जजों को मिले प्रोटोकॉल और उससे जुड़े विशेषाधिकार को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने कुछ बातें कहीं हैं. उनका कहना है कि जजों को प्रोटोकॉल सुविधाओं का इस्तेमाल इस तरीके से नहीं करना चाहिए कि दूसरों को इससे असुविधा हो या ज्यूडिशियरी को लोगों की आलोचनाओं का सामना करना पड़े. चीफ जस्टिस ने सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को लिखे एक पत्र में हाल की एक घटना पर नाखुशी जताई है. उस घटना में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज की ओर से रेलवे यात्रा के दौरान उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करने पर रेलवे अथॉरिटी से जवाब मांगा गया था. प्रोटोकॉल से जुड़ा विशेषाधिकार का मुद्दा हमारे देश में लंबे वक्त से चर्चा का विषय रहा है.


पहले को घटना का बैकग्राउंड समझना होगा. ये घटना कुछ दिनों पहले की है. इसमें 14 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार  (प्रोटोकॉल) ने नार्थ सेंट्रल रेलवे के जीएम को एक एक्सप्लेनेटरी जारी किया. उसमें एक्सप्लेनेशन मांगा कि जब जज साहब दिल्ली से प्रयागराज जा रहे थे तो उनकी आवश्यकताओं को पूरा क्यों नहीं किया गया, जब ट्रेन 3 घंटे लेट थी. इस लेटर के सार्वजनिक होने के बाद इस पर काफी चर्चा हो रही है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने 20 जुलाई को एक लेटर इश्यू किया. लेटर से साफ है कि उन्हें ट्रेन की घटना को लेकर जज साहब के एटीट्यूड से काफी नाखुशी हुई है.


चीफ जस्टिस के लेटर का कानूनी पहलू


चीफ जस्टिस के लेटर का दो पार्ट है. पहला लीगल एस्पेक्ट है. उनका कहना है कि आप हाईकोर्ट के जज है, ये बात सही है. लेकिन सिर्फ़ जज होने से ही ट्रेन यात्रा के दौरान जो भी असुविधा हुई है, उसको लेकर आपको रेलवे से स्पष्टीकरण मांगने का कोई हक़ नहीं मिल जाता है. आपके पास उसके लिए एक्सप्लेनेटरी मांगने का अथॉरिटी नहीं है. आप उस पर शिकायत दर्ज करा सकते थे, इस पर कार्रवाई होती. लेकिन जिस तरह से आपने डायरेक्ट एक्सप्लेनेशन मांग लिया, ये तरीका ग़लत है. ये आपका जुरिस्डिक्शन नहीं बनता है. एक जुरिस्डिक्शन  का इश्यू था, जिस पर चीफ जस्टिस ने लेटर के जरिए अपना ऑब्जेक्शन दर्ज किया है.



क्लेम ऑफ प्रिविलेज से जुड़ा पहलू


दूसरा पहलू क्लेम ऑफ प्रिविलेज से जुड़ा है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने अपने लेटर में इस शब्द का इस्तेमाल किया है. उनके कहने का आशय है कि क्लेम ऑफ प्रिविलेज और पावर ऑफ अथॉरिटी आप समाज में शो नहीं कीजिए. आप समाज के ही अंग हैं. प्रोटोकॉल जो दिया जाता है, वो मुख्य तौर से सुरक्षा के नजरिए से दिया जाता है. इसका मतलब ये नहीं है कि आप समाज में प्रिविलेज्ड हो गए हैं और आप आम लोगों से ऊपर है.



CJI के लेटर से अच्छा संदेश जाएगा


चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के इस लेटर से बहुत ही अच्छा संदेश जाएगा. हायर ज्यूडिशियरी, हाईकोर्ट के जजों, लोअर ज्यूडिशियरी सबके साथ सिक्योरिटी और प्रोटोकॉल है. गाहे-बगाहे हम लोग ज्यूडिशियरी से सुनते रहते हैं कि हम लोग बेटर पीपुल हैं, हमें ज्यादा सुविधाएं मिलनी चाहिए. चाहे कहीं भी जाएं, सड़क पर रहें, मार्केट में जाएं, हमें बाकियों के मुकाबले बेटर प्रिविलेज है. इस तरह की बातें सामने आते रहती हैं. चीफ जस्टिस चाहते है कि ऐसा बिल्कुल न हो. जज लोग भी सार्वजनिक जगहों पर थोड़ा हम्बल बनकर रहें. इक्वल टू अदर समझने के लिए कहा गया है.


