इस देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तरप्रदेश है, जहां देश के राजनीतिक इतिहास में पांच साल पहले ऐसा पहली बार हुआ था कि एक संन्यासी को वहां की जनता ने सिंहासन पर बैठा दिया. हालांकि प्राचीन भारतवर्ष का लौकिक इतिहास बताता है कि जब एक हठयोगी ठान ले तो वो एक सूबे को छोड़िए, पूरे राष्ट्र को भी संभाल सकता है. हम नहीं जानते कि अगर योगी आदित्यनाथ इस चुनाव में दोबारा सत्ता सम्भाल लेते हैं तो वे आने वाले दो साल में संघ के साथ ही बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के लिए खतरा बनेंगे या फिर उसकी नाव के सबसे बड़े खेवनहार! योगी आदित्यनाथ यूपी का राजकाज संभालने से पहले ही नाथ सम्प्रदाय की उस गद्दी को भी संभाले हुए हैं, जिस पर कभी गुरु गोरखनाथ बैठा करते थे.
शायद कम लोग ही जानते होंगे कि गोरखनाथ के गुरु थे- मत्स्येंद्रनाथ. जिन्हें मच्छिंद्रनाथ के नाम से भी जाना जाता है और इतिहास के मुताबिक उनका अवतरण 10वीं शताब्दी में हुआ था. तब ये कहावत भी प्रचलित हुआ करती थी, "भाग गोरख,मछेन्दर आया." बताते हैं कि तब गोरखनाथ अपने गुरु को देखकर छिपने का ठिकाना तलाश करते थे, क्योंकि 'हठ विद्या' पाने की बेहद कठिन तपस्या कोई बच्चों का खेल नहीं हुआ करती थी. उन्हीं मच्छिंद्रनाथ की समाधि मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में गढ़ कालिका देवी मंदिर के निकट बनी हुई है, जहां नाथ सम्प्रदाय की परंपरा को जिंदा रखने वाले शिष्य हर साल उनकी जयंती को बड़ी भव्यता से मनाते हैं.
ये अलग बात है कि राजपाट संभालने वाले योगी आदित्यनाथ को इन पांच सालों में कभी फुरसत नहीं मिली कि वे अपने गुरुओं के भी गुरु की समाधि पर कभी शीश नवाने जा पाते. लेकिन नाथ परंपरा सनातनी सिद्धांतों से थोड़ा अलग हटकर है, इसलिये वे योगी के वहां न पहुंचने पर भी नाराज़ नहीं होते, बल्कि प्रसन्न होते हैं. शायद इसलिये कि एक तरफ राजा भर्तहरि था,जिसने अपना सारा राजपाट छोड़कर गुर गोरखनाथ के चरणों में आकर वैराग्य का रास्ता अपनाया तो दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ जैसा शिष्य भी है, जिसे संन्यासी होने के बावजूद यूपी की जनता ने सारा राजपाट उनके हवाले कर दिया. पांच साल पहले एक संन्यासी पर लोगों के इतने बड़े भरोसे की लोकतंत्र के इतिहास में ये पहली व अनूठी मिसाल थी.
कहते हैं कि एक सच्चा संन्यासी सिर्फ भिक्षा के सहारे ही अपने पेट की जरुरत को पूरी करता है लेकिन जब वह अपने मलंग मूड में आ जाये, तो सामने वाले इंसान को वो सब कुछ दे जाता है जिसके बारे में उसने सोचा भी न हो. क्योंकि हमारी प्राचीन संस्कृति में 'हठ योग' को सबसे महानतम योगों में से एक माना गया है, लिहाज़ा इस विद्या में पारंगत कोई योगी अगर सत्ता की कुर्सी पर बैठकर कुछ ठान लेता है तो उसे पूरा किये बगैर चैन नहीं लेता.
शुक्रवार को श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या जाकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब वहां के जरूरतमंद छात्र-छात्राओं को टैबलेट और स्मार्टफोन बांट रहे थे, तब उनका अंदाज़ भी कुछ वैसा ही था. एक संन्यासी जब जन कल्याण के लिए राजनीति का रास्ता चुनता है, तब वह धर्म का उपदेश देने की बजाय अपने विरोधियो पर भी वैसे ही सियासी हमले करता है, जो उन्हें आसानी से समझ आ जाएं. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि यूपी के इस चुनांवी मौसम में आपने योगी आदित्यनाथ के मुंह से बीएसपी प्रमुख मायावती या कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ उतनी आलोचना नहीं सुनी होगी, जितनी तल्ख भाषा का इस्तेमाल वे समाजवादी पार्टी के नेताओं के लिए खुलकर कर रहे हैं.जाहिर है कि वे भी जानते हैं कि चुनांवी अखाड़े के इस दंगल में उनसे मुकाबला करने वाले असली पहलवान वही हैं,इसलिए वे उन्हें गरियाने में कोई कंजूसी नहीं बरतते. इसलिये अयोध्या में दो हजार युवाओं को स्मार्ट फ़ोन व टेबलेट बांटने वाले कार्यक्रम में भी उन्होंने समाजवादी पार्टी के नेताओं को जमकर आड़े हाथ लिया. सीएम योगी ने कहा कि, पिछली सरकारों में युवाओं को ठगा जाता था. भर्तियां निकलती थीं तो चचा-भतीजा-भांजा सब अलर्ट वाली टोपी लगाकर वसूली पर निकल पड़ते थे. ये लोग अयोध्या के नाम तक से परहेज़ करते थे और आज दिन में कम से कम एक बार जय श्री राम जरूर बोलते हैं.
इसे योगी के दिमाग की उपज ही कहा जाएगा कि जिसे लोग अब तक रिश्वत कहा करते थे,उसे उन्होंने 'वसूली' का नाम देकर चुनांवी माहौल को और भी ज्यादा गरमा दिया है.वह इसलिये कि वे सीधा आरोप ये लगा रहे हैं कि अखिलेश यादव की सरकार में नौकरी पाने के लिए लोगों से रिश्वत नहीं मांगी जाती थी,बल्कि वसूली की जाती थी क्योंकि पद के हिसाब से हर नौकरी का रेट तय हुआ करता था.जो भुक्तभोगी हैं,उन्हें तो योगी की बात का मतलब अच्छे से समझ आ रहा होगा लेकिन जिनके पास उतने पैसे नहीं थे और वे उस नौकरी से हाथ धो बैठे,उन्हें इसका अर्थ और भी ज्यादा गहराई से समझ आ रहा होगा.यही योगी का वो सबसे बड़ा सियासी औजार बनते दिख रहा है,जो उनके यूथ वोट बैंक में इजाफा करेगा और योगी इस नब्ज़ को समझ चुके हैं.इसीलिये उन्होंने अपने भाषणों में 'वसूली' शब्द पर ज्यादा जोर देना शुरू कर दिया है.
जानकार मानते हैं कि दरअसल,योगी आदित्यनाथ पिछले पांच साल से राजपाट चलाते हुए अपने जिस गूढ़ रहस्य को प्रकट नहीं होने देना चाहते थे,चुनाव से पहले उस 'हठ योग' का पहला चरण अपने आप ही उजागर होने लगा है.ऐसे में,बड़ा सवाल ये है कि उनके विरोधी इसका तोड़ निकालने के लिए हिमालय की किस गुफा में जाकर किस महंत अवैद्यनाथ या गुरु गोरखनाथ को तलाशेंगे?
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