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बिहार में होली के दिन शिक्षकों का स्कूल जाना विभागीय संवेदनहीनता और दो तिथियों को होली के भ्रम का परिणाम

इस बार बिहार में होली दो दिन मनी- 25 और 26 मार्च दोनों को. वैसे, बिहार ही क्या, पूरे देश में होली जहां-जहां मनी, वहां इन दोनों ही दिनों होली मनी, कुछ प्रतिशत जनता ने पहले दिन मनायी, कुछ ने दूसरे दिन और कुछ प्रतिशत लोगों ने दोनों ही दिन मनायी. इधर अधिसंख्य हिंदू त्योहारों के साथ यही स्थिति हो गयी है. हरेक साल दो-दो तिथियां निकल आती हैं और उससे काफी भ्रम की स्थिति होती है. हालांकि, प्रशासन का एक अनिवार्य तत्व व्यावहारिकता भी होता है. अगर सरकार ने व्यावहारिक कदम उठाए होते, तो 25 मार्च को स्कूल में शिक्षकों के पहुंचने का आदेश जारी नहीं करते. इस तारीख को जो भी शिक्षक स्कूल पहुंचे, उन पर रंग-अबीर के साथ कई को गोबर-मिट्टी की भी बौछार हुई. सरकार के इस 'अव्यावहारिक कदम' की खूब आलोचना हो रही है. 

सुरक्षा भी करें सुनिश्चित

25 मार्च के आदेश के अलावा भी एक आदेश है, जिसको लेकर शिक्षा-विभाग की आलोचना हो रही है. 25 से 30 तक शिक्षा विभाग की तरफ से शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण का कार्यक्रम रख दिया है. उसमें भी जो प्रशिक्षण स्थल हैं, वो कई जगहों से काफी दूर हैं, यानी कई बार तो पांच-छह घंटे की यात्रा है या रात भर की यात्रा भी हो सकती है. बिहार सरकार ने होली की सार्वजनिक छुट्टी 26 और 27 को दी है, हालांकि 29 को गुड फ्राइडे को भी बिहार सरकार ने 'सार्वजनिक अवकाश' घोषित किया है, लेकिन शिक्षा विभाग ने इसी दिन कक्षा 8 की परीक्षा घोषित कर दी है. इसको लेकर भी राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंगथु ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखा है. मामला राजनीतिक भी हो गया और एक तरफ राजद के नेता तेजस्वी यादव ने एक्स (पहले ट्विटर) पर बयान जारी कर सरकार के इस कदम की आलोचना की, बल्कि सरकार में साझीदार भाजपा के वरिष्ठ नेता गिरिराज सिंह ने भी एक्स पर लिखा कि शिक्षकों का शोषण बंद होना चाहिए और होली के दिन छुट्टी रद्द कर शिक्षकों को बेगूसराय से वैशाली भेजना बेतुका कदम है. तेजस्वी ने कहा कि ऐसा पहली बार बिहार में होगा, जब होली के दिन शिक्षक अपने घरों से दूर रहेंगे. 

सरकार का काम केवल आदेश देना नहीं

कोई भी सरकार  केवल इसलिए नहीं है कि वह बस आदेश पारित कर दे, उसके क्रियानवयन में होने वाली व्याहारिक दिक्कतों, प्रैक्टिकल मजबूरियों को न देखे. सरकार का काम लचीला और मध्यम मार्ग अपना कर चलने का है. हालांकि, बिहार के शिक्षा विभाग में कुछ दिनों से यह गुण गायब है. विभाग के अपर मुख्य सचिव के कई आदेश एक के बाद एक विवादों में रहे हैं. कुछ समय पहले जब शिक्षा विभाग ने अपना कैलेंडर निकाला था, तो कई सारी छुट्टियां उसमें से हटा दी गयी थीं. संयोगवश इनमें से अधिकांश हिंदू त्योहार थे. उस समय भी सोशल मीडिया से लेकर सत्ता के गलियारों तक काफी हंगामा हुआ था, तब शिक्षा विभाग ने वह कैलेंडर वापिस लिया था और फिर चीजें दुरुस्त हुई थीं. हाल ही में वह एकाध सप्ताह के सबैटिकल (छुट्टी) पर गए थे, तो उनके तबादले तक की चर्चा शुरू हो गयी थी. हालांकि, छुट्टी से लौटने के बाद भी उनके वही तेवर हैं और गुड-फ्राइडे पर घमासान इसीलिए मचा है. हालांकि, शिक्षा विभाग ने अपने तर्क में कहा है कि क्वल तीन प्रतिशत लोगों के लिए पूरे प्रशिक्षण को नहीं टाला जा सकता है, वरना हजारों शिक्षकों का पूरा साल बेकार हो जाएगा. 

