पाकिस्तान में इमरान खान ने अपने लॉन्ग मार्च के जरिये जो ताकत दिखाई है, उसका असर दूसरे दिन ही देखने को मिल गया. प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की सरकार लाहौर से निकलकर इस्लामाबाद पहुंचने वाले इस हक़ीक़ी आज़ादी मार्च से शायद इतनी डर गई है कि एक तरफ़ जहां सेना को सड़कों पर उतारकर पूरे इस्लामाबाद को छावनी में तब्दील कर दिया है, तो वहीं इमरान से सुलह के जरिये इस मार्च को खत्म करने का रास्ता भी तलाशा जा रहा है. 


गौरतलब है कि मुल्क में आम चुनाव कराने की मांग को लेकर इमरान ने 28 अक्टूबर को लाहौर से ये मार्च शुरु किया है, जो 4 नवंबर को इस्लामाबाद पहुंचेगा. पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक मार्च के दूसरे दिन ही जिस तरह से उनके काफ़िले में भीड़ बढ़ी है,उससे लगता है कि इमरान को इस बार अवाम का जबरदस्त समर्थन मिल सकता है. 
                    
शायद यही वजह है कि इमरान की बढ़ती ताकत को देख पीएम शहबाज़ शरीफ ने इस लॉन्ग मार्च के मद्देनजर गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह की अध्यक्षता में 9 सदस्यों वाली एक समिति बनाई है.  इस समिति को इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक -ए-इंसाफ  (PTI) के लॉन्ग मार्च से जुड़े सभी मामलों को देखने के साथ-साथ सुलह समाधान के लिए बातचीत का भी काम सौंपा गया है.  समिति में पूर्व पीएम नवाज शरीफ़ की बेटी व सरकार में मंत्री मरियम औरंगजेब को भी रखा गया है. 


दरअसल,सरकार कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. लिहाज़ा,उसने सुलह के लिए समिति बनाने के साथ ही इस्लामाबाद में इस मार्च को कुचलने की तैयारी अभी से कर ली है. राजधानी के तमाम होटल व रिजॉर्ट मालिकों को सख्त हिदायत दी गई है कि वे इस मार्च में शामिल लोगों को अपने यहां ठहरने की जगह कतई न दें. इससे जाहिर है कि सरकार घबराई हुई है क्योंकि इमरान खान ने मार्च शुरु करने से पहले ही ये ऐलान कर दिया था कि जब तक आम चुनाव कराने की घोषणा नहीं होती, वे और उनके समर्थक इस्लामाबाद में ही डेरा डाले रहेंगे. 


हालांकि इस बीच पाकिस्तान के गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह और पीटीआई के उपाध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी की तरफ़ से जो बयान आये हैं,उससे ऐसे  संकेत मिलते हैं कि सरकार और इमरान के बीच बातचीत भी मुमकिन हो सकती है. लेकिन इसके लिए सरकार को कोई ऐसा बीच का रास्ता निकालना होगा,जो इमरान को भी मंजूर हो. गृह मंत्री सनाउल्लाह ने कहा कि हम राजनीतिक लोग हैं. बातचीत के दरवाज़े खुले रखते हैं.  हर मसला अगर सिर्फ चुनाव का ही है तो बातचीत से रास्ता निकल सकता है.  लेकिन सभी बातें उनकी मानी जाएं, यह मुमकिन नहीं है. 


दरअसल,इमरान ने बेहद सोची-समझी सियासी रणनीति के तहत ही इस लॉन्ग मार्च को निकालने की तारीख तय की है. अगर कोई हिंसा नहीं भड़की,तो 4 नवंबर तक इस्लामाबाद पहुंचने वाला ये मार्च बेमियादी धरने में तब्दील हो जाएगा. सरकार के लिए बड़ी मुसीबत ये है कि नवंबर के पहले हफ्ते में ही सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान दौरे पर आने वाले हैं. 


सऊदी अरब से पाकिस्तान को बड़ी आर्थिक इमदाद मिलती है और सरकार को इस बार भी अपनी झोली भरने की उम्मीद है.  लेकिन अब ये आशंका जताई जा रही है कि पाकिस्तान के खराब हालात देखते हुए सलमान यह दौरा रद्द कर सकते हैं. हालांकि इसका ठीकरा इमरान के सिर ही फूटेगा लेकिन नुकसान तो सरकार को ही होगा. 


इसके अलावा पीएम शाहबाज खुद 1 नवंबर को चीन  जा रहे हैं औऱ इस दौरे का मकसद भी वही है कि मुल्क की ख़ाली झोली भरने के लिए मदद की गुहार लगाना.  लेकिन मुल्क में सियासी अफरातफरी के जो हालात बन गए हैं,उसे देखते हुए चीन अब पाकिस्तान की कितनी मदद करेगा, यह कोई नहीं जानता. 


पाकिस्तान के अखबार द डॉन के मुताबिक-इमरान की वजह से जो हालात बन रहे हैं, उससे दूसरे देश पाकिस्तान से दूरी बना सकते हैं.  इसका सबसे बड़ा असर बाढ़ पीड़ित पाकिस्तानियों पर पड़ेगा.  अगर यहां यही माहौल रहा तो चीन के अलावा अन्य देश भी मदद से दूर भागेंगे.  शायद यही वजह है कि लॉन्ग मार्च पर रोक लगाने के लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट तक गई लेकिन कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार करते हुए सरकार को राहत नहीं दी. मीडिया रिपोर्ट्स में आशंका जताई गई है कि इस मार्च के दौरान हिंसा भी हो सकती है. 


राजनीतिक विश्‍लेषकों का कहना है कि इमरान खान के इस आजादी मार्च के दौरान ऐसा टकराव हो सकता है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था. इमरान खान को रोकने के लिए सेना को सीधे तौर पर उतार दिया गया है. जाहिर है कि इससे सरकार पर सेना की पकड़ और ज्‍यादा मजबूत हो जाएगी. इमरान खान अपनी हर तकरीर में खुलकर सेना की आलोचना कर रहे हैं और एक नरैटिव बना रहे हैं.  इससे दोनों के बीच टकराव और बढ़ेगा और अगर हिंसा बढ़ी तो पाकिस्‍तान में मार्शल लॉ लगने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. 


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