बिहार में मुख्तार के नाम पर मर्सिया पढ़ते तेजस्वी और पप्पू यादव चाहते हैं मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण
यूपी के पूर्व विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी की गुरुवार 28 मार्च को यूपी के बांदा शहर में मौत हो गई. उसके बाद कांग्रेस, सपा , बसपा सहित अन्य विभिन्न राजनीतिक दलों ने उत्तर प्रदेश में कई तरह की प्रतिक्रिया दी है, लेकिन इसकी आंच बिहार भी पहुंच गई. हाल ही में अपनी पार्टी जाप (जन अधिकार पार्टी) का विलय कांग्रेस में करने वाले पप्पू यादव ने न्यायिक जांच की मांग की. तेजस्वी यादव ने ट्वीट किया और उसमें उन्होंने मुख्तार अंसारी के इंतकाल पर शोक व्यक्त किया,और ये भी कहा है कि इस तरह की घटनाओं का एजेंसियों को स्वतः संज्ञान लेना चाहिए. उनके इस बयान के बाद कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं, जिसमें तेजस्वी की आलोचना भी की जा रही है.
तेजस्वी की ये राजनीति खतरनाक
देखा जाए तो तेजस्वी यादव की ये बात समझ में नहीं आती, क्योंकि असरूद्दीन ओवैसी ट्वीट करते हैं तो समझ में आता है, कि वो मुस्लिम कौम की ही राजनीति करते हैं, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ट्वीट करते हैं तो ये समझ में आता है, क्योंकि इनकी पार्टी से मुख्तार अंसारी जुड़े हुए थे, लेकिन तेजस्वी यादव और पप्पू यादव को ऐसी क्या जरूरत पड़ गई कि एक माफिया के नाम के जरिए उनको समुदाय को साधने की सूझी है. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय और उसकी परिस्थिति की राजनीति समाजवादी पार्टी करती आई है, तो ये स्वाभाविक है. एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी अगर मुख्तार अंसारी की मौत पर मर्सिया पढ़ रहे हैं तो वह भी स्वाभाविक है, क्योंकि वह मुसलमानों की भावनाएं भड़का कर अपनी पार्टी को राष्ट्रीय वजूद दिलवाना चाहते हैं. आखिर बिहार में तेजस्वी यादव और पप्पू यादव समाज के पिछड़े वर्ग के नेता मुख्तार अंसारी के निधन पर मर्सिया क्यों गा रहे हैं. एक तो पक्ष यह है कि ये लोग मुस्लिम पक्ष और अल्पसंख्यकवाद की राजनीति करते आए हैं. अब ये मुसलमानों से सहानुभूति का वोट बटोर कर लोकसभा चुनाव में उसे एकीकृत करना चाहते हैं. मुसलमान को भड़का कर, और कट्टर बनाकर अपने पक्ष में अधिक से अधिक वोट कराने का काम ये लोग सोच रहे हैं.
सपा और राजद की गलत है चाल
अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव और पप्पू यादव की नजर में क्या मुख्तार अंसारी सामाजिक न्याय का पुरोधा था? ये लोग आखिर मुख्तार को क्या बताना चाहते हैं कि वो गुंडा नहीं संत था. राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, जो समाजवादी विरासत वाली पार्टी है, कभी भी इसने इस तरीके से लोहिया की विचारधारा, कर्पूरी ठाकुर की विचारधारा, बीपी मंडल की विचारधारा को लेकर संवाद नहीं किया. हालांकि, शहाबुद्दीन, अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे गुंडो को यह यादव समाज के नेता यादवों का मसीहा बताने में लगे हैं. ये गलत राजनीतिक विचार तैयार करना चाहते हैं, यह समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल का दुर्भाग्यपूर्ण कदम है. राष्ट्रीय जनता दल को अपने समीकरण के बिगड़ने का डर है, जिस वजह से तेजस्वी ऐसा कर रहे हैं, क्योंकि अब तक उनकी जो राजनीति चली है वह एमवाई समीकरण पर चली है. वैसे, पिछले एक साल से कि वह ए टू जेड की राजनीति करेंगे. लेकिन कहीं ये डर तो नहीं है कि मुस्लिम वोट में कांग्रेस सेंधमारी ना लगा दे? यूपी में अखिलेश यादव के मन में और वही डर कहीं राजद के नेता और बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के तो नहीं मन में बैठ गया है?. जो फिलहाल राजद के सर्वेसर्वा की तरह काम कर रहे हैं.
लालू की शातिर राजनीति और पप्पू यादव
इंडिया गठबंधन में बिहार में सीट शेयरिंग की प्रक्रिया को कितने लाचार तरीके से अंजाम दिया जा रहा है, यह गौर करने लायक है. कांग्रेस को एक तरीके से राजद ने धकिया दिया है. अल्पसंख्यक वोटों को लेकर कहीं ना कहीं खींचतान है. कांग्रेस के पास अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज अगर मजबूती से आ गया तो उसी दिन समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता पार्टी के वजूद पर खतरा हो जाएगा. देखा जाए तो लालू यादव काफी शातिर राजनीति करते हैं. कांग्रेस पार्टी के बिहार के अध्यक्ष लालू यादव के गोदी नेता है. दोनों ने मिलकर पप्पू यादव को राजनीतिक तौर पर गोल कर दिया .पप्पू यादव की जाप पार्टी को कांग्रेस में शामिल करवा दिया और वादा किया कि पूर्णिया से टिकट देंगे. बाद में बीमा भारती को पूर्णिया से राजद ने टिकट दे दिया. मुख्तार अंसारी की मौत पर बिहार में पप्पू यादव के रोने के पीछे कारण है. बिहार में सीमांचल के इलाके में मुस्लिम वोट है, तो उसको लेकर उनके अतिरेक वाली प्रतिक्रिया मुसलमान को भड़काने वाली मंसा दिखाती है. जिस तरीके से तेजस्वी यादव संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठा रहे हैं, क्या एक गुंडे के लिए संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाना सही है, आखिर किस तरह की ए टू जेड की राजनीति तेजस्वी यादव करना चाहते हैं? दरअसल, उनकी पार्टी अब भले ही ऊपर से अपना तेवर कलेवर बदल ले, मुखौटा लगा ले, लेकिन राजद का चाल, चरित्र और चेहरा अभी भी बिहार में नहीं बदला है.
