लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरे देश में शुरू हो गई है. इसी क्रम में बिहार में एनडीए की ओर से उम्मीदवारों की घोषणा हो चुकी है. टिकट की घोषणा होने के बाद उम्मीदवार से लेकर कार्यकर्ता तक चुनाव की तैयारी में जुट गए है. जबकि इंडिया गठबंधन की ओर से अभी तक कुछ भी साफ नहीं हैं. हाल में ही जाप यानी अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने वाले पप्पू यादव, जिनकी सीमांचल में काफी अच्छी पकड़ मानी जाती है और एक अच्छे नेता के रूप में भी देखे जाते हैं. कांग्रेस में शामिल होने के बाद ही पप्पू यादव ने पूर्णिया की सीट से चुनाव लड़ने की बात कही थी, इसी बीच राजद ने बीमा भारती को पूर्णिया की टिकट दे दी है.


पप्पू यादव होने देंगे खेला!


राजनीतिक भाषा में कहें तो पप्पू यादव के साथ एक खेला हो गया है. काफी समय से पप्पू यादव पूर्णिया सीट से लड़ने की तैयारी में थे. चुनाव में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए आईटी के माहिर युवाओं की टोली उनके लिए काम कर रही थी. माना जाए तो कांग्रेस से पूर्णिया से पप्पू यादव को सीट मिलनी तय थी. इसी बीच जदयू से बीमा भारती ने इस्तीफा दिया और बाद में राजद की सदस्यता ग्रहण कर लिया. उनका दावा था कि वो पूर्णिया की सीट से चुनाव लड़ेंगी. इससे पहले उनकी एक तस्वीर आई थी जिसमें वो तेजस्वी यादव से सदस्यता ग्रहण कर रही ,है लेकिन अब एक तस्वीर आई है जिसमें वो लालू यादव से सिंबल ले रही है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये तस्वीर दो से तीन दिन की पुरानी है, और फिलहाल कांग्रेस से पूर्णिया की सीट पर बात बनने तक इसे गोपनीय रखने के लिए कहा गया था. अभी राजनीति के गलियारे से जो खबर आ रही है कि कांग्रेस को बिहार में नौ सीटें महागठबंधन में मिल रही है. राजद ने अपने पास 26 सीटें रखी है जबकि लेफ्ट को पांच सीटें दी गई है. लेकिन अभी भी वीआईपी के मुकेश सहनी की पार्टी का स्टैंड साफ नहीं है कि वो किस ओर है.


सबसे बड़ा सवाल अभी भी यही बना है कि आखिरकार पूर्णिया किसका है या होगा? फिलहाल बिहार में  पूर्णिया की सीट ऐसी पेंच हो गई है कि यह इंडिया गठबंधन की मजबूती को ढीला भी कर सकता है. अगर पूर्णिया की सीट कांग्रेस और इंडिया गठबंधन की ओर से नहीं दिया जाता है तो ये एक तरह से धोखा माना जा सकता है. पप्पू यादव शायद इसी शर्त पर मिले होंगे कि पूर्णिया से उनको टिकट मिलेगा और कांग्रेस उनको सपोर्ट करेगी, इसी कारण उन्होंने जाप का विलय कांग्रेस में किया होगा.  इसके बाद उन्होंने तुरंत जाकर लालू और तेजस्वी यादव से भी मुलाकात की थी. उसके बाद सोशल मीडिया पर पप्पू यादव ने पोस्ट भी किया था. आखिरकार ये सवाल उठता है कि ऐसी कौन सी शर्त थी कि पप्पू यादव नहीं माने, तो लालू यादव ने बीमा भारती को टिकट दे दी. देखा जाए तो पप्पू यादव का पूर्णिया गृह जिला है वहां से वो कई बार जीत भी चुके हैं और कई बार हार का भी सामना करना पड़ा है.


लालू अगर खफा हैं, तो पप्पू भी हो सकते हैं


माना जा सकता है कि लालू यादव के मन में पप्पू यादव के पुराने बातों को लेकर भी नाराजगी रही होगी. क्योंकि मधेपुरा में पप्पू यादव ने जो किया उसे सभी जानते हैं. नाराजगी की बात की जाए तो सभी पार्टियों के खिलाफ और सभी नेताओं के खिलाफ मन में एक दूसरे प्रति नाराजगी है. कांग्रेस के मन में राजद के प्रति भी नाराजगी है. बेगूसराय में कांग्रेस की टिकट से कन्हैया कुमार खड़े थे, उसके बावजूद राजद ने अपना उम्मीदवार उतार दिया था. हालांकि, इस बार बेगूसराय की सीट को महागठबंधन ने भाकपा को दे दिया है. बात पुराने मामलों को उठाने को लेकर नहीं है. जब इंडिया गठबंधन बना तो ये बात हुई कि सभी सीटों पर वन टू वन मुकाबला होगा, यानी सीधे तौर पर भाजपा को टक्कर दी जाएगी, लेकिन बिना सीट के फाइनल हुए सिंबल बांटने का काम राजद करती है तो ये गठबंधन के नियम के खिलाफ माना जाएगा. अभी कांग्रेस के पास जो अध्यक्ष हैं वो लालू प्रसाद की कृपा से पहली बार राज्यसभा पहुंचे थे, लालू यादव के सामने कैसे कोई तोल-मोल करता है, ये भी सवाल बनता है. पूर्णिया की सीट की बात अगर छोड़ करें तो कांग्रेस को बहुत से चीजों को दरकिनार करना पड़ रहा है. वाल्मिकीनगर के उम्मीदवार जो मात्र 22 हजार वोटों से हारे थे वो सीट भी कांग्रेस को छोड़नी पड़ रही है. इसका मतलब है कि कांग्रेस ठीक से तोलमोल नहीं कर पा रही है, जिसकी वजह से बिहार में कांग्रेस को नौ सीटों पर ही समझौता करना पड़ रहा है. एक कारण ये भी है कि जो अभी बिहार में कांग्रेस के अध्यक्ष है, वो उम्र और प्रभाव के नजरिए से लालू यादव से काफी छोटे हैं, इसलिए सीट के बारे में खुल कर बोल नहीं पा रहे हैं.


