बीते दिनों कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकाली गई. इसमें इंदिरा गांधी को साड़ी पहने और उस साड़ी पर खून के दाग के साथ दिखाया गया. दो सिख गनमैनों को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री को गोली मारते भी दिखाया गया. इस झांकी में ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख विरोधी दंगों के बैनर भी थे और जाहिर तौर पर इसके पीछे खालिस्तानी ही थे. भारत की ओर से इस पर कड़ी प्रतिक्रिया विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दी.

  


कनाडा की नीतियों को समझें


कनाडा के ब्रैम्पटन शहर में 4 जून के एक परेड के दौरान झांकी में इंदिरा गांधी को खून से सनी साड़ी में दिखाया गया. इसमें दिखाया गया कि पगड़े बांधे शख्स उनके ऊपर गोलियां बरसा रहा है. इस घटना के बाद हालांकि, भारत ने कड़ा रुख अपनाया है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने खुद कहा कि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर असर होगा. लेकिन, इस घटना से पड़ने वाले प्रभाव से पहले हमें भारत-कनाडा के संबंधों के बारे में जानना होगा. कनाडा के विषय में, उनकी जो इमिग्रेशन पॉलिसी है, उस पर थोड़ा सा फोकस करें. पिछले कई वर्षों से प्रवासी भारतीयों के लिए कनाडा के लिए आकर्षक केन्द्र बना हुआ है. हर साल अच्छी खासी संख्या में भारतीय और उनमें से भी जो सिख हैं, वे कनाडा जाते हैं. कनाडा में कई ऐसे प्रांत मिलेंगे जहां पर सिखों का अच्छा-खासा प्रभाव है. वर्तमान यानी साल 2023 की बात करें तो करीब 19 लाख भारतीय वहां पर रहते हैं. उन 19 लाख भारतीय मूल के लोगों में से करीब 50 प्रतिशत लोग सिख समुदाय से आते हैं और ये सभी पंजाब से आते हैं. इनमें से काफी लोग बहुत सालों से कनाडा में रह रहे हैं.


कनाडा में सिखों का बड़ा असर


कई सारे प्रांत, कनाडा के जो शहर हैं, वहां पर इन सिख समुदाय के लोगों की आबादी काफी ज्यादा है और वहां पर किंग मेकर का काम करते हैं. अगर वर्तमान में कनाडा की संसद की बात करें तो करीब 18 के आसपास प्रतिनिधि सिख समुदाय से हैं. इस लिहाज से एक अच्छी खासी राजनीतिक हैसियत प्रवासी भारतीय यानी सिखों की कनाडा की राजनीति में है. इस वजह से कनाडा में चाहे कोई भी सरकार आए, पिछले कई सालों ने वे प्रवासी भारतीय, खासकर सिखों को रिझाने में लगी रहती है. अभी अगर खालिस्तान आंदोलन की भी बात करें तो इस आंदोलन के जो प्रमुख दो केन्द्र हैं, वो है कनाडा और यूके.



इसमें भी सबसे ज्यादा कनाडा में भी खालिस्तान के समर्थक रहते हैं. वे हर बार भारत में प्रो-खालिस्तानी जो आंदोलन है, उनको कनाडा के माध्यम से ही चलाने की कोशिश करते हैं. ज्यादातर इसकी फंडिंग वहीं से होती है. पिछले कुछ सालों के दरम्यान ये और खुलकर सामने आया है. खालिस्तान का जो पूरा का पूरा मामला है. अभी जो क्रिकेट वर्ल्ड कप हुआ था इंग्लैंड में और जिस तरह हवाई जहाज के ऊपर 'रेफरेंडम 2020' या खालिस्तान जिंदाबाद लिखकर, यहां तक कि स्टेडियम में भी खालिस्तान की टी-शर्ट वगैरह पहनकर लोग आ गए थे, वह इंग्लैंड में इनकी पहुंच को बताता है. उस वक्त भी भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी.


