केन्द्रीय जांच एजेंसी ईडी ने कहा कि दिल्ली आबकारी नीति मामले में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी को आरोप बनाएगी. ये अपने आप में पहला इस तरह का केस बनेगा, जिसमें एक राजनीतिक पार्टी को आरोपी बनाया जाएगा. कॉर्पोरेट के मामलों में तो ऐसा पहले भी हुआ है, लेकिन राजनीतिक पार्टी को कभी आरोपी नहीं बनाया गया. ऐसे में सवाल उठता है कि इसका क्या कुछ असर होगा? दरअसल, सुनवाई के बीच में ये आया कि कोर्ट की तरफ से जांच एजेंसी को कहा गया था कि आप ये कह रहे हैं कि इनके पास पैसे नहीं मिलेंगे क्योंकि बेनिफिशयरी कोई और है. ऐसे में फिर बेनिफिशियरी कौन है?
इसके जवाब में जांच एजेंसी ने कहा कहा था कि बेनिफिशियरी पॉलिटिकल पार्टी है. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि फिर पॉलिटिकल पार्टी को आरोपी बनाएं. जहां तक पीएमएलए एक्ट की बात है तो इसमें कई कंपनियों को आरोपी बनाया जा चुका है और कंपनी को बना भी सकते हैं.
ऐसे में अगर पीएमएलए एक्ट में संशोधन भी करते हैं तो या इस तरह की प्रक्रिया शुरू करने का विचार भी करें तो जितने भी चंदे आते हैं, जितने भी राजनीति पार्टियों को चंदा दिया जाता है, ये सारा कुछ उसके दायरे में आ जाएगा.
जहां तक पार्टी की गतिविधि है तो उसको लेकर कभी कई पार्टी आरोपी नहीं बनी है. परोक्ष रुप से ये था कि हमारे कानून इसकी इजाजत नहीं देता है. जब एक्ट ही इसकी इजाजत नहीं देता है तो फिर आप किसी राजनीतिक पार्टी को किस तरह से आरोपी बना सकते हैं?
पार्टी पर आरोप साबित करना बहुत मुश्किल
किसी भी पार्टी का पॉलिटिकल चंदा उठाकर देखें तो वह अलग-अलग समय पर दिया गया है और उनके जो मामले हैं वो सरकारों के सामने लंबित है. आप किसी बड़े व्यवसायी का नाम ले लें, उनकी तरफ से चंदा हर बड़े पॉलिटिकल पार्टीज को जाता है. वे लोग जो पार्टी सत्ता में होती है... कांग्रेस को भी देते हैं, बीजेपी को भी देते हैं और उससे उनकी सरकारों में कहीं न कहीं काम भी हो रहे होते हैं. या मान लीजिए मैरिट पर ही हो रहा है. मैं ये नहीं कहता कि उन्होंने गलत तरीके से ही काम कराया हो रहा हो.
लेकिन, अगर आप ब्यूरोक्रेट हैं या फिर कंपनी है तो तब तो आप सौ परसेंट सीसीएस के अभियुक्त बनेंगे. लेकिन जहां तक राजनीति पार्टियों की बात है तो एक्ट उसकी इजाजत नहीं देता है. अब जैसे एनजीओ को ही सें... एनजीओ को अभिुयक्त बनाया गया है. मगर राजनीतिक दल कभी अभियुक्त नहीं बना है.
पीएमएलए एक्ट का सेक्शन 70 है, ये भी कंपनियों के बारे में ही बात करता है, राजनीतिक दलों के बारे में बात नहीं करता है. ऐसे में ये देखना होगा कि किस तरह से राजनीतिक दल को आरोपी बनाया जाता है. ऐसे में विपक्षी दल जो भी होगा, उसे आगे इसके बाद जरुर दिक्कत होगी. अगर यही फॉर्मूला सत्ताधारी पार्टी के ऊपर लगता है तो उनके लिए भी मुश्किलें आ जाएंगी.
सबसे बड़ी बात ये हैं कि अगर ईडी और सीबीआई ने साथ-साथ केस रजिस्टर किया तो वे दोनों एक साथ अलग-अलग तरीके से उस अपराध की जांच कर सकती है, क्योंकि चार्ज तो मनीलांड्रिंग का ही लग रहा है कि पैसा इस चीज के बदले लिए और यहां पर खर्च किया. यानी, परोक्ष तौर पर घूस के पैसों को मनीलांड्रिंग के दायरे में लाकर ही खर्च कर रहे हैं.
सिर्फ बयानबाजी है
मेरी समझ के हिसाब से राजनीति पार्टी को आरोपी बनाना एक बड़ी टेढ़ी खीर साबित होगी. ऐसे किसी राजनीतिक पार्टी को अभियुक्त नहीं बना सकते, खासकर चंदे के आधार पर.
चंदा को भी कैसे स्थापित करेंगे. अगर इनके पास ट्रेल होता तो वे अब तक सामने ला चुके होते. अब कोई ये बोले कि खाना खा रहे हो तो वो पैसा किसी घूस में आया है, या कोई पॉलिटिकल एक्टिविटी घूस के पैसे से हुई है तो ये सिर्फ एक बयान है. इसमें कोई सबूत नहीं होगा और न ही ऐसे मामलों में सबूत ला सकते हैं.
ये महज बयानबाजी है, जो राजनीति में कई बार जरूरी होता है. बाकी मुझे नहीं लगता कि ये मामला कानूनी तौर पर चल सकता है और इसे जांच एजेंसी की तरफ से साबित किया जा सकता है.
वैसे तो बिना पार्टी को आरोपी बनाए ही पूरी पार्टी को आरोपी बना लीजिए. जिन-जिन लोगों ने पार्टी के लिए भाषण दिया है, चुनाव प्रचार किया है, अगर आप पकड़ना चाहते हैं तो इस आधार पर आरोप लगा सकते हैं.
आप ये बोल सकते हैं कि किसी व्यक्ति ने पैसे लिए हैं, किसी राज्य में चुनाव में पैसे खर्च करने के लिए. इसमें जो भी लोग शामिल होने गए थे, सबको फ्रेम कर सकते हैं. ऐसे में तो जद में पूरी पार्टी आ सकती है, 20-21 पार्टी के नेता इस दायरे में आ सकते हैं.
एक बात ये भी है कि जब आप पूर्ण राज्य के दायरे में नहीं आते हैं तो अपने हाथ को बांधकर काम करना चाहिए. ये बात भी पार्टी को समझनी होगी. लेकिन, जहां तक मेरी समझ है तो जब इस तरह से केन्द्रीय एजेंसी किसी पार्टी के ऊपर आरोप साबित करने की कोशिश करेगी, तो बाकी जगहों पर भी ऐसे मामले आएंगे.
राजनेताओं पर नहीं टिकता भ्रष्टाचार का मामला
एक हकीकत ये भी समझनी होगी कि राजनेताओं पर भ्रष्टाचार के मामले कभी नहीं टिकते. आम आदमी पार्टी अब नेशनल पार्टी हो गई है. ऐसे में जांच का दायरा बढ़ाया जाएगा तो राजनीतिक दल की जांच अलग तरीके से होगी. अगर राजनीतिक पार्टी दोषी पाई जाती है तो ये देखना है कि चुनाव आयोग कहां तक जा सकता है और किस स्तर तक कार्रवाई की जा सकती है.
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