कानपुर में करौली बाबा यानी संतोष भदौरिया पर नोएडा के एक डॉक्टर ने मारपीट का आरोप लगाया है. उस पीड़ित डॉक्टर की पिटाई का वीडियो भी सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हो रहा है. इसमें दिख रहा है कि उसे गंभीर चोटें आई थी. लेकिन, सवाल ये उठ रहा है कि आखिर इसकी नौबत क्यों आयी? अगर जानबूझकर उस डॉक्टर को मारा गया तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन, इसके साथ ही, इस बात का पता लगाना चाहिए कि आखिर उस डॉक्टर की मंशा क्या थी? कहीं वो बाबा का अपमान करने के लिए तो नहीं गया था? 


मुझे लगता है कि अगर कोई बाबा है और उसकी जिस तरह से छवि दिखाई जा रही है नकारात्मक रूप में, तो मैं आपको ये बताना चाहूंगा कि वृक्ष कब हूं न फल बचे, नदी न संचय नीर, परमार्थ के कारणे साधू भया शरीर...मेरा कहना है कि आखिरकार जो बाबा बनता है वो परमार्थ के लिए बनता है, खास करके हिंदू सनातन धर्म में. सवाल तो ये भी है कि मौलानाओं पर कभी प्रश्न नहीं उठता है. जबकि कितना वे उत्पीड़न करते हैं, पादरियों पर सवाल नहीं उठाया जाता है, हमेशा बाबाओं को टारगेट किया जाता है, जो बड़ा ही दुर्भाग्यपूर्ण है. मेरा बड़ा ही स्पष्ट रूप से मानना है कि कहीं भी ये बताइए जैसा कि आपने अभी करौली सरकार के बारे में बताया कि वहां पर किसी डॉक्टर के साथ मारपीट की गई. मारपीट की बिल्कुल निष्पक्षता से जांच होनी चाहिए. लेकिन मुझे ऐसा विश्वास है कि कोई भी व्यक्ति जो सनातन धर्म को मानने वाला संत है या बाबा है वो जल्दी मारपीट नहीं करेगा या कोई उनके आश्रम में रहने वाले भक्तों को भी ऐसी प्रेरणा नहीं देगा. क्योंकि सनातन तो वसुधैव कुटुंबकम की बात करता है, उसमें मानने वाले लोगों के साथ कैसे मारपीट हो सकती है.


ये जरूर है कि कोई जा करके ऐसी परिस्थिति बना दे, माहौल को तनावपूर्ण बना दे तो ये तो स्वाभाविक है कि वहां पर जो उसे मानने वाले लोग हैं, वो थोड़े से उग्र हो जाते हैं. लेकिन ये देखने वाली बात है कि कोई व्यक्ति किसी आश्रम में जाने वाला है और वो अगर जबरदस्ती वहां जाकर लड़ाई की स्थिति पैदा कर दे, तो कहीं न कहीं गलती तो दोनों तरफ हो जाती है. इसलिए इसकी जांच निष्पक्षता से होनी चाहिए. लेकिन जिस तरीके से बाबाओं को टारगेट किया जाता रहा है तो मुझे लगता है कि इसके पीछे एक साजिश भी रहती है. जानबूझकर सनातन धर्म का अपमान करने के लिए इस तरह की चीजें की जाती हैं.



