(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
कोटा में आत्महत्या करते छात्र और विवश मां-बाप, बच्चों के साथ अभिभावकों को भी है नियमित काउंसलिंग की ज़रूरत
कोटा...राजस्थान का एक शहर. कोचिंग का हब. इंजीनियर और डॉक्टर बनाने की खदान. शहर में हालांकि, सब कुछ ठीक नहीं है. इस साल अब तक डेढ़ दर्जन से अधिक छात्रों ने आत्महत्या कर ली है. यहां के स्टूडेंट्स में तनाव और पीड़ा बिल्कुल आम बात है.
शहर में कोचिंग छात्रों की लगातार बढ़ रही आत्महत्या की घटनाओं से प्रशासन भी सावधान है. तमाम घटनाओं के बाद कोचिंग संचालकों और प्रशासन ने बैठक की. इसके बाद प्रशासन की तरफ से गाइडलाइन जारी की गई. नए नियमों के तहत अब हॉस्टल के हर कमरे में पंखों पर एंटी हैंगिग डिवाइस लगेंगे. रविवार को बच्चों को छुट्टी देनी होगी, साथ ही प्रत्येक बच्चे का हरेक पखवाड़े साइकोलॉजिकल टेस्ट भी किया जाएगा. इसके साथ ही कई और नए नियम भी बनाए गए हैं. तकनीक का सहारा लेना भी उनमें से एक है. अब हालांकि सवाल ये है कि क्या इन उपायों से छात्रों की आत्महत्या रुक जाएगी, या फिर ये सारे उपाय सतही साबित हो जाएंगे?
काउंसलिंग अगर लगातार हो, तो मिलेगी मदद
छात्रों की रेगुलर काउंसलिंग की जो बात है, अगर वह नियमित तौर पर की जाएगी तो उससे मदद मिलेगी. ये बहुत जरूरी कदम है. ये एक ऐसा एज ग्रुप है जिसमें बच्चे बहुतेरे तरह के दबाव से जूझ रहे होेत हैं. जैसे, पीयर प्रेशर है, स्कूल का प्रेशर है, परिवार का प्रेशर है और भी कई तरह के दबाव हैं. जब आप पढ़ाई करते होते हैं तो कई तरह की बातें आती हैं दिमाग में. बहुतेरे सवाल भी होते हैं, बहुत सारी आशंकाएं भी होती हैं भविष्य को लेकर. उसी बीच में आता है असफलता का डर. हरेक स्टूडेंट तो सफल नहीं होता है न. उस बीच के लम्हे में बच्चों को काउंसलिंग की जरूरत होती है. इसको बहुत सीरियसली पूरा करने की जरूरत है.
गार्जियंस को तो बिल्कुल ही समझ में नहीं आ रहा है. इसकी वजह भी है. हम जब भी किसी को समझना चाहते हैं, तो खुद से उसकी तुलना करते हैं. अभी जो 40-45 के उम्र वाले अभिभावक हैं, वो अक्सर सोचते हैं कि ये बच्चों के साथ क्या हो रहा है, हमने तो इनसे ज्यादा कठिनाइयों में समय बिताया, काफी मुश्किल से पढ़ाई की, लेकिन इन बच्चों को तो हम सारी सुविधा दे रहे हैं. इनको ऐसे बर्ताव करने का हक नहीं है. ऐसी सोच होती है गार्जियन्स की. फिर, कुछ लोग इसे बच्चों का नाटक भी कह देते हैं.
गार्जियन्स और नयी पीढ़ी के बीच नहीं हो गैप
एक चीज जो गार्जियन्स को समझनी चाहिए कि 20 साल में चीजें बहुत बदल गयी हैं. तो, जब आप स्ट्रगल कर रहे होते हैं, तो उसके भी कई चरण होते हैं. जब पेट भरने की चिंता हो तो हम मकान के बारे में नहीं सोचते. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, हमारी इच्छाएं भी बढ़ती हैं. संघर्ष भी बदलता है.
अभी जो 40-45 साल के लोग हैं, वे अधिकांशतः तो दो या तीन भाई-बहनों के बीच बड़े हुए थे, तो आधी चिंताएं उनकी वहीं खत्म हो जाती थीं. बच्चों को जो संघर्ष झेलना पड़ रहा है, वह बिल्कुल अलग है. यह तुलना ही गलत है. पिछली पीढ़ी का स्ट्रगल बिल्कुल अलग था, उनका दिमाग वहां रहता था.
समस्या को स्वीकार करें अभिभावक
अभी के बच्चे जिस चीज से गुजर रहे हैं, वो हम समझ ही नहीं पा रहे हैं. जब समझ नहीं पाते, तो अपने मन से कल्पना करते हैं. यह भी निष्कर्ष निकाल लेते हैं कि बच्चा नाटक करता है. इसके पीछे समस्या है कि पैरेंट्स और बच्चों के बीच काफी गैप आ गया है. हालांकि, आज के अभिभावक अपनी हैसियत से बढ़कर दे रहे हैं, लेकिन वे क्या दे रहे हैं? हमें एसी नहीं मिला, तो हम दे रहे हैं, हमें महंगे खिलौने नहीं मिले, तो दे रहे हैं. इस देने को हम काउंट भी करते हैं. ये भी एक समस्या है. हम बच्चों को शहर के सबसे महंगे स्कूल में पढ़ाते हैं, कोचिंग भी देते हैं, तो फिर दिक्कत कहां आती है? उन्हें जो असल चीज चाहिए, वे नहीं मिल रही है.
अभी बच्चा किस चीज से गुजर रहा है, अभी क्या जरूरत है उसकी, ये महत्वपूर्ण है. बच्चे पैरेंट्स से दूर होते जा रहे हैं, उनके मन में ये आ जाता है कि उनको कोई समझता नहीं है. इस गैप को भरने के लिए हमें उनसे लगातार बात करनी होगी, उनको सुनना होगा, तभी एक ब्रिज बन पाएगा.
ये चीजें जो प्रशासन ने गाइडलाइंस के तौर पर जारी की हैं, उसे व्यवस्थित करने की जरूरत है. बच्चों के साथ पैरेंट्स की भी काउंसलिंग होनी चाहिए. जो पैरेंट्स इससे गुजर रहे हैं, उनके दुख को तो बस समझा ही जा सकता है. उनमें इस बात को लेकर जागरूकता की बहुत जरूरत है. वे सबसे पहले डिनायल मोड से बाहर आएं. वे इस समस्या को समस्या समझ ही नहीं रहे हैं.
यह बहुत आम बात है आजकल के बच्चों में कि वे डिप्रेशन और तनाव से जूझ रहे हैं. बच्चा भले सुनने को तैयार है, लेकिन गार्जियन्स ही तैयार नहीं है. अभिभावकों को यह बात समझनी होगी. उनकी गलती भले नहीं है, लेकिन उनको इस बात के लिए सामने आना होगा, इस ब्रिज को बनाना होगा, जो गैप उनके और बच्चों के बीच आ गया है. पंखों में हैंगिंग डिवाइस लगाना काफी नहीं है, क्योंकि जो आत्महत्या करने के लिए आमादा होगा, वो रास्ते तो और भी तलाश लेगा. गार्जियंस के प्रतिनिधि काफी नहीं हैं. उनको सामूहिक तौर पर काउंसलिंग की जरूरत है. जिनको व्यक्तिगत तौर पर जरूरी हो, उनको वो भी मिले. जब पैरेंट्स जागरूक होंगे तो वो सिस्टम का इस्तेमाल भी कर लेंगे. उसके बिना लड़ाई अधूरी है.
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