Opinion: दिल्ली में AAP आपदा तो भाजपा विपदा, जनता इस बार चाहती है परिवर्तन यानी कांग्रेस
दिल्ली की जनता इस बार एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रही है. वह कांग्रेस की तरफ लौट रही है और ये मैं यूं ही नहीं कह रही. इस समय मैं कालकाजी की गलियों में घूम रही हूं, जो दिल्ली की "टेंपररी मुख्यमंत्री"- जैसा कि केजरीवाल जी ने आतिशी मार्लेना के बारे में कहा- उनका क्षेत्र है. बदलाव यहां दिख रहा है. नयी दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से संदीप दीक्षित जी, जो 10 साल सांसद भी रहे, वह बहुत मजबूत स्थिति में हैं. उनका तो व्यक्तिगत मामला भी है, क्योंकि उनकी माताजी शीला दीक्षित पर बहुतेरे आरोप लगाए गए, अपमानित किया गया. वो अपनी मां के किए कामों और अरविंद केजरीवाल ने जो दस वर्षों में किया हो, उसके आधार पर जनता के पास जा रहे हैं. हमने मजबूत उम्मीदवार उतारे हैं, दिल्ली की जनता का हमको समर्थन मिल रहा है और ये बदलाव की तरफ क्यों बढ़ रहे हैं क्योंकि दस साल कम नहीं होते. तीन टर्म मिले थे केजरीवाल और उनकी पार्टी को. सातों सांसद मोदी के नाम पर भाजपा को मिले. नगर निगम भी अब आम आदमी पार्टी का था. दोनों को मिलकर शासन-प्रशासन चलाना था, दिल्ली के लिए काम करना था, लेकिन दोनों लगातार लड़ते रहे, दिल्ली की बेहतरी के लिए कुछ करने के बजाय, वो आपस में झगड़ते रहे, दिल्ली की जनता पिसती रही.
काम हुए थे. शीला दीक्षित मुख्यमंत्री थीं. अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. राजनीति से ऊपर उठकर दोनों ने काम किया. साथ मेट्रो का उद्घाटन हुआ था. ये नजारा देखने के लिए दिल्ली तरस गयी. हालांकि, अपनी बारी आने पर दोनों नहीं लड़ते. शीश महल की बात हो रही है. 33 करोड़ रुपए खर्च हुए, तब एलजी नहीं कुछ भी बोले. केजरीवाल शराब नीति लाए तो एलजी ने नहीं रोका. दोनों के लड़ने की वजह से दिल्ली अब कांग्रेस की तरफ देख रही है. मैं महिला विधायक के तौर पर लड़ रही हूं, तो जानती हूं कि लोग नाराज हैं.
शराब नीति का आतिशी मार्लेना को विरोध करना चाहिए था. क्यों शराब की एक पर एक बोतल फ्री दी गयी? क्यों युवाओं के शराब पीने की उम्र घटाकर 21 कर दी गयी? जनता इन सब का जवाब तो मांग ही रही है. भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे. एक-एक मंत्री को पद गंवाना पड़ा, जेल जाना पड़ा. जनता में नाराजगी है. मेरे सामने रमेश विधूड़ी हैं भाजपा से. कालकाजी की जनता पूछ रही है कि वो तो दस साल सांसद रहे. क्या किया? सांसद आपके, नगर निगम आपका, केंद्रशासित प्रदेश..और आपने क्या किया?
उस पर से उनकी भाषा देखिए. एक सांसद के तौर पर सदन में जो सड़कछाप भाषा थी, सड़क पर जो बयान उन्होंने दिया, वह तो सड़कछाप से भी नीचे कहा जाएगा. विकास की बात करने के बजाय आपकी नजर हमारी बहन-बेटियों के गालों पर है. कहा कि आऊंगा तो सड़कें प्रियंका गांधी के गाल की तरह बना दूंगा. लोग इससे गुस्से में हैं. विधूड़ी ने आतिशी मार्लेना पर भी व्यक्तिगत टिप्पणी की. वह भावुक हो गयीं. मैं तो कहती हूं कि आतिशी भावुक होने की जगह लडे़ं. अलका लांबा लड़ती है, लड़ी है. ओपी शर्मा नाम है बीजेपी के विधायक का. 2015 की बात है. मेरे ऊपर टिप्पणी की तो मैं वेल में आ गयी थी. स्पीकर को सदन रोक कर मुझसे माफी मंगवानी पड़ी. एक साल के लिए भाजपा का विधायक सस्पेंड रहा. कोर्ट गए थे, लेकिन राहत नहीं मिली. मैं लड़ी क्योंकि बात केवल मेरी नहीं, दिल्ली की बहन-बेटियों की है.