बाबा की गलत बनाई गई छवि


मैं ये बिल्कुल कह रहा हूं कि ये तो होना ही नहीं चाहिए. चूंकि हमारा देश संविधान से चलता है लेकिन मैं ये देखना चाहता हूं कि आखिरकार ये परिस्थिति हुई कैसे इसकी भी जांच होनी चाहिए. कोई भी बाबा जबरदस्ती आपके घर जाकर आपका पैसा तो नहीं ले रहा है. आप खुद जाते हो उसके पास उसके चेले तो पकड़ कर आपको ले नहीं जा रहे हैं. बाबा लोग तो संविधान को सबसे अधिक मानते हैं और बाबा ही सबसे ज्यादा जेलों में हैं. लेकिन फिल्मों के माध्यम से जो बाबाओं की एक गलत छवि दिखाई जा रही है उसका भी लोगों पर कहीं न कहीं प्रभाव पड़ा है. जो नास्तिक लोग हैं वो जानबूझ करके उनसे टकराना आसान समझते हैं कि चलो बाबाओं से टकराओ ताकि थोड़ी पब्लिसिटी भी मिल जाएगी. उसके बाद फिर बाबाओं पर कार्रवाई भी हो जाएगी. क्योंकि ऐसे लोग तो किसी नेता से लड़ने तो जाएंगे नहीं. चूंकि बाबाओं की छवि भी ऐसी है और फिल्मों के माध्यम से भी और हर जगह उन्हें फंसाया जाता है तो उनसे लड़ने में थोड़ी से आसानी भी हो जाती है.


भाई अगर कोई भूत-प्रेत को भगा रहे हैं तो जो मानता है वो जाता है. अब आप डॉक्टरों का ही उदाहरण ले लीजिए वे भी कई प्रकार के होते हैं और हर डॉक्टर का इलाज 100 प्रतिशत सही थोड़े ही न हो जाता है. कोरोना काल में हॉस्पिटल जाने वाले लोग मरते नहीं थे क्या? सबसे ज्यादा वहीं, लोग मरे. लोगों ने तो उस दौरान हॉस्पिटल जाना भी छोड़ दिया था. अपने घरों में ही इलाज करके ठीक हो गए लेकिन लोगों का विश्वास चिकित्सकों पर कम नहीं हुआ है क्योंकि वे सेवा करते हैं. उसी प्रकार से जो सनातनी गुरू हैं वो अपने आश्रम में अपने तरीके से इलाज कर रहे हैं और लोगों को इसका लाभ हो रहा है तो लोग जा रहे हैं, कोई जबरदस्ती तो कर नहीं रहा है. लेकिन यहां पर जो हिंसा का मामला है उसकी जांच होनी चाहिए और ये भी जांच की जानी चाहिए की जाने वाले का उद्देश्य क्या था और अगर वहां जबरदस्त लड़ाई की स्थिति पैदा की गई तो ये भी बात ठीक नहीं है.


अगर दोषी तो हो लीगल एक्शन


लेकिन उसे अगर जानबूझ करके मारा गया कि ये हमारा अपमान कर रहा है तो ये भी बिल्कुल गलत है. अगर ऐसा हुआ है तो लीगल कार्रवाई करनी चाहिए थी. किसी भी आश्रम में हिंसा नहीं होना चाहिए. हमारे सनातन धर्म ने तो हमें शास्त्रार्थ की सुविधा दी है. शास्त्रार्थ ही हमारा सनातन धर्म है, तर्क है कोई भी पाखंड नहीं है...तो इसे जानने का कोई भी अधिकारी होता है लेकिन उसे जानने के कई तरीके होते हैं. ये नहीं होना चाहिए की आप भक्तों में जाकर बैठें और चुनौती देना शुरू कर दें. उसका एक तरीका होता है कि चलिए आइये दोनों तरफ से बैठें और बीच में एक मध्यस्थता बने और आप उनकी परीक्षा लो और ये तो किसी से भी लिया जा सकता है और गुरु लोग तो हमेशा तैयार रहते हैं. लेकिन आप जानबूझ कर भक्तों के बीच जाकर कुछ कहें तो स्वाभाविक तौर पर भक्त तो प्रतिक्रिया कर देता है. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए और ये किसी परिवार में भी हो सकता है.


