समेत और भी कई नेता शामिल होकर एक नया विकल्प देंगे. हालांकि ये तो आने वाला वक़्त ही बतायेगा कि ऐसा होता है कि नहीं लेकिन राजनीति में किसी भी संभावना को नकारा नहीं जा सकता.  


वैसे पिछले साल जम्मू में गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व कांग्रेस के बैनर पर ही एक कार्यक्रम हुआ था, जहां मंच पर लगे होर्डिंग से सोनिया व राहुल गांधी की तस्वीर नदारद थी. उस आयोजन में जी-23 के कुछ प्रमुख नेता भी शामिल हुए थे. तभी से ये सुगबुगाहट शुरु हो गई थी कि आजाद कांग्रेस से अलग होकर एक फ्रंट बनाने की तैयारी में है, जिसकी वह शुरुआत थी.


उसके बाद गुलाम नबी आजाद जब राज्यसभा से रिटायर हो रहे थे, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदन में दिए अपने भावुक भाषण में उनकी जिस कदर तारीफ की थी,उससे सियासी हलकों में दो आशंकाएं उभरी थीं. पहली तो ये कि वे अब बीजेपी में जा सकते हैं और दूसरी यह कि वे एक नई पार्टी का गठन करके जम्मू-कश्मीर की सियासी तस्वीर बदलने की तैयारी में हैं. लेकिन जानकारों को दूसरी आशंका में तब भी दम नजर आया था और अब भी उन्हें ऐसा ही लगता है.


राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि साल 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर हाल में सम्पन्न हुए पांच राज्यों के चुनाव-प्रचार  के दौरान पीएम मोदी के दिए भाषणों पर अगर बारीकी से गौर करेंगे,तो परिवारवाद की राजनीति उनके निशाने पर रही है.जम्मू-कश्मीर में भी अब तक दो परिवारों ने ही राज किया है.इसलिये बीजेपी के लिए तो ये सबसे बेहतर स्थिति साबित होगी कि घाटी में कोई ऐसा तीसरा विकल्प तैयार हो जाये,जो अब्दुल्ला-मुफ़्ती परिवार को सियासी पटखनी दे सके.


जम्मू व आसपास के क्षेत्रों में तो बीजेपी मजबूत है लेकिन कश्मीर घाटी में वह एक विकल्प की तलाश में है,जिसे अब गुलाम नबी आजाद पूरा कर सकते हैं.जानकार मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की रिपोर्ट आने के बाद वहां विधानसभा चुनाव कराने का ऐलान हो जाएगा और तब सियासत की नई तस्वीर सबके सामने आ जायेगी.


पांच राज्यों के चुनाव में हुई करारी हार की समीक्षा करने के लिए रविवार को सोनिया गाँधी ने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई थी.उसमें उन्होंने बेहद डिप्लोमेटिक अंदाज़ में नेताओं से ये पूछा कि अगर आप चाहते हैं, तो हम तीनों (यानी सोनिया,राहुल व प्रियंका) इस्तीफा देने को तैयार हैं.हालांकि बताते हैं कि तब अधिकांश सदस्यों ने उनकी इस पेशकश को ठुकरा दिया.लेकिन जो कुछेक चुप रहे,उनमें कपिल सिब्बल भी थे.


अगर वे चाहते तो उसी वक़्त कह सकते थे कि आप लोगों को स्वेच्छा से इस्तीफा देकर पार्टी की कमान नये लोगों को सौंप देनी चाहिए.लेकिन कानून के साथ राजनीति के दांवपेंच में माहिर सिब्बल जानते थे कि बंद कमरे में कही गई उनकी बात का उतना वजन नहीं होगा और शायद बाहर किसी को पता भी न लगे.


लिहाज़ा,गांधी परिवार के नेतृत्व के खिलाफ अपनी मुखर आवाज़ उठाने के लिए सिब्बल ने मीडिया का सहारा लेना ज्यादा उचित समझा.आज यानी बुधवार को कपिल सिब्बल के घर पर G23 के नेताओं की मीटिंग होनी है.लेकिन उससे पहले एक अंग्रेजी अखबार को इंटरव्यू देकर उन्होंने गांधी परिवार के खिलाफ बड़ा धमाका किया है.उनका कहना है कि अब वक्त आ गया है कि गांधी परिवार नेतृत्व छोड़ दे और किसी दूसरे शख्स को मौका दे.


सिब्बल ने इस पर भी सवाल उठाया है कि राहुल गांधी ने आखिर किस हैसियत से पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया था,जबकि वे पार्टी के अध्यक्ष नहीं हैं.सोनिया द्वारा पद से हटने की पेशकश किये जाने पर सिब्बल ने कहा कि उन्हें खुद ही हटना होगा, क्योंकि उनकी बनाई हुई संस्था उन्हें कभी ये नहीं कहेगी कि उन्हें नेतृत्व से हटना चाहिए. कुछ लोग घर की कांग्रेस चाहते हैं, लेकिन मैं निश्चित रूप से घर की कांग्रेस नहीं चाहता और मैं आखिरी सांस तक सबकी कांग्रेस के लिए लड़ता रहूंगा.


इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष  सोनिया गांधी ने चुनांवी हार वाले पांचों राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के प्रदेश अध्यक्षों से कहा है कि वे पीसीसी के पुनर्गठन के लिए अपना इस्तीफा दे दें. पर,बड़ा सवाल ये है कि पांच राज्यों में बदलाव करने से क्या कांग्रेस बिखरने से बच जायेगी?


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)