आतिशी तब भी खामोश रहीं, जब अरविंद केजरीवाल ने उनको टेंपररी सीएम कहा था. अरे, सीएम होता है, डिप्टी सीएम होता है, ये टीसीएम क्या हुआ...तो, जो आतिशी खुद के लिए नहीं लड़ पायीं, वो जनता के लिए क्या लड़ेंगी? आतिशी ने क्या किया है, उनकी विधानसभा क्षेत्र को तो आदर्श होना चाहिए था. उनकी ही पार्टी की राज्यसभा सांसद हैं स्वाति मालीवाल..वो वीडिय कर के दिल्ली का नर्क दिखा रही हैं. मैं जब विधायक मात्र थी, तो गणतंत्र दिवस की झांकी में नयी दिल्ली और कालका की झांकी नहीं गयी थी, लेकिन चांदनी चौक की झांकी गयी थी. मुझे गर्व है कि मैंने 2015-20 के दौरान लालकिला, शीशगंज गुरुद्वारा, सेंट स्टीफंस, भाई मतिदास चौक इत्यादि का सौंदर्यीकरण किया था. विकास के मुद्दे पर हम लड़ रहे हैं.
मैं दिल्ली में ही रही, यहीं पर पली और बड़ी हुई. तीस वर्षों का मेरा राजनीतिक-सामाजिक अनुभव है. आज से 30 साल पहले जब मैं दिल्ली विश्वविद्यालय का चुनाव लड़ी, तीन लाख से अधिक छात्र थे, 50 हजार से अधिक वोट से जीती. मैं दिल्ली को जानती हूं. 2003 में पार्टी ने मुझे मदनलाल खुराना के सामने खड़ा किया. मुझे फख्र हुआ और मैं दम से लड़ी और 2003 में हमारी सरकार बनी. उसके बाद आदेश हुआ कि चांदनी चौक से लड़ो, तो मैं वहां से लड़ी और जीती. 2015 से 2020 तक विधायक रही. दिल्ली का कोना-कोना मेरा परिचित है. ऐसा नहीं कि जहरीली हवाएं किसी खास जगह हैं, मुद्दे जो हैं, वो तो पूरी दिल्ली में एक समान ही हैं. हवाएं जहरीली हैं, हेल्थ एक्सपर्ट कह रहे हैं कि यहां सांस की बीमारी महामारी का रूप लेगी. अदालतें बोल रही हैं कि आपसी लड़ाई में आप लोगों ने गैस चेंबर बना दिया. शीला दीक्षित ने भविष्य को देखते हुए काम किया.
हरी दिल्ली, मेरी दिल्ली का नारा दिया और काम किया. सोचिए, अगर उन्होंने मेट्रो, सीएनजी इत्यादि पर नहीं किया होता, तो क्या होता? यमुना को जहरीले झाग के पानी में हम छठ में अपनी मां-बहनों को देखते हैं. 10 साल में इन्होंने क्या किया? आतिशी मार्लेना को देखिए, वह कहती हैं कि अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री बनाइए. जब जनता कोविड में सांस के लिए तरस रही थी, तब ये शीशमहल बना रहे थे. मुख्यमंत्री का आवास कोई स्थायी नहीं होता. उसमें तो मदनलाल खुराना से लेकर साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित इत्यादि सब रहीं हैं वर्षों तक. किसी ने कुछ नहीं किया, लेकिन केजरीवाल ने शीशमहल बनवा दिया. अब ये एक्सपोज हो गए हैं. कांग्रेस 70 की 70 सीटों पर अपने मुद्दे, अपना विजन लेकर लड़ रही है.
केजरीवाल बहुत बड़ा धोखा हैं. मैं धन्यवाद करती हूं पंजाब की बहनों का जो समय आने पर केजरीवाल को घेरने पहुंच गयीं. कहा कि भगतसिंह की झूठी कसम खायी. 36 महीने हो गए, लेकिन एक पैसा किसी के अकाउंट में नहीं पहुंचा. उन्होंने केजरीवाल को एक्सपोज भी किया और दिल्ली की बहनों को बचा भी लिया. आज केजरीवाल हार रहे हैं, तो लालच दे रहे हैं. हमने किया. कर्नाटक में शिवकुमार जी हैं. उन्होंने पासबुक दिखाया. हमने महंगाई से लड़ने के लिए अगर वादा किया तो दिया. मैं केजरीवाल और भगवंत मान को चुनौती देती हूं, अगर वो दिखा दें कि एक पैसा किसी भी बहन के अकाउंट में गया हो. हमारे नेता राहुलजी ओखला मंडी गए, वहां लोगों ने उनसे कहा कि महंगाई है और ये दोनों तो कोई मदद दे नहीं रहे हैं.