जो वहां पर रहा है उसे यह सोचना होगा कि हमें जो करना है उसे हेल्दी वे में करना है. मैं खुद भी पाखंड के खिलाफ हूं. हम चाहते हैं कि जो लोग पाखंड करता है वो नहीं होना चाहिए. लेकिन उसे हमें तथ्य के साथ रखना होगा, जबरजस्ती जाकर वहां पर हम माहौल खराब कर दें तो हमारा भी नुकसान होगा, उसका और बाकी सबका भी होगा और समाज में भी गलत संदेश जाएगा...तो संविधान या कानून को हाथ में लेने का किसी को भी कोई अधिकार नहीं है. हर व्यक्ति चाहे बाबा हों या मौलाना या पादरी सभी संविधान के दायरें में ही आएंगे. मेरा निवेदन यही है कि जो भी घटना हो रही है उसकी जांच पूरी निष्पक्षता से की जानी चाहिए, क्योंकि आरोप लगाने वाला का इंटेशन जरूर देखा जाना चाहिए.  


कानून सबके लिए बराबर


कई बार लोगों भ्रमित हो जाते हैं और जहां पर भक्त जुड़ते हैं वहां अपार आस्था होती है. लोग उनको भगवान मानते हैं और जब भगवान मानते हैं और कोई भी व्यक्ति उसके विरोध में जा रहा है तो विरोध करने का कारण भी सही होना चाहिए. मुझे लगता है कि विरोध की बात को सही फोरम पर और तर्कपूर्ण तरीके से रखा जाए और उस पर अगर किसी को आपत्ति है तो उस पर लीगल कार्रवाई करता. संविधान और कानून सबके लिए बराबर है. अगर कोई हमारे पास आकर जबरदस्ती लड़ने लगे तो उसका संवैधानिक समाधान है लेकिन आप कोई बात कह रहे तो उसे एक दायरे में कहो उसकी भावना को भी समझो और उनके भक्तों की भी भावना को समझना बहुत जरूरी है नहीं तो इस तरह की घटनाएं तो घटती रहेगी. बहुत ऐसे लोग होते हैं जो बिना विचारे बहुत कुछ कर जाते हैं और बाद में पछताते हैं तो कोई भी काम योजनाबद्ध तरीके से ही करो और आपकी जो सोच है वो सही होनी चाहिए समाज हित में होना चाहिए तो समाज आपके साथ रहेगा और अगर व्यक्तिगत रूप से आप पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर करेंगे तो नुकसान सबका होगा.


सिर्फ आरोप से नहीं, अभी तो प्रमाण सामने आएंगे न इसीलिए तो जांच होती है न. आप देखो को कि बॉलीवुड ने बाबाओं को इतना बदनाम किया है सीरियल और फिल्मों के माध्यम से कल ही मैं तेनालीराम देख रहा था उसमें किस तरह से बाबाओं को हास्यास्पद तरीके से दिखाया है लेकिन वे किसी मौलाना या पादरी को नहीं दिखाएंगे और उसी प्रकार से कुछ लोग आरोप भी लगा देते हैं चूंकि ये करना बहुत ही आसान काम है. मैं कहता हूं कि अगर लगाया गया आरोप सिद्ध हो जाता है तो उस पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. लेकिन आरोप लगाने वाला गलत है तो उस पर भी दोगुना कार्रवाई होना चाहिए. क्योंकि इससे लोगों की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचती है जो बहुत ही नुकसानदायक है क्योंकि कि कोई भी बाबा सामाजिक कार्यों के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है, वो परिवार और माता-पिता की सेवा करने की बात करता है, राष्ट्र की सेवा की बातें करता है, वो स्वार्थ नहीं सिखाता है. तो एक व्यक्ति एक अच्छी भावना से काम कर रहा है और आप उसमें जाकर खलल डालते हो, फिर आरोप लगा देते हो और अगर वो झूठा आरोप है तो उस पर दोगुना कार्रवाई होना चाहिए.   


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल स्वामी चक्रपाणि महाराज से बातचीत पर आधारित है]