कभी राष्ट्रीय हिन्दुत्व का झंडाबरदार रहे वरूण गांधी आज पार्टी के हाशिए पर है और लगातार शीर्ष नेतृत्व और उनकी नीतियों पर सवाल खड़े कर रहे हैं. साल 2009 में हिन्दू-मुसलमान को लेकर भड़काऊ भाषण देने वाले वरूण गांधी आज मीडिया को आड़े हाथों लेते हुए ये कहते हैं कि महंगाई और बेरोजगारी बड़ी समस्या है लेकिन अखबार हो या चैनल सिर्फ जात-पात या हिन्दू-मुसलमान की बातें हो रही है. उन्होंने पीलीभीत में एक सभा के दौरान कहा कि देश में तोड़ने की राजनीति हो रही है. इसके आगे उन्होंने ये भी कहा कि न वे नेहरू के खिलाफ हैं और न ही कांग्रेस के खिलाफ.
सवाल उठ रहा है कि क्या वरूण गांधी का हृदय परिवर्तन हो गया है? कभी हिन्दू-मुसलमान पर कड़े रुख अपनाकर बयानबाजी करने वाले वरूण आज पार्टी की नीतियों पर प्रश्नचिन्ह लगाकर क्या कांग्रेस की अपना रुख करने की सोच रहे हैं?
वरूण के राजनीतिक भविष्य पर सस्पेंस
वरूण गांधी के नए राजनीतिक कदमों का यह संकेत इसलिए भी माना जा रहा है क्योंकि एक तरफ जहां राहुल गांधी खुद मोदी सरकार के खिलाफ आक्रामक तेवर दिखाते हुए देशभर में भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर वरूण गांधी के राजनीतिक भविष्य और कांग्रेस के प्रति उनके नरम रुख को लेकर ये कयासबाजी हो रही है.
एक हकीकत ये भी है कि प्रियंका-राहुल के साथ वरूण गांधी के निजी रिश्ते हमेशा अच्छे रहे हैं. भले ही मेनका गांधी लगातार गांधी परिवार के खिलाफ मुखर रहीं हों लेकिन वरूण हमेशा किसी भी तरह के वैसे बयान देने से बचते रहे हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अगर वरूण गांधी को बहन प्रियंका कांग्रेस पार्टी में लाने में कामयाब रहती हैं तो फिर किसी तरह से यह पूरी राजनीति बदल जाएगी?
वरूण के कांग्रेस में आने से कैसे बदलेगी राजनीति?
जब ये सवाल राजनीतिक मामलों की जानकार और नेहरू-गांधी परिवार को बेहद करीब से समझने वाले राजनीतिक विश्लेषक स्मिता मिश्रा से पूछा गया तो उन्होंने चूंकि आज कांग्रेस यूपी के अंदर कहीं नहीं है, ऐसे में अगर कोई एक या दो बड़े चेहरे आते भी है तो उसका प्रदेश में कुछ बड़ा फायदा पार्टी को नहीं मिलने वाला है.
हालांकि, स्मिता मिश्रा ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि वरूण गांधी कांग्रेस पार्टी में जा रहे हैं. उनका कहना है कि अतीज में ऐसी चर्चाएं एक दो बार जरूर हुई लेकिन वह बेनतीजा रही. वरूण के कांग्रेस पार्टी ज्वाइनिंग तक मामला पहुंचा ही नहीं.
स्मिता बताती हैं कि एक डेवलपमेंट ये हुआ है कि वरूण गांधी का अपने संगठन के साथ वैसा रिश्ता नहीं रहा, जो पहले हुआ करता था. किसान और एनआरसी से लेकर यूपी की राजनीति तक वरूण ने अपने विचारों से हमेशा पार्टी नेतृत्व के खिलाफ ही स्टैंड लिया है. यानी, वरूण ने जो लाइन ली है, वो पार्टी की लाइन के खिलाफ है.
वरूण से कांग्रेस को कितना फायदा?
इस सवाल के जवाब में स्मिता मिश्रा यह बताती है कि कांग्रेस हो सकता है ये मान रही हो कि वरूण और उनकी मां अगर आती है तो पार्टी को फायदा होगा, लेकिन स्थिति ऐसी है. उन्होंने इसकी वजह ये बताई कि चूंकि वरूण और उनकी माताजी का ताल्लुक मुख्यतौर पर बीजेपी में यूपी की राजनीति से ही है. दोनों ही यूपी का सांसद रहे हैं. ऐसे में आज वहां जिस स्तर पर कांग्रेस पार्टी हाशिए पर जा चुकी है, किसी एक नाम के आने से कुछ बदलाव नहीं होगा. यानी, चाहे वरूण गांधी आ जाए या फिर कोई और बड़ा चेहरा कांग्रेस के लोगों में इससे कोई बड़ा मैसेज जाएगा, इसमें शक है. ऐसे में यूपी में कांग्रेस की जो संभावनाएं है, उसमें किसी एक बडे़ नाम आने से भी कोई बदलाव आ जाएगा, ऐसा नहीं लगता है.
[राजनीतिक विश्लेषक स्मिता मिश्रा से बातचीत पर आधारित पूरी स्टोरी]