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बांग्लादेश में शेख हसीना की फिर सरकार बनना भारत के लिए होगा खास, कायम रहेगी दोस्ती और विकास

बांग्लादेश में एक बार फिर शेख हसीना भारी बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनने जा रहीं हैं. उनकी पार्टी आवामी लीग ने कुल 300 सीटों में से दो-तिहाई सीटें जीत ली हैं. शेख हसीना 2009 से लगातार बांग्लादेश की पीएम हैं और वह इस बार पांचवीं बार प्रधानमंत्री बनेंगी. 1991 से 1996 तक भी वह प्रधानमंत्री थीं. शेख हसीना की पार्टी को आम चुनाव में 2 लाख 49 हजार 465 वोट मिले जबकि विपक्षी दलों को महज 469 वोट ही मिले. देश की 18 विपक्षी पार्टियों ने चुनाव का बहिष्कार कर दिया था. शेख हसीना को भारत की तरफ झुकाव वाला और एक सेकुलर नेता माना जाता है. उनके परिवार को सेना ने मार दिया था. तब वह जर्मनी में थीं. तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें भारत में राजनीतिक शरण दी थी और वह छह साल तक भारत में रही थीं.

विपक्षी पार्टियों का चुनावी बहिष्कार

बांग्लादेश में चुनाव की वजह से विपक्षी पार्टियां चुनाव का बहिष्कार करने में लगी हुई थीं और उसी वजह से पश्चिम के देशों ने लगातार कहा कि शेख हसीना का जीतना तय है. हालांकि, अब चुनाव के बीच बांग्लादेश में भारत की भूमिका को लेकर खूब चर्चाएं हो रही है. प्रधानमंत्री शेख़ हसीना चौथी बार पीएम पद के लिए चुनाव लड़ीं, उनकी जीत को तय माना जा रहा था क्योंकि चुनाव से विपक्षी पार्टियों का बहिष्कार जारी था. विपक्षी दल बीएनपी ने शेख हसीना से प्रधानमंत्री पद छोड़ने और बांग्लादेश में एक नॉनपार्टीशन केयरटेकर गवर्नमेंट के माध्यम से चुनाव कराने की मांग की थी और उनका कहना था कि उनको इस बात का जरा भी भरोसा नहीं है कि मौजूदा सरकार देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाएगी. ये बांग्लादेश का 12वीं जातीय संसद चुनाव था. जातीय संसद में 300 सीटों के लिए प्रत्यक्ष चुनाव किए जाते है और 50 महिला प्रतिनिधि प्रत्यक्ष रूप से चुनी जाती है.

बांग्लादेश में 1990 के बाद से नियमित चुनाव हो रहे है और 1990 में सेना का शासन का शासन था 1975 से 1990 के बीच में उसको हटाने के बाद में 1991 में इलेक्टेड गवर्मेंट हुई थी. जब इलेक्टेड गवर्मेंट आई थी तब केयरटेकर गवर्मेंट के माध्यम से चुनाव हुआ था. नियमित रूप से हर पांच साल में बांग्लादेश में चुनाव होता है. अभी 12वीं जातीय संसद का चुनाव हुआ, इसमें  28 दलों ने भाग लिया. बांग्लादेश में कुल 44 राजनीतिक दल है. 16 दलों ने इस चुनाव का बॉयकॉट किया. बॉयकॉट करने वाले दल में बांग्लादेश के बीएनपी यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी थी, जो खालिदा जिया और उनके बेटे तारिक रहमान द्वारा लीड की गई पार्टी है. इस पार्टी ने 12वीं जातीय संसद चुनाव का बॉयकॉट किया, इसके बावजूद 1800 के लगभग कैंडिडेट ने इस चुनाव में भाग लिया. 

प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफा की मांग

जो मुख्य राजनीतिक दल इसमें भाग ले रहे है उनमें आवामी लीग बांग्लादेश का सबसे बड़ी राजनीतिक दल है. उसकी पूरे बांग्लादेश में उपस्थिति है, वो भाग ले रहा है और कुछ नई पार्टियां थीं जिसमें रणमूल, बीएनपी, बांग्लादेश कांग्रेस पार्टी, सुप्रीम पार्टी कई तरीके के राजनीतिक दलों ने इसमें भाग लिया. यह प्रयास किया गया कि इस चुनाव को फेयर और पार्टिसिपेटिंग इलेक्शन बनाया जाए. हालांकि, मुख्य विपक्षी दल बीएनपी, कुछ इस्लामिक दल और लेफ्ट यानी वामपंथी, जातीय समाज यात्री दलों ने हिस्सा नहीं लिया. इसी वजह से यह चुनाव इतना कॉन्ट्रोवर्शियल चुनाव हो गया. इनकी मांग थी कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने पद से इस्तीफा दें और साथ ही वो बांग्लादेश में एक नॉनपार्टीशन केयरटेकर गवर्नमेंट के माध्यम से चुनाव कराएं. उनका कहना था कि रूलिंग पार्टी ठीक से इलेक्शन नहीं करायेगी. जब तक वहां पर नॉन पार्टिजन सरकार नहीं होगी तब तक फ्री फेयर इलेक्शन नहीं होंगे. हालांकि, सत्तारूढ़ दल का दावा था कि वे मुक्त और पार्टिसिपेटिव इलेक्शन करायेंगे साथ ही चुनाव आयोग को पूरी स्वायत्तता से चुनाव कराने दे रहे थे.  