 ब्रैम्पटन बघटना शर्मनाक


अभी जो ब्रैम्पटन की घटना हुई है, उसमें बहुत ही शर्मनाक तरीके से पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या को दिखाया गया और खालिस्तान का महिमा-मंडन किया गया, वह शर्मनाक है. अब भले ही कनाडा के पॉलिटिशियन या सरकार बोल रही है कि वह उनका आंतरिक मामला है. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के जसजीत सिंह ने भी यह बात कही है, लेकिन जब आप भारत के प्रधानमंत्री की हत्या का महिमामंडन अपने देश में होने देंगे, तो उस तरह की चीजें बिना दलीय मतभेद के डील की जाएंगी. भारत सरकार सुरक्षा को लेकर खासी सतर्क है. भारत ने कनाडा और यूके के साथ पिछले कई साल से बातचीत में हैं, आतंकवाद को लेकर सुरक्षा संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान की संधि की है,  भारत और कनाडा ने तो आतंकियों के प्रत्यर्पण पर भी हस्ताक्षर किए हैं. हालांकि, कनाडा कई ऐसे लोग चले जाते हैं जो वहां से भारत-विरोधी अभियान चलाते हैं, तो कुल मिलाकर अब चीजों को कसने की जरूरत है. भारत को कनाडा के साथ बैठकर बात करनी चाहिए, ताकि इस तरह के मसले सुलझाए जा सकें. राजनीति अलग है, राष्ट्रीय सुरक्षा अलग है.


आज भारत, कल कनाडा की भी बारी


वैसे, कनाडा भी यह समझे कि आज अगर भारत को मुश्किल आ रही है, तो कल कनाडा भी मुसीबत में होगा. 2018 में जो आतंकियों की सूची कनाडा ने जारी की थी, उसमें पांच शीर्ष के आतंकी खालिस्तानी हैं. हालांकि, वहां जब प्रो-खालिस्तानी मेंबर्स ने दबाव बनाया, तो कनाडा को वह वापस लेना पड़ा. कनाडा को एक लिबरल देश माना जाता है, लेकिन इन सब बातों से उसकी भी खास गिरेगी, उसको नुकसान उठाना पड़ेगा. बाकी, जो ये पूरा खालिस्तानी आंदोलन है, उसमें पाकिस्तान के माध्यम से भी काफी प्रोत्साहन दिया जाता है. पाकिस्तान के बारे में दुनिया जानती है कि वह टेररिस्ट देश है. कनाडा ने अगर इस पर लगाम नहीं लगायी, तो भारत के साथ कई और देश भी अपने रिश्तों की समीक्षा करेंगे. इस घटना से भारत और कनाडा के राजनीतिक संबंधों पर असर पड़ेगा. राजनीतिक संबंधों पर असर हुआ तो आर्थिक और सामरिक मामलों पर असर पड़ेगा. फिलहाल, भारत और कनाडा सोच रहे हैं कि आपस में 8 बिलियन डॉलर का ट्रेड करेंगे, लेकिन ऐसी घटनाओं से उस पर असर तो पड़ेगा ही. जब जस्टिन ट्रडू भारत आए थे, तो सिखों को रिझाने के लिए गुरुद्वारा भी गए थे. यहां तक कि किसान-आंदोलन के समय भी कनाडा ने कुछ ऐसे बयान दिए थे, जो भारत को नागवार गुजरे थे और भारत ने अपना कड़ा विरोध भी दर्ज कराया था. 


भारत करे कड़ा विरोध, बनाए जागरूक


भारत को फिलहाल को डिप्लोमैटिक स्टैंड लेना चाहिए और कड़ा विरोध उसने दर्ज भी कराया है. कनाडा की सरकार से बातचीत कर खालिस्तान के बारे में उनको अवेयर करने की जरूरत है. जहां तक प्रवासी भारतीयों की बात है, तो उसमें सिखों के अलावा भी 50 फीसदी अलग समुदाय के भी प्रवासी हैं, कुल 19 लाख की आबादी में. तो, अगर कनाडा केवल खालिस्तानियों को प्रश्रय देगा तो बाकी इंडियंस को अलग लगेगा और खामियाजा कनाडा को भी भुगतना पड़ेगा. अगर आज खालिस्तान है, तो कई सारे प्रॉविंस जो सिख डोमिनेटेड हो रहे हैं, वहां भी अलग डिमांड होने लगेगी. कई मांगें पूरी भी हुई हैं, तो वो लगातार बढ़ती जाएंगी. कनाडा एक मल्टीकल्चरल स्टेट है तो वहां सामंजस्य और समन्वय बनाकर ही चलना होगा. भारत को एक कड़ा स्टैंड और मैसेज देना चाहिए. भारत हालांकि, समय-समय पर इसे कनाडा को समझाता भी रहा है. भारत में भी जबसे पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार आयी है, तब से यह किसी से छिपा नहीं है कि उनको खालिस्तानियों का समर्थन प्राप्त है और वे भी उन पर सॉफ्ट हैं. अभी अमृतपाल वाली घटना हम सब ने देखी ही है. भारत की सरकार सजग है और उसे अगर खालिस्तान का मसला सुलझाना है, तो भारत के पंजाब को ठीक करने के साथ ही यूके और कनाडा से भी बात करनी होगी. 


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