पप्पू यादव कर सकते हैं खेला
पप्पू यादव भूमिका बना रहे हैं. वह लोकसभा चुनाव के पूर्व ही अपनी राजनीति में मात खा चुके हैं. लालू प्रसाद और बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद की मिलीभगत ने पप्पू यादव को निपटा दिया. जिस दिन पप्पू यादव ने पार्टी का विलय किया उसे दिन अखिलेश प्रसाद सिंह दिल्ली में मौजूद थे. कांग्रेस में पप्पू यादव के जाने से कनफ्लिक्ट जोन तैयार हुआ है. कांग्रेस में जाने के बाद पप्पू यादव वहां भी राजनीति में मात खा रहे हैं. बिहार में जो इंडिया गठबंधन है उसमें भी लालू यादव ने पप्पू यादव को चारों खाने चित कर दिया है. एक तरीके से पप्पू यादव राजनीतिक सांस लेने लायक बनना चाहते हैं, जिसके लिए अब मुख्तार अंसारी एक सहारा है. वैसे, ये कमाल की विडंबना देखिए कि शहाबुद्दीन की पार्टी ने सीपीआई के नेता कामरेड चंद्रशेखर की हत्या की और आज उसका राजद के साथ गठबंधन है. अजीत सरकार की हत्या पूर्णिया में हुई जिसमें पप्पू यादव आरोपी बनाए गए. बाद में कोर्ट से बरी हुए. अब वह कोर्ट से बाहर हैं लेकिन यह संगीन आरोप लगा था. पप्पू यादव, आरजेडी, सीपीएम, सीपीआई, सीपीआईएमएल जैसी सारी पार्टियां आजकल एक थाली में एक साथ भोजन कर रही है. आज बिहार में नीति, नैतिकता और सिद्धांत सबको ताक पर रखकर, विचारधारा को छोड़कर इंडिया गठबंधन राजनीति कर रही है.
चुनाव में मुख्तार की मौत होगी मुद्दा
बिहार और यूपी में मुख्तार की मौत को मुद्दा बनाने की कोशिश हो रही है और मुद्दा बनाया भी जाएगा. विपक्ष का आरोप है कि जेल में उनका इलाज नहीं हुआ. देखा जाए तो चुनाव प्रचार का दौर अभी प्रारंभ हुआ है और पहले चरण का नॉमिनेशन अभी समाप्त हुआ है. शहाबुद्दीन, अतीक अमहद और अब मुख्तार अंसारी के नाम पर वोट लेने का काम होगा. जो अपराधी गुंडा और बदमाश है उनके नाम पर धार्मिक तुष्टीकरण की राजनीति, मुस्लिमपरस्ती की राजनीति करने वाली कांग्रेस, राजद और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी तथा पप्पू यादव जैसे नेता हैं. सीमांचल का बिहार का मुस्लिम जोन है, जो राष्ट्र विरोधी गतिविधियों का भी केंद्र और धर्म-परिवर्तन का भी केंद्र रहा है. मुस्लिमपरस्ती के नाम पर जितनी अराजकता जैसी स्थिति पूरे बिहार के सीमांचल जैसे इलाके में मौजूद है, उसका अभी तक वाकई कोई रास्ता नहीं ढूंढा गया, और राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों इस तरह के तत्वों को खड़ी करके अपनी राजनीतिक कर रही है.
तस्लीमुद्दीन और शहाबुद्दीन जैसे लोगों के चरित्र में अंतर नहीं आता. जिस व्यक्ति को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री बनाया गया और आपराधिक चरित्र का होने के चलते जिसको केंद्रीय मंत्रिमंडल से बाहर किया गया . वैसे लोग को राजद जैसी पार्टियां जो मुस्लिमपरस्ती वाली राजनीति करती हैं, उसे सीमांचल का गांधी कहती है. आज अगर बिहार की बात है तो बिहार की अगली पीढ़ी को शिफ्ट करना होगा, विकास के मार्ग पर लेना होगा. बिहार में शांति और अपराध से मुक्ति अगर चाहिए तो निश्चित तौर पर इन सारी चीजों को एड्रेस करना होगा. आज जिस तरीके से मुख्तार अंसारी के लिए ये लोग सद्भावना जता रहे हैं, उनके लिए मर्सिया गा रहे हैं, सिर्फ एक राजनीतिक टोटका खड़ा कर रहे हैं, लेकिन इससे बिहार का भला नहीं होने वाला है. बिहार की आवाज को यह निश्चित तौर पर समझना होगा.
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