प्रजातंत्र को रखा मजबूत

यदि आप बांग्लादेश की राजनीति को ध्यान से देख और समझ रहें है तो दो बातें साफ है. पहली बात तो यह कि सत्तारूढ़ दल यानि अवामी लीग बहुत पुराना राजनीतिक दल है इसकी स्थापना 1948 में हुई थी. इस दल ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता आंदोलन की डोर संभाली हुई थी. ये दल पूरे बांग्लादेश में है. दूसरे राजनीतिक दल जो बॉयकॉट कर रही हैं, उनमें प्रमुख बांग्लादेश नेशनल्स पार्टी की 1978 में स्थापना हुई थी और सैन्य शासन था. जियाउर रहमान, वो खालिदा जिया के पति थे, उन्होंने इस पार्टी को बनाया था. यह मानकर चलिए कि बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी का जो स्ट्रक्चर है वो आर्मी का है और उन्होंने जो राष्ट्रवाद का नारा दिया वो इस्लाम आधारित राष्ट्रवाद था. जो कि बांग्लादेश की जब 1971 में स्थापना हुई थी, उसके विपरीत था. क्योंकि बांग्लादेश की आजादी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और भाषाई राष्ट्रवाद के आधार पर हुई है.

लेकिन शेख मुजबिल रहमान की हत्या के बाद बांग्लादेश ने पाकिस्तान की ढाल पर इस्लामिक राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाने का प्रयास किया और बांग्लादेश नेस्टलिस्ट पार्टी ने उसमें अग्रणी भूमिका निभाई. जब आप बांग्लादेश नेस्टलिस्ट पार्टी का ट्रैक देखेंगे, 1991 में जब नेस्टलिस्ट पार्टी सत्ता में आई, तब उन्होंने सबसे पहले डेमोक्रेसी के साथ जो खिलवाड़ किया. 1994 में ममोरा में एक बाई इलेक्शन हुआ था और आवामी लीग ने डिमांड किया कि अगला चुनाव न्यूट्रल केयरटेकर गवर्नमेंट के माध्यम से होना चाहिए. यह बात मान ली गई और संविधान संसोधन करके संविधान का 58वां प्रावधान जोड़ा गया. उसमें केयरटेकर गवर्नमेंट के माध्यम से चुनाव किया गया.

डेमोक्रेसी की धज्जियां बीएनपी ने उड़ाईं

2001 में दोबारा 8वीं जातीय संसद का चुनाव हुआ, लेकिन 2001 से 2006 के बीच सबसे अधिक डेमोक्रेसी की धज्जियां उड़ी. 2001 से 2006 के बीच फिर से बीएनपी और जमात ए इस्लाम का अलायंस रहा. उन्होंने बांग्लादेश में हर तरह से अगला चुनाव जीतने के लिए गुमराह करना शुरु किया. उनका व्यक्ति अगला केयरटेकर गवर्नमेंट का मुखिया बने तो जज के रिटार्यमेंट की अवधि को बढ़ा दिया. साथ ही डेढ़ करोड़ की वोटर लिस्ट उसमें शामिल की और अपने ही व्यक्ति को मुख्य चुनाव आयोजक बना दिया. जब आप राजनीतिक दलों का ट्रैक रिकॉर्ड देखते है तो निश्चित रूप से यह मान कर चलिए की बीएनपी इसके लिए बहुत बड़ी जिम्मेदार है. फिर भी जबसे अवामी लीग सत्ता में आई है. यहीं कोशिश की जा रही है कि ज्यादा से ज्यादा जनता की भागीदारी हो और साथ ही राजनीतिक विकास हो. 

शेख हसीना का विकास है मंत्र 

बांग्लादेश में आज के दिन का जो विवाद है, उसमें विपक्ष लोकतंत्र की बात कर रहा है, लेकिन रूलिंग पार्टी विकास की बात कर रही है. शेख हसीना कहती हैं कि हमने बांग्लादेश में इतना आर्थिक विकास किया है जिससे बांग्लादेश की हालत कई मायनों में भारत से बेहतर हो गई है और बांग्लादेश 2026 में डेवलपिंग लिस्ट में आ रहा है और 2041 में बांग्लादेश एक मिडिल इनकम कंट्री बनेगा. उसी के साथ - साथ बांग्लादेश में इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलप हुआ है, चाहे वो मेट्रो हो, कनेक्टविटी हो, ट्रांसपोर्ट हो या थरमल पावर प्रोजेक्ट हो. उसमें भारत के साथ बांग्लादेश की भागीदारी रही है, वो बेहद महत्त्वपूर्ण है. खासकर 2008 में, जब अवामी लीग सत्ता में आई तब भारत और बांग्लादेश ने डेवलपमेंट पार्टनरशिप स्थापित किया. उस डेवलपमेंट पार्टनरशिप से विपक्षी पार्टी के पास कोई डेवलपमेंट मुद्दा नहीं रहा. 

शेख हसीना और अवामी लीग भारत की पसंद

भारत ने बांग्लादेश के लिए यह देखा कि क्या अच्छा है. बांग्लादेश निश्चित रुप से अवामी लीग एक प्रोग्रेसिव सेक्युलर डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल पार्टी है जो इकोनॉमिक परफॉर्मेंस दे रही है और भारत का कंसर्न है चाहे वो सुरक्षात्मक मुद्दे हो, बॉडर से जुड़े मुद्दे हो, उसपर शेख हसीना सरकार ने बखूबी ध्यान दिया है. निश्चित रुप से भारत यह चाहता है कि एक शांतिपूर्ण सरकार बांग्लादेश में रहे. यह बांग्लादेश की सरकार के साथ - साथ, भारत के लिए भी सही है. शेख हसीना और अवामी लीग भारत की पसंद है. आने वाले दिनों में जो चुनावी रिजल्ट आयेगा उसमें शेख हसीना फिर से सत्ता में काबिज होने वाली है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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