नई दिल्ली: अपनी बूढ़ी होती आबादी से परेशान चीन ने बेशक अब तीन बच्चे पैदा करने की छूट दे दी है, लेकिन सवाल ये है कि उसकी ये नीति कितनी कामयाब हो पाएगी? चीन को अपनी समृद्ध अर्थव्यवस्था लड़खड़ाने का खतरा दिख रहा है. लिहाजा वो चाहता है कि कामकाजी लोगों की आबादी तेजी से बढ़े ताकि दुनिया के बाजार में उसकी सल्तनत बरकरार रहे. लगभग 141 करोड़ की आबादी वाले चीन ने अब तक अपनी जनसंख्या को काबू में रखने का हर सख्त तरीका अपनाया, जिसका नतीजा हुआ कि जन्मदर में लगातार गिरावट आने लगी. इससे घबराए चीन ने पांच साल पहले यानी 2016 में लोगों को दो बच्चे पैदा करने की इजाज़त दे दी. इससे पहले वहां लंबे समय तक सिर्फ एक बच्चा पैदा करने की नीति को सख्ती से लागू किया गया था. लेकिन दो बच्चों वाली नीति से भी जन्मदर बढ़ाने का उतना फायदा नहीं मिला, इसीलिये ये सवाल उठ रहा है कि अब कितने चीनी दम्पति तीन बच्चे पैदा करने के किये खुद को मानसिक रूप से तैयार कर पायेंगे?


हालांकि, चीन आज भी दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश है. लेकिन उसकी जनसंख्या पिछले कई दशकों के मुक़ाबले सबसे धीमी गति से बढ़ रही है. पिछले दस सालों में यहां आबादी बढ़ने की औसत सालाना दर 0.53 फीसदी रही है. यानी चीन में बुज़ुर्गों की संख्या बढ़ रही है और बच्चे पैदा होने की दर धीमी है.


राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) के अनुसार, नई जनगणना के आंकड़ों से पता चलता है कि चीन जिस संकट का सामना कर रहा था, उसके और गहराने की उम्मीद है. क्योंकि देश में 60 वर्ष से अधिक लोगों की आबादी बढ़कर 26.4 करोड़ हो गई है. एनबीएस ने एक बयान में कहा कि जनसंख्या औसत आयु बढ़ने से दीर्घकालिक संतुलित विकास पर दबाव बढ़ेगा. देश में 89.4 करोड़ लोगों की उम्र 15 से 59 वर्ष के बीच है, जो कि 2010 की तुलना में 6.79 प्रतिशत कम है. 


चीन के सामने इस वक़्त घटती जन्म दर, बूढ़ी होती आबादी और कामकाजी लोगों की कमी, उसकी बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. वैसे विशेषज्ञ तो इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभाव पर भी ज़ोर देते रहे हैं. इस महीने जारी हुई जनगणना के मुताबिक, चीन में पिछले साल करीब एक करोड़ 20 लाख बच्चे पैदा हुए थे जबकि साल 2016 में ये संख्या एक करोड़ 80 लाख थी. 2021 में आया ये आंकड़ा 1960 के बाद से सबसे कम है. ये जनगणना 2020 में की गई थी.


तीन बच्चों वाली नीति के सफल होने पर आशंका जताने की एक बड़ी वजह यह भी है कि सरकार से छूट मिलने के बावजूद चीन में सामाजिक ढांचा एक बच्चे की नीति के अनुसार ही ढल गया है. लोग छोटे परिवार चाहते हैं, इसलिये वहां लैंगिक असंतुलन बना हुआ है. लोग छोटा पारिवारिक ढांचा रखने के आदी हो चुके हैं. बताया जाता है कि 2016 में दो बच्चे पैदा करने की छूट दिए जाने के बाद भी देश की गिरती जन्म दर को बदलने में सफलता नहीं मिली. हालांकि, इस घोषणा के लगातार दो सालों तक जन्म दर में बढ़ोतरी ज़रूर देखने को मिली थी. लेकिन चीन में लोगों की कई पीढ़ियां बिना भाई-बहन के ही रह रही हैं और उन्हें छोटे परिवारों की आदत पड़ गई है. वो घर में काम करने वाले हाथ बढ़ाने की बजाए एक ही बच्चे को सभी फायदे देना चाहते हैं.


दरअसल, कई दशक तक एक बच्चे की नीति लागू रहने से चीन में लैंगिक असंतुलन बहुत बढ़ गया है. लड़कों को प्राथमिकता देने के चलते बड़ी संख्या में लड़कियां छोड़ दी गईं या अनाथालय भेज दी गईं. चीन के इकोनॉमिस्ट तर्क देते हैं कि अगर नई जन्म नीति प्रभावी होती है तो मौजूदा दो बच्चों की नीति को भी प्रभावी साबित होना चाहिए था. लेकिन, तीन बच्चे पैदा कौन करना चाहता है? युवा ज़्यादा से ज़्यादा दो बच्चे पैदा कर सकते हैं. बुनियादी मसला ये है कि यहां रहन-सहन का खर्च और लोगों पर दबाव बहुत ज़्यादा है. एक बच्चे की नीति ख़त्म होने के बाद भी यहां लोगों ने अचानक ज़्यादा बच्चे पैदा करना शुरू नहीं किया. बल्कि कई लोग ये पूछ रहे हैं कि जब दो बच्चों की नीति से ज़्यादा बच्चे नहीं हुए तो तीन बच्चों की नीति से कैसे होंगे?


हालांकि विशेषज्ञ यह चेतावनी भी देते हैं कि चीन की जनसंख्या कम होने का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ सकता है क्योंकि चीन की अर्थव्यवस्था ने बहुत तेज़ी से वृद्धि की है और कई उद्योग चीन पर निर्भर करते हैं. यहां जनसंख्या गिरने का असर बहुत व्यापक होगा.