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कोरोना के बाद कैसी होगी दुनिया

कोरोना का टीका आने के साथ ही एक बार फिर कुछ सवाल तेजी से बहस का विषय बन गये है. कोरोना काल के बाद दुनिया कैसी होगी. बेहतर होगी या और बिगड़ जायेगी.

कोरोना काल के बाद कैसी होगी दुनिया? सब कह रहे हैं कि दुनिया बदल जाएगी. लेकिन यह तो सब अभी से महसूस कर रहे हैं. असली सवाल है कि दुनिया संवर जाएगी या दुनिया बिगड़ जाएगी? दुनिया में राष्ट्रीय स्तर पर अलगाववाद बढ़ेगा या दुनिया एकजुट हो जाएगी? देश पास आएंगे या दूर छिटक जाएंगे? सरंक्षणवाद पर जोर होगा या दुनिया खुल जाएगी?

देशों को एक दूसरे देश के साथ की जरुरत पड़ेगी या यूं कहा जाए प्रधानमंत्री मोदी की तर्ज पर कि सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास के आधार पर दुनिया आगे बढ़ेगी या आपस में खुंदके निकलाने में वक्त गुजरेगा? कुछ लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि नागरिकों को सशक्तिकरण बढ़ेगा या आर्टिफिशियल सर्विंलांस के नाम पर सरकारें नागरिकों के बेडरुम तक पहुंच जाएंगी? यह कुछ सवाल है जो कोरोना का टीका आने के साथ ही फिर तेजी से उठने लगे हैं , बहस का विषय बनने लगे हैं.

संयुक्त राष्ट्र संघ का दावा है कि कोरोना के कारण बीस करोड़ से ज्यादा लोग बहुत ज्यादा गरीब हो जाएंगे. इसमें भारत के दो करोड़ तक लोग गरीबी रेखा की सीमा से नीचे आ सकते हैं. पिछले पन्द्रह सालों में भारत ने गरीब उत्थान की दिशा में बहुत काम किया है. दावा है कि सात करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीबी की सीमा रेखा से उबारा गया है लेकिन कोरोना काल में भारतीय अर्थव्यवस्था माइनस में चली गयी. (माइनस 24 फीसद पहली तिमाही में और माइनस 7.5 फीसद दूसरी तिमाही में) जानकारों का कहना है कि पूरे साल की विकास दर भी माइनस में रह सकती है.

कोरोना काल में भारत में करोड़ों लोगों की नौकरियां जा चुकी हैं. इसमें से बहुतों को रोजगार मिला है लेकिन करोड़ों अभी भी हाशिए पर ही हैं. भारत का साथ-साथ अन्य बहुत से विकासशील देशों का भी यही हाल रह सकता है. कहा जा रहा है कि जहां-जहां तानाशाह शासक हैं वहां लोगों की तकलीफें बहुत ज्यादा बढ़ी हैं. तानाशाहों ने भी सत्ता पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने के लिए कोरोना का फायदा उठाया है. लेकिन इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि कोरोना के बाद तानाशाहों की भूमिका बढ़ सकती है. जहां-जहां तानाशाह नहीं हैं वहां भी सत्तापक्ष अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या करने में लगा है. कहा जा रहा है कि कोरोना काल में सरकारें और ज्यादा निरंकुश हुई हैं, राज्यों की भूमिका घटाई गयी है, सरकारों ने अपनी मर्जी से वायरस की आड़ में सख्त और एकतरफ फैसले लेने शुरु किए हैं. इस कारण भी गरीबों की संख्या में आगे चलकर और ज्यादा इजाफा होने की आशंका व्यक्त की जा रही है.

इतिहास भी बताता है कि महामारी के बाद सामाजिक उथल-पुथल को बल मिलता है. आईएमएफ की एक रिपोर्ट कहती है कि महामारी फैलने के 14 महीनों बाद अशांति पैदा होती है और दो साल बाद चरम पर पहुंचती है. इस लिहाज से देखा जाए तो अभी कोरोना के अशांत काल में जी रहे हैं और जितनी भी सामाजिक उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं वह अगले एक साल में शिखर पर पहुंचने का अंदेशा जानकारों को सता रहा है. ऐसा नहीं है कि सब कुछ बुरा ही बुरा हो रहा है. हमारे यहां जैसे आपदा में अवसर की बात की जा रही है वैसा ही दुनिया भर में हो रहा है. कोरोना का वायरस मांस खाने की आदत के कारण हुआ. जानकारों का कहना है कि कोरोना के समय में ही मांस खाने की तादाद कम हुई है. यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है. हर साल फिर, भोजन और चमड़े के सामान के लिए 80 अरब जानवरों को मार दिया जाता है. उससे पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है लेकिन कम संख्या में जानवर मारे जाएंगे तो इससे पर्यावरण का भला होगा. अमेरिका से एक रिपोर्ट सामने आई है जो कहती है कि लोग अब ज्यादा समय रसोईघर में बिताने लगे हैं. कुछ नई चीजें बनाने में सहयोग करने लगे हैं. पत्नी का हाथ बंटाने लगे हैं.