सुविधा के लिए प्रोटोकॉल का दुरुपयोग ग़लत


न्यायपालिका में भरोसा को लेकर तो चिंता है, लेकिन चीफ जस्टिस के लेटर से इसका कोई सरोकार नहीं है. इनके लेटर का आशय है कि आप अपने आपको समाज में थोड़ा सा बड़ा कद वाला नहीं समझिए. आप समथिंग स्पेशल हैं, ये नहीं समझिए. आप अपने काम पर ध्यान देते हुए समाज में विनम्र रहिए. ऐसा काम न करें कि आपके आचरण से समाज में ज्यूडिशियरी को लेकर बैड इम्प्रेशन जाए. एलीट सोसायटी का तमगा अपने ऊपर नहीं लगाइए. आप भी सामान्य लोग ही हैं. सिक्योरिटी रीजन से प्रोटकॉल दिया गया है. उसका दुरुपयोग नहीं करें. अपने आप को कानून से ऊपर (above the law) शो नहीं करें. जिस चीज का पावर न हो , उसे करने की कोशिश प्रोटोकॉल के नाम पर न करें.


आम और ख़ास के बीच फर्क अनुचित


चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ के इस जेस्चर को ज्यूडिशियरी से बाहर जाकर व्यापक तौर से भी देखने की जरूरत है. प्रोटोकॉल के नाम पर विशेषाधिकार के जरिए आम और ख़ास के बीच फर्क की जो कोशिश न्यायपालिका से बाहर भी दिखती है, उन सभी के लिए भी सीजेआई की टिप्पणी का काफी मायने है. चीफ जस्टिस के पहल को देश के उन तमाम अधिकारियों और नेतागणों के लिए एक संदेश माना जा सकता है, जो प्रोटोकॉल के नाम पर विशेषाधिकार जताकर आम और ख़ास के बीच सार्वजनिक जगहों पर फर्क दिखाने की कोशिश करते हैं.


ये सब लोगों के लिए एक संदेश है. कुछ दिनों पहले जो लोग अपनी गाड़ियों में डेज़िग्नेशन लिखवाकर चलते थे, लाइट लगाकर चलते थे, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा करने से मना कर दिया था. अभी भी बहुत लोग न्यायाधीश या अपर न्यायाधीश लिखकर चलते हैं, वो बिल्कुल ग़लत है.  जो कोई भी पद के जरिए अपने आप को एलीट या ख़ास वर्ग का दिखाना चाहता है, उन सबके लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का ये लेटर एक तरह की नसीहत है. ये लेटर पब्लिक में जारी किया गया है, ये बहुत ही अच्छी बात है, जो बताता है कि ये सबके लिए एक मैसेज है. ज्यूडिशियरी के हर स्तर पर ये सबके लिए एक संदेश है कि आप अपने कंडक्ट को पब्लिक्ली बहुत संभाल कर इस्तेमाल करें.


सीजेआई की फटकार का असर हर स्तर पर पड़ेगा


जहां तक सवाल है कि प्रोटोकॉल के बहाने खास सुविधाओं को लेकर सीजेआई की फटकार का असर ज्यूडिशियरी के हर स्तर पर, चाहे सुप्रीम कोर्ट हो या फिर हाईकोर्ट या निचली अदालतें, दिखेगा. इस सवाल के जवाब में मैं कहना चाहूंगा कि असर बिल्कुल दिखेगा.


जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया हाईकोर्ट के जज के इस तरह के आचरण को लेकर सार्वजनिक तौर से नाखुशी जाहिर कर रहे हैं, तो ये हाईकोर्ट के सारे जजों के साथ ही निचली अदालतों के जजों के लिए बहुत बड़ा संदेश है. हाईकोर्ट के किसी जज के कंडक्ट को लेकर सीजेआई की ओर से सार्वजनिक तौर से इस तरह की नाखुशी जताने की घटना अमूमन नहीं होती है. इससे डर और संदेश दोनों जाएगा कि अगर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया हाईकोर्ट के जज के लिए ऐसा लिख सकते हैं, तो फिर लोअर ज्यूडिशियरी में वो किसी के लिए ऐसे आचरण पर कुछ भी कर सकते हैं. इससे काफी अच्छा फर्क पड़ेगा.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]