कर्नाटक में BJP अगर जीती तो ये उसके समर्थन से अधिक कांग्रेस-विपक्ष के खिलाफ होगा जनादेश, कांग्रेस ने तश्तरी में सजाकर दिए मुद्दे
आज शाम यानी 8 मई को पांच बजे कर्नाटक चुनाव के लिए प्रचार थम जाएगा. कांग्रेस और बीजेपी ने पूरा दम लगा दिया है, आज चुनाव प्रचार में और जेडी (एस) भी पीछे नहीं है. कर्नाटक की 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए 10 मई को मतदान होगा और 13 मई को नतीजे घोषित किए जाएंगे. बीजेपी के लिए ये पहली बार है जब उसके चुनाव जिताऊ नेता बी एस येदियुरप्पा चुनाव प्रचार की कमान नहीं संभाल रहे हैं. बीजेपी का पूरा जोर इस पर है कि वह कर्नाटक के इस मिथक को तोड़े कि सत्ताधारी पार्टी चुनाव के बाद वापसी नहीं करती, तो कांग्रेस अपने लिए गिने-चुने राज्य बचाने की कवायद में लगी है. 40 फीसदी कमीशन की सरकार और बेरोजगारी-इंफ्रास्ट्रक्चर के मुद्दों से होता हुआ यह चुनाव 'बजरंग दल' पर बैन के वादों तक पहुंच गया. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को जहां 100 करोड़ का नोटिस मिलने की बात आई, तो वह बजरंगबली की जय का नारा लगाते भी नजर आए. कर्नाटक में जीते-हारे कोई भी, लेकिन जमीनी मुद्दों की बात अब किसी भी पार्टी के एजेंडे में नहीं है.
बीजेपी के लिए हरेक चुनाव 'जीतो या मरो' जैसा
नरेंद्र मोदी जब से प्रधानमंत्री बने हैं, तब से लगभग हरेक चुनाव ही उनकी लोकप्रियता, उनके शासन, उनकी सरकार और बीजेपी के भविष्य पर जनादेश की तरह माना जाता है. अगर याद करें तो पहली बार सरकार बनने के साल भर के अंदर दिल्ली में ईसाइयों पर हमले की खबरें उठीं, फिर जेएनयू-जादवपुर यूनिवर्सिटी में बवाल हुआ और अगले लोकसभा चुनाव के पहले बीजेपी मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र इत्यादि जैसे बड़े राज्य हार चुकी थी. तब भी नरेंद्र मोदी को चुका हुआ घोषित किया गया, यह कह दिया गया कि उनका जादू उतर गया है और वह खत्म हैं. हालांकि, 2019 में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने और भी जोरदार तरीके से वापसी की, वह भी नोटबंदी, अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जीएसटी जैसे तमाम 'गैर-लोकप्रिय' और 'कठोर' फैसले लेकर. अब कर्नाटक चुनाव को मोदी का लिटमस-टेस्ट बताया जा रहा है, लेकिन यहां समझना चाहिए कि अव्वल तो यह एक राज्य का चुनाव है, दूसरे हरेक चुनाव में बीजेपी इसी तरह अपनी पूरी ताकत झोंकती है. दिल्ली में वह बुरी तरह चुनाव हारे, पंजाब में हारे लेकिन उनके मंत्रियों से लेकर खुद प्रधानमंत्री तक ने इसी तरह चुनाव प्रचार किया.
अभी ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों का ले सकते हैं. वहां मुख्यमंत्री आदित्यनाथ एक दिन में पांच-पांच सभाएं कर रहे हैं. ऐसा लग रहा है, जैसे विधानसभा चुनाव का प्रचार उनके जिम्मे है. उनके मंत्री भी सड़कों पर उतरे हैं और बीजेपी का हरेक कार्यकर्ता अपने वोटर को निकालने की तैयारी में जुटा है. इसके उलट देखिए तो मायावती महज ट्विटर पर सिमट कर रह गयीं हैं और अखिलेश इस चुनाव को इतना हल्का मानकर चल रहे हैं कि सारा जिम्मा पार्टी के दूसरे नेताओं पर छोड़ रखा है.
कर्नाटक का नतीजा महत्वपूर्ण है, लेकिन...
भारतीय जनता पार्टी के लिए कर्नाटक के नतीजे महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है कि यह सीधा पीएम मोदी के नेतृत्व को ही प्रभावित करेगा. अभी लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के भी चुनाव होने हैं. मतलब, कर्नाटक चुनाव तो चुनावों की शृंखला में बस पहली कड़ी है. हां, अगर बीजेपी कर्नाटक जीत लेती है तो जाहिर तौर पर पार्टी का आत्मविश्वास बहुत बूस्ट होगा और वह आनेवाले विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के लिए नए अंदाज के साथ तैयारी करेगी. वहीं, अगर वह कर्नाटक हारती भी है तो ऐसा नहीं होगा कि बीजेपी की दुनिया ही लुट गई या खत्म हो गई. उसके लिए यह 'जस्ट अनदर पोल' है.