राहुल जी ने प्यारी दीदी योजना का वादा किया. इसके तहत हम 2500 रुपए हरेक महीने महिलाओं को महंगाई से लड़ने के लिए देंगे. स्वास्थ्य का सवाल है तो हवा-पानी सब जहरीली है. हम 25 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा हरेक व्यक्ति का मुफ्त कराएंगे. कोरोना महामारी में मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री सभी निजी अस्पतालों में करवा रहे थे. कांग्रेस की सरकार ने राजस्थान और कर्नाटक में यह किया है. केजरीवाल ने तो झूठ बोला है. प्रधानमंत्री जी भी सुनें. केंद्र शासित राज्य है दिल्ली और आप कहते हैं कि आम आदमी पार्टी आपदा है. अगर वो आपदा हैं तो आप विपदा हैं. आपदा औऱ विपदा के बीच दिल्ली की जनता पिस रही हैं. मैं दिल्ली हूं और लड़ रही हूं. कालकाजी में मेरी सीधी लड़ाई टेंपररी मुख्यमंत्री से है. रमेश विधूड़ी लड़ाई से बाहर हो चुकी हैं. वह तो अरविंद केजरीवाल के नाम पर लड़ रही हैं. आप अपने काम पर क्यों नहीं वोट नहीं मांग रही हैं?
जहां तक इंडिया एलांयस के दल की कांग्रेस से नाराजगी की बात है तो वो सभी क्षेत्रीय दल हैं. उन्होंने जो जमीन हासिल की है, वो उन्होंने कांग्रेस को खत्म करके हासिल की है. जब देश की बात आयी, संविधान की बात आयी, वन नेशन, वन इलेक्शन की बात आयी, किसानों की बात आयी, तो इंडिया अलायंस राष्ट्रीय मुद्दों पर एक था, एक रहेगा. क्षेत्र की बात जब आएगी, तो स्वाभाविक है कि कांग्रेस के उठने पर ये खतरे में आ जाएंगे. इनको पता है. पंजाब में हम ही थे न, दिल्ली में कौन था, बंगाल का इतिहास उठा लीजिए. लोगों ने कहा कि केजरीवाल से गठबंधन हमारी भूल थी. लोगों ने नाराजगी जतायी. हमें भारी नुकसान हुआ. हरियाणा में नुकसान हुआ. ये कुरुक्षेत्र भी हार गए. पंजाब में गठबंधन नहीं था, तो हम जीते. संदेश साफ था. 70 पर लड़ने का आदेश हुआ, हम कर रहे हैं.
इस बार विश्वास के साथ मैं ये कह रही हूं कि केजरीवाल वापस नहीं आ रहे हैं. अदालत ने बांध दिए हैं हाथ आपके. पूछने पर आप कहते हैं कि आतिशी टेंपररी हैं, मैं बनूंगा. कैसे बनेंगे...अदालत ने तो कह दिया है कि आप फाइल नहीं साइन करेंगे, अधिकारियों की मीटिंग नहीं बुलाएंगे. कुछ नहीं करेंगे. आपका भ्रष्टाचार के चलते इस्तीफा मजबूरी में देना पड़ा. केजरीवाल चुनाव हार रहे हैं. वो हमारे वोट थे. हमारे लोग थे, जिनको आप ले गए. मटियामहल की बात कीजिए या फिर चांदनी चौक...कितने उदाहरण दूं. ये तो कांग्रेस और भाजपा के ही लोगों को ले जा कर लड़ा रहे हैं. भाजपा का ये आठवां चुनाव है. 1991 में उनको मौका मिल गया था. तीन सीएम इन्होंने दे दिए. टेंपररी थे तीनों. इस खेल से अब दिल्ली बाहर आना चाहती है. कांग्रेस परमानेंट मुख्यमंत्री देकर दिल्ली की परमानेंट समस्याओं का हल करने जा रही है.
[नोट- ये ओपिनियन कांग्रेस नेता और कालजी से कांग्रेस पार्टी की प्रत्याशी अलका लांबा के साथ बातचीत पर आधारित है. उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]