होटल रेस्तरां बंद होने से जंग फूड खाने की आदत में कमी आई है. इससे मोटापा और इससे जुड़ी बिमारियों में कमी आई है. जानकारों का कहना है कि यह अगर सिलसिला बना तो लोगों का भला ही होगा. लोग परिवार के साथ समय बिताने लगे हैं. पूरा परिवार एक साथ ज्यादा देर तक समय बिताने लगा है. इससे आपसी मनमुटाव दूर हुए हैं, गिले शिकवे दूर हुए हैं, लोग ज्यादा नजदीक आए हैं, परिवार और पारिवारिक करीब के दोस्तों को ज्यादा समझने लगे हैं. हालांकि इसका दूसरा पहलू यह है कि ज्यादा समय घर में बिताने से आपस में पति पत्नि के झगड़े भी बढ़े हैं और तलाक के मामलों में भी तेजी आई है. लेकिन कुल मिलाकर परिवार ज्यादा करीब आए हैं. यह कोरोना काल की सबसे बड़ी देन कही जा सकती है. जहां लोग एक दूसरे की जरुरत महसूस करने लगे हैं. बुजुर्गों की चिंता करने लगे हैं. अमेरिका में तो पता चला कि कोरोना काल में बच्चों ने मां बाप से और मां बाप ने बच्चों से ज्यादा समय टेलिफोन पर मोबाइल पर बात की. ज्यादा बार एक दूसरे का हाल चाल पूछा, एक दूसरे को कोरोना से सावधान रहने के टिप्स बताए और जरुरी हिदायतें दी.

इस्राइल के लेखक युवाल नोआ हरारी का कहना है कि सरकारों को महामारी के कारण नागरिकों के घर में घुसने का उनकी जासूसी करने का, उनकी तमाम गोपनीय जानकारी हासिल करने का मौका मिल गया है. युवाल एक खतरनाक तस्वीर पेश करते हैं. वह कहते हैं कि अगर कोई सरकार तय करती है कि सभी नागरिकों को बायोमीट्रिक ब्रेसलेट पहनना होगा. इसकी निगरानी सरकार करेगी. इससे सरकार को पता चलेगा कि आपका तापमान कितना है, दिल की धड़कनों की क्या हालत है आदि-आदि. सरकार कहेगी कि वह तो ऐसा नागरिकों की भलाई के लिए कर रही है क्योंकि इससे सरकार को तबीयत के बारे में पता चल जाएगा और सरकार आपको राहत दे पाएगी. इससे संक्रमण को रोका जा सकेगा. लेकिन सरकार को यह भी पता चल जाएगा कि आप दिन भर में कहां-कहां गये, किस-किस से मिले और क्या-क्या काम किया. इसके अलावा सरकार जान पाएगी कि आप की भावनाएं क्या हैं, आप टीवी पर कौन सा कार्यक्रम देखना ज्यादा पसंद करते हैं, आप टीवी पर किस नेता के आने और भाषण देने पर टीवी देखना बंद कर देते हैं या पूरा भाषण सुनते हैं, आप रिएक्ट कैसे करते हैं, किसी सरकारी घोषणा पर आपका रवैय्या क्या रहता है आदि-आदि. यानि सरकार को आसानी से अंदाजा हो जाएगा कि इस बार के चुनावों में आप उसको दोबारा चुनने जा रहे हैं या नहीं. अगर नहीं तो किसको वोट देने का इरादा रखते हैं यह बात भी सरकार को पता चल जाएगी. लेखक का कहना है कि एक तरह से आप की हर हरकत सरकार की नजर में रहेगी और आप एक तरह से आजाद होते हुए भी गुलाम हो जाएंगे.

लेखक आगे कहते हैं कि आप कहेंगे कि यह सब तो कोरोना का टीका लगने के साथ ही खत्म हो जाएगा. लेकिन ऐसा हो जरुरी नहीं है. एक बार सरकार के हाथ में इतना बड़ा हथियार लग जाएगा तो वह भला क्यों इसे छोड़ना चाहेगी.  1948 में इस्राइल ने आपातकाल की घोषणा की थी. इसके तहत प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई, पुडिंग बनाने के लिए लोगों की जमीनें जब्त की गई. (पुडिंग की बात मजाक नहीं है). 1948 की जगह अब 2020 आ गया है लेकिन इस्राइल ने आजतक अधिकृत रुप से कभी घोषणा नहीं की है कि आपातकाल खत्म हो गया है. कागजों में यह अभी भी जारी है. उस समय के अस्थाई कदम अभी भी लागू हैं. अलबत्ता 2011 में जरुर पुडिंग बनाने के लिए जमीन छीनने का कानून खत्म कर दिया गया था.  ऐसा ही कुछ इस समय भी हो सकता है. कोरोना काल के बाद भी सरकार कह सकती है कि बायोमीट्रिक ब्रेसलेट पहनना अनिवार्य होगा क्योंकि कोरोना लौट कर आ  सकता है, भयावह रुप में सामने आ सकता है, रुप बदल कर सामने आ सकता है. या सरकार कह सकती है चूंकि अफ्रीका में इबोला है या बांग्लादेश में कोई अन्य वायरस है तो एहतियात के लिए ब्रेसलेट पहनना जरुरी है. कुल मिलाकर हमारी निजता पर पहले ही सरकार अतिक्रमण करती रही है और इतना बड़ा मौका मिलने पर वह उसे हाथ से कैसे जाने दे सकती है.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है)

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