वहीं, कांग्रेस को देखें तो चुनाव प्रचार के शुरुआती दौर में उसने खासी बढ़त बना ली थी. बीजेपी के प्रति एंटी-इनकम्बेन्सी, 40 फीसदी कमीशन सरकार के लगभग स्थापित नैरेटिव और आपसी गुटबंदी को खत्म कर उसने बीजेपी के ऊपर निर्णायक बढ़त सी बना ली थी. तभी वह हुआ जो सचिन तेंदुल्कर के साथ कई मैचों में हुआ, जब वो नर्वस नाइनटीज के शिकार हुए. कांग्रेस ने लगभग तश्तरी में सजाकर भाजपा को वे मुद्दे दे दिए, जिनके ऊपर उसकी मास्टरी है. 'बजरंग दल' पर बैन की बात करने तक तो मामला फिर भी ठीक था, लेकिन उसे अपने घोषणापत्र में जगह कांग्रेस ने क्या सोचकर दी, ये उसके रणनीतिकार ही बेहतर बता सकते हैं. बजरंग दल की प्रतिबंधित पीएफआई से तुलना करना और बयानबाजी तो कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी भारी पड़ी और विश्व हिंदू परिषद-बजरंग दल ने उनको 100 करोड़ रुपए का कानूनी नोटिस भी भेज दिया. भ्रष्टाचार और रोजगार-इंफ्रास्ट्रक्चर की बातचीत करते-करते कांग्रेस को हिंदुत्व के मसले को उठाना क्यों जरूरी था, यह शायद ही समझ में आए. ऐसा इसलिए, क्योंकि 'हिंदुत्व' तो भाजपा का होम-टर्फ है और वह इसकी मास्टर है. इस बात को राहुल गांधी से बेहतर कौन जान सकता है, जिन्होंने पिछले चुनावों में धोती और जनेऊ पहनने, दत्तात्रेय गोत्र बताने और मंदिर-मंदिर भटकने का काम किया, लेकिन उनके हाथ एक बड़ा शून्य ही आया.
कांटे की टक्कर, पर मोदी हैं फैक्टर
फिलहाल, कांग्रेस की लीड अभी भी बनी हुई है. हालांकि, पीएम मोदी के ताबड़तोड़ दौरों, रैलियों और कई किलोमीटर लंबे रोडशो ने चीजों को बीजेपी के पक्ष में संतुलित किया है. लंबे समय से दक्षिण की राजनीति को देखने वाले पत्रकार ओ राजगोपालन की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है कि कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही बिल्कुल बराबरी पर हैं, लेकिन बीजेपी के पास मोदी फैक्टर है, जो 2 से 3 परसेंट वोट को इधर-उधर करने की ताकत रखता है. मोदी अच्छे कम्युनिकेटर हैं और वह किसी भी राज्य की जनता से पर्सनल कनेक्ट बनाते हैं. कर्नाटक में आते ही उन्होंने अपने ऊपर लगे गालियों की संख्या 91 बताई और कांग्रेस जो आज तक 'एक्ट' कर रही थी, अब 'रिएक्ट' करने लगी. भले ही कांग्रेस के बड़े नेताओं प्रियंका, राहुल से लेकर खरगे तक ने पीएम का इस मसले पर मजाक बनाने की कोशिश की, कांग्रेस ने ट्विटर पर 'क्राईपीएमपेसीएम' ट्रेंड तक करवाया, लेकिन मोदी अपनी बात पहुंचा चुके थे. बाकी काम उन्होंने बजरंगबली की जय बोलकर कर दिया औऱ हमेशा की तरह कांग्रेस को हिंदू-विरोधी साबित करने में कामयाब रहे.
राजगोपालन कहते हैं कि मोदी के पास जो 2 से 3 परसेंट वोट झुकाने की ताकत है, वह 'डिजिटल जेनरेशन' हैं. इस पीढ़ी को ही जेनरेशन जेड या जेन ज़ी कहते हैं. ये 18 से 25-27 साल के वे युवक-युवतियां हैं, जो भारत के आनेवाले कल पर यकीन करते हैं. उस कल पर जिसका वादा मोदी करते हैं. इन लोगों को मोदी में एक रॉकस्टार दिखते हैं और बड़ी हैरानी की बात है कि लगभग 70 के मोदी पर तो ये फिदा हैं, लेकिन राहुल गांधी उस तरह की अपील अपने लिए पैदा नहीं कर पा रहे हैं. राहुल की छवि एक विज़नलेस और दिशाहीन नेता की बन गई है, जिस पर मीम ही बनाए जा सकते हैं.
भाजपा अगर इस चुनाव में किसी तरह जीत जाती है, तो यह उसकी जीत से अधिक कांग्रेस और विपक्ष की हार का मैंडेट होगा. बीच चुनाव में बजरंग दल को उस राज्य में बैन करने की बात करना जहां बजरंग बली की मां का मायका है, जहां हनुमानजी की ननिहाल है और जहां 80 फीसदी हिंदू हैं, वह कांग्रेस का पैरों पर कुल्हाड़ी मारना नहीं, कुल्हाड़ी को शरीर में बांधकर लोटना ही कहलाएगा. कर्नाटक के चुनाव में कांग्रेस इस कांटे की टक्कर में अभी भी 'एज' बनाए हुए है, लेकिन भाजपा अगर जीती तो वह अपनी बदौलत नहीं, कांग्रेस की गलतियों की वजह से ही जीत का सेहरा बांधेंगी.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)