दिक्कत यही है कि सरकारें (यानी उसके कल-पुर्जे, वो लोग जो इसे चलाते हैं) राजधानियों में बैठकर फैसले करती हैं. उनको नहीं पता है कि बिहार की जनता 2 दिनों तक होली मना रही है और अगर पता भी है तो वह उसकी अनदेखी करते हैं, क्योंकि उनके आवागमन में दिक्कत नहीं होती, शायद. वे भूल जाते हैं कि एक महिला शिक्षिका 20 किलोमीटर भला कैसे आएगी, जब उस दिन सार्वजनिक वाहन नहीं चल रहे हैं, सरकारें यह भी भूल जाती हैं कि अगर पुरुष बाइक या कार से आया और उसे रोक कर लोगों ने भूत बना दिया या उसके वाहन पर ही गोबर-कीचड़ फेंका और हड़बड़ी में दुर्घटना हो गयी, तो उसका जवाबदेह कौन होगा? 25 को बिहार में जो शिक्षक स्कूल गए हैं, उनमें से कई की जो दुर्गति हुई है, उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर खूब तैर रही हैं. इन पंक्तियों का लेखक खुद एक ऐसे टीचर को जानता है, जिनकी बाइक दुर्घटनाग्रस्त की गयी और वह भाग्यशाली थे कि कुछ बड़ी टूट-फूट उनके साथ नहीं हुई. 

जमीनी हकीकत समझ बीच का निकालें रास्ता

सरकारी तंत्र में चूंकि अधिकारियों के पास सरकारी वाहन और ड्राइवर की सुविधा होती है, सुरक्षा होती है, तो उनका जमीन से नाता टूट जाता है, शायद. बिहार में पटना में भी सार्वजनिक वाहन की स्थिति ठीक नहीं है. शैयर्ड ऑटो अपनी मनमानी से चलते-रुकते हैं और आप रिजर्व करके चलेंगे तो वे इतना अधिक धन मांग देंगे कि आपको पसीना छूट जाए. ऊपर से होली के दिन सड़कों पर निकलना थोड़ा साहस का ही काम है, क्योंकि किस कोने से, छत के ऊपर से या आमने-सामने आ रही युवाओं की टोली आपको तरबतर कर देगी, उसका अंदाजा नहीं लग सकता है. कुछेक ट्रेन्स चलती हैं, बसें भी शाम तक नहीं चलती हैं. ऐसे में अगर किसी अकेली महिला शिक्षिका को 20-30 किलोमीटर आना हो तो वह कैसे आएगी, उसकी सुरक्षा कैसे सुनिश्चित होगी, यह सोचना भी सरकार का काम है. उसे मुहैया कराना भी सरकार का काम है. इसीलिए, अगर सरकार को पता है कि संख्याबल में कमी के कारण वह हर जगह सुरक्षा नहीं दे सकती, तो फिर होली के दिन छुट्टी घोषित करना ही सबसे व्यावहारिक बात है. इससे धर्मनिरपेक्षता के ढांचे का भी कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि, एक सवाल यह भी उठाया गया कि क्या बिहार सरकार का शिक्षा विभाग ऐसा कोई आदेश ईद या बकरीद के दिन के लिए जारी कर सकता है?

पिछले कुछ वर्षों से किसी भी प्रश्न को इसी 'बायनरी' में देखने का जो अभ्यास देश को हो गया है, उसमें ऐसी बढ़ती घटनाएँ हमारे समाज के ध्रुवीकरण को और तेज करेंगी और यह किसी भी स्वस्थ समाज के लिए ठीक संकेत नहीं हैं.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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