गठबंधन में है बहुतेरी गांठ


इंडिया गठबंधन की बात करें तो एक नहीं बल्कि बहुत से गांठ है. सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र और दक्षिण में भी सीट शेयरिंग पर बात नहीं बन पा रही है. इसे कांग्रेस की गलती के तौर पर भी देखा जा रहा है. बिहार के संदर्भ में देखा जाए तो नौ सीटों में से आठ सीटों पर कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार की घोषणा भी कर दी है, लेकिन अभी भी एक सीट पर पेंच फंसा हुआ दिख रहा है. हालांकि, गठबंधन की दोनों पार्टियां मिलकर कोई न कोई रास्ता जरूर निकालेंगी, लेकिन जहां तक उम्मीद लगाई जा रही है कि पूर्णिया को पप्पू यादव नहीं छोड़ेंगे. अगर पूर्णिया का टिकट पप्पू यादव को नहीं मिलता है तो ये पूरी तरह से धोखा माना जाएगा. राष्ट्रीय स्तर पर जो सीट शेयरिंग का फार्मूला नहीं बन पा रहा है उसकी जिम्मेदार कहीं न कहीं कांग्रेस ही है. कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को लगा कि बिहार में जो जातिगत जनगणना हुई है. उसमें ओबीसी और आरक्षण की बात के तौर पर एक बड़ा मुद्दा चुनाव के लिए उनको मिल गया है. उसके बाद इंडिया गठबंधन की संकल्पना करने वाले नीतीश कुमार को दरकिनार करना शुरू कर दिया, उसके बाद से ही इंडिया गठबंधन धीरे-धीरे टूटता चला गया. अभी बिहार की बात करें तो ये बताता है कि इंडिया गठबंधन के बीच सीट शेयरिंग का अभी तक नहीं हो पाना ये माना जा सकता है कि बात सीटों कों लेकर बन नहीं रही है. इस मामले में कांग्रेस का अभी तक विजन साफ नहीं है. कांग्रेस को लग रहा है कि जो बिहार से दो मुद्दे मिले है उसके दम पर अपनी नैय्या इस चुनाव में पार कर लेगी, लेकिन ये पूरी तरह से पिछले तीन विधानसभा चुनाव में फेल हो चुका है, लेकिन इन्हीं बातों पर कांग्रेस और राहुल गांधी अड़े हुए है. इसी का नतीजा है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी अकेले चुनाव लड़ रही है. यूपी में अधिकांश सीट सपा ने ले ली है, जयंत चौधरी और मायावती को अपने खेमे में नहीं रख पाए. इंडिया गठबंधन के बिखराव के जिम्मेदार कांग्रेस और नीतीश कुमार रहे हैं. नीतीश कुमार बड़े भाई की भूमिका में थे और बीच में छोड़कर चले गए.


छोटी पार्टियों की महत्वपूर्ण भूमिका 


बिहार में इंडिया गठबंधन में क्या चल रहा है ये समझना थोड़ा मुश्किल होते जा रहा है. कांग्रेस अपने राह पर चल रही है दूसरी ओर राजद अपने राह पर है. पप्पू यादव अपनी पार्टी का विलय कर के कांग्रेस में आ गए. मुकेश सहनी का कुछ पता नहीं है.. देखा जाए तो राजद को भाजपा से सीख लेनी चाहिए कि छोटी पार्टियों को कैसे महत्व दिया जाता है और बड़ी पार्टी की क्या भूमिका होती है? पप्पू यादव को सिर्फ एक नेता नहीं माना जा सकता. बिहार में पिछले कई सालों में जो उन्होंने राजनीति की है, वो अलग ही तरह से निखार लाई है. इंडिया गठबंधन तीन माह पहले जिस मजबूत स्थिति में थी वो आज कहीं न कहीं कमजोर होते दिख रही है. इसका एक कारण सीटों  का लालच है तो दूसरी ओर कोई और पहलू भी हो सकता है. जिस हिसाब से बड़े दल विपक्ष की भूमिका में कमजोर होते जा रहे हैं, इसका मतलब है कि कुछ बात और भी है. हालांकि विधानसभा और लोकसभा की बात अलग होती है. अगर भाजपा को टक्कर देनी है तो कहीं न कहीं सभी को एक साथ आकर लड़ना होगा नहीं तो इसका खामियाजा भुगतना होगा.  


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