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ब्राह्मण का IQ लेवल क्यों लगा हाई? IAS ऑफिसर नियाज खान ने बताया अपना निजी अनुभव

ये कोई मेरा वर्क ऑफ फिक्शन नहीं है जिसे मैं नॉवेल के रूप में लेकर आया हूं. इसे आप रियलिस्टिक फिक्शन कह सकते हैं, लेकिन जब हम कोई चीज लिखते हैं तो उससे पहले रिसर्च करते हैं. जब मैंने 3000-3500 वर्ष पूर्व ब्राह्मणों का इतिहास देखा तो पता चला कि चाणक्य जैसा एक महान बुद्धिजीवी ने जन्म लिया था, भगवान परशुराम भी हैं. कितने बड़े-बड़े विचारक, कितने बड़े-बड़े संत, इतना ही नहीं जो भी उनकी पूजा-पद्धति, पाठ और संस्कारों के साथ-साथ जब आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने देश व राष्ट्र के लिए भी काम किया है. तो ये सर्वविदित है कि इतिहास में इनकी उपलब्धियां शानदार रही हैं. ये तो कहने की बात नहीं है क्योंकि आईक्यू है तभी तो इतना अच्छा प्रदर्शन किया था.

मेरे किताब का बस थीम यही था क्योंकि इतिहास इनका एक हाई आईक्यू सिद्ध करता है. चूंकि हमारे देश में आज तमाम तरह की समस्याएं हैं अगर हम इनके दिमाग का इस्तेमाल उन समस्याओं के समाधान के लिए करें तो देश का विकास ज्यादा बेहतर ढंग से हो सकता है. ये मेरा व्यक्तिगत ओपिनियन है और मैंने इसी थीम को लेकर अपनी किताब ब्राह्मण द ग्रेट लिखा है.

अगर कोई चीज महत्वपूर्ण है तो उसे बोलना ही पड़ेगा. सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट जिसे चार्ल्स डार्विन ने दिया था उनका कहना था कि सिस्टम में वही टिक पाता हो जो फिट रहता है. आप अगर 3000 वर्षों का इतिहास देखें तो पता चलेगा कि कितनी बड़ी-बड़ी मुसीबत आईं, लेकिन ब्राह्मण हमेशा फिट रहे हैं और अगर आप अरब के यहूदियों कोॉ ले लीजिए तो हजारों साल से उनकी शानदार उपलब्धि रही है, क्योंकि उनका भी आईक्यू लेवल बहुत अच्छा था. श्वेतों ने पूरी दुनिया में अनेकों आविष्कार किए हैं. 

इतिहास इसका गवाह

तो जिस कम्युनिटी का समाज में बेहतर परफॉरमेंस रहा है, उसकी तो चर्चा होगी. अगर मैं ये बात कह रहा हूं तो इतिहास में रोज हम यहूदियों व ब्राह्मणों की उपलब्धियों की चर्चा करते हैं. तो मैं जब ब्राह्मणों की  उपलब्धियों की बात कर रहा हूं तो नई चीज नहीं है, ये तो पूरी दुनिया में है कि जिसके पास क्वालिटी है, एबिलिटी है तो उसकी तो चर्चा होगी न और यही मेरा काम है कि मैंने चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत पर ही ब्राह्मणों के बारे में अध्ययन किया है.

मैं एक लेखक हूं, न तो मैं एक समाज सुधारक हूं और ना हीं मैं एक राजनीतिक व्यक्ति हूं. मेरे पास एक विचार है और मैं एक नॉवेल लेकर आ रहा हूं और ये मेरा पर्सनल ओपिनियन है कि इनके विचारों को लेकर आ रहा हूं. मेरा जो विचार है उससे कोई कानून नहीं बनेगा, कानून तो देश ही बनाएगा. लेकिन हर व्यक्ति अपना सुझाव देता है कि अगर ऐसा हो जाए. हम तो कई तरह की बातें सोचते हैं कि हम विश्व गुरु बन जाए, सुपर पावर बन जाएं और भी तमाम तरह की बातें...तो हर कोई एक सपना देखता है. मेरा यही मानना है कि जिस प्रकार से इतिहास में इन्होंने शानदार परफॉर्मेंस किया था और वर्तमान समय में भी हमारा देश पूरी शक्ति के साथ आगे तो बढ़ ही रहा है, लेकिन अगर इनको भी बेहतर अवसर मिल जाए या इन्हें ब्रेन के फील्ड में लीड रोल में खड़ा कर दिया जाए तो हमारा देश और बेहतर हो सकता है...हम भी सुपर पावर बनने की तरफ बढ़ सकते हैं.

ब्राह्मण परिवार को निकटता से देखा

मैं तो पढ़ा लिखा हूं, बचपन से ही ब्राह्मण परिवार से निकटता रही है. बड़े-बड़े स्कॉलर, विद्वान और बुद्धिजीवियों से मैं जुड़ा रहा हूं..मेरे साथ भी जो ब्राह्मण छात्र रहे हैं हमेशा उनका अच्छा प्रदर्शन रहा है. आज भी जिस सिस्टम में मैं काम कर रहा हूं और जहां भी ये लोग बैठे हैं ये तो मैं क्या अगर आप किसी से भी पूछ लें कि क्या ब्राह्मण के अंदर योग्यता है तो आपको हर व्यक्ति कहेगा हां योग्य तो हैं. अभी भी आप किसी भी टेक्निकल फील्ड या डॉक्टरी, इंजीनियरिंग या किसी और क्षेत्र में 10 लोगों का नाम ले लें तो आपको उसमें से एक ब्राह्मण का नाम अवश्य देखने को मिलेगा. क्योंकि जो काबिल है तो वो कहने की बात नहीं है क्योंकि हम अगर ब्राह्मण योग्य हैं और इसे कहना गलत है तो फिर यहूदी व श्वेत को भी बुद्धिमान कहना गलत होगा. तो जो मैं कह रहा हूं उसका इतना लंबा-चौड़ा इतिहास है उन्होंने पूरा सोशल स्ट्रक्चर खड़ा किया है इतने वर्षों में.  

लोकतंत्र के बाद एक हमारी संवैधानिक व्यवस्था आ गयी है तो लोग बोल नहीं पा रहे हैं, लेकिन सत्य तो सत्य ही रहेगा ना उसका आप खंडन नहीं कर सकते हैं और मैं ये तो नहीं कह रहा हूं कि कोई ब्राह्मण इस देश में रूल करें. मैं तो ये कह रहा हूं हम लोग सब मिलकर के ब्राह्मणों को रूल दें, कंधे से कंधा मिलाकर चलें पूरी किताब के अंदर आपको कहीं जातिवाद नहीं मिलेगी. कहीं वर्ण व्यवस्था का समर्थन नहीं किया गया है और न कोई नफरत की भावना है. विचार तो ये है कि ब्राह्मण जहां रहता है विचार का संदेश देता है. प्रेम की धारा बहाता है. पूरे देश को मजबूत बनाता है और ब्राह्मण एक महान देश भक्त होता है. उसको लीड रोल देने में हमारा समाज खंडित नहीं होगा बल्कि हमारा देश और शक्तिशाली होगा. 

इसलिए किताब का टाइटल भले हीं ब्राह्मण द ग्रेट है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि बाकी जातियों पर कोई आक्षेप लगाया गया है.  किताब के अंदर एक देश भक्ति का और सभी धर्मों के बीच में समन्वय का और देश की विकास की बात की गई है.

जब मैंने चारों वेदों के एक हजार से ज्यादा मंत्र पढ़ा काफी गहराई के साथ तो ओवरऑल मुझे ये लगा कि हमारे देश में इन्होंने जो भी क्रिएशन किया है या जो सोशल स्ट्रक्चर हमारे देश का है वो उन्होंने ही खड़ा किया है. आज भी देख लीजिए कि देश के अंदर जन्म से लेकर मृत्यु तक कोई भी संस्कार बिना ब्राह्मणों के संभव नहीं हैं या आध्यात्मिक शांति के लिए या हम अपने पर्वों की बात करें तो हर जगह ब्राह्मणों की एक छाप पड़ी हुई है तो ब्राह्मण हमारे देश का एक इंटीग्रल हिस्सा हैं और ये बात भी सही है कि लोकतंत्र के अंदर खासकर के कोई कानून का दायरा नहीं हैं. संविधान में प्रावधान है कि किसी को हम जाति के आधार पर किसी के सुपीरियर होने पर हम कोई कानून प्राप्त कर दें. 

मेरा मतलब ये  है कि जो वेदों के अंदर ब्राह्मणों को दायित्व दिये गये थे जैसे स्पिरिचुअल का काम था, एडवाइस देने का काम था और जब मैं अपने यहां देखता हूं तो पाता हू कि कोई टी बेच रहा है कोई फल बेच रहा हैं कोई स्टॉल लगाकर रखा हुआ है यहां तक की लॉन्ड्री की दुकान लगाते हुए देखा मैंने... तो जितने भी ब्राह्मण आज पूरे भारत में व्यवसाय कर रहे हैं तो वो आप वेदों और
शास्त्रों के अंदर आप सोच नहीं सकते थे जिस तरह का काम उनको आज करना पड़ रहा है तो निश्चित रूप से मन में एक दर्द भी होता है कि एक वैदिक धर्म के अंदर ब्राह्मणों के पास हजारों वर्षों तक धर्म और अध्यात्म का फील्ड उनके हाथ में रहा है. तो जब मैं ये सब देखता हूं तो मुझे बहुत पीड़ा होती है जो मैंने अनुभव किया है.

देखिये, हम कोई कानून तो नहीं बना सकते लेकिन हम उनको एक सलाहकार के रूप में रखें. उनको मंच दें, उनकी बातों को सुनें. बड़े-बड़े मनीषी हैं, बड़े-बड़े विद्वान हैं. हमलोग बड़े- बड़े कार्यक्रम करते हैं तो वो हर स्तर अपने अच्छे सुझाव दे सकते हैं. ये जरूरी नहीं कि हम ऑफिशियल पद पर बैठ कर इनका सहयोग ले सकते हैं. लेकिन हम अच्छे निर्णय के लिए एक सलाहकार के रूप में इनसे अच्छे विचार तो ले ही सकते हैं. और धार्मिक क्षेत्र में इनको और अवसर मिल. हमारी संस्कृति और आगे बढ़े..इनके वेदों का भरपूर अध्ययन किया जाए.

पूर्व में जो पर्यावरण को लेकर या जो संस्कृति की बातें थीं इन सब में ब्राह्मणों को लीड करने का रोल दिया जाना चाहिए. आज हम क्लाइमेट चेंज की बात कर रहे हैं तो पूरा वेद में तो प्रकृति को संवारने और बचाने की ही बात हो रही है. तो ब्राह्मण को अगर पूरा अवसर मिले तो वे इस रोल में पर्यावरण को और धरती को बचाने में महत्वपूर्ण रोल निभा सकते हैं. इसलिए

भले ही लोकतंत्र में कोई कानून हीं है लेकिन हम उनको एक उचित सम्मान देकर उनसे सहयोग ले सकते हैं और कुछ नहीं कर सकते हैं तो कम से कम सम्मान का भाव उनके अंदर तो बढ़ा ही सकते हैं.

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ओपिनियन

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