मध्यप्रदेश में अक्सर जो होता है वह एक बार फिर से हुआ है. एक फिर से सरकारी महकमा हांफता और कांपता नजर आया. एक बार फिर से सरकारी अधिकारी-कर्मचारी दौड़ा-दौड़ा कर पीटे गए. गनीमत रही जान बच गई वर्ना शाजापुर में भी बड़ी अनहोनी हो सकती थी. हालांकि मध्यप्रदेश में खनन माफिया पर कार्रवाई करने गई टीम का पिट जाना कोई अनहोनी नहीं है. एमपी में खनन माफिया का सरकारी मुलाजिमों को दौड़ाना, पीटना और कई बार जान से मार देना इतनी आम बात हो गयी है कि इसको अब एक रूटीन प्रक्रिया कहा जाने लगा है. अभी पिछले साल नवंबर में ही खनन माफिया ने एक पटवारी की जान ही शहडोल में ले ली, जब उस पर कार्रवाई के दौरान उन्होंने गाड़ी चढ़ा दी और ट्रैक्टर से कुचल कर उस पटवारी की मौत हो गयी. पटवारी रात में अवैध खनन का निरीक्षण करने गए थे.
थम नहीं रहे खनन माफिया के हौसले
ताजा मामला शाजापुर जिले की कालापीपल तहसील से आया है. खनिज विभाग को जानकारी मिली कf मोहम्मदपुर मछनई में कालीसिंध नदी से रेत का अवैध उत्खनन हो रहा है. इसी को देखने और रोकने के लिए राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ खनिज अधिकारी आरिफ खान दल बल के साथ मौके पर पहुंचे. जब अवैध उत्खनन रोकने और उत्खनन के काम में लगी मशीनों को पकड़ने की कोशिश की गई तो ग्रामीण भड़क और टीम पर हमला कर दिया. हमले का वीडियो इतना भयानक है कि समझा जा सकता है कि अधिकारियों की जान बच गई तो उसमें केवल भगवान की कृपा है वरना जिस तरह का गुस्सा और हमला देखा गया उसमें प्रशासनिक टीम पर हमला करने वाले एकदम खून के प्यासे दिख रहे थे. अधिकारी बस बच गए, वरना शहडोल जिले की ही दुर्घटना का फिर से एक बार मुजाहिरा देखने को मिल सकता था. मध्य प्रदेश में नयी सरकार आने के बाद मुख्यमंत्री मोहन यादव भले फरसा चलाते दिखे हों, भले ही उन्होंने दावे किए हों कि नर्मदा माई की छाती को छलनी होने से बचा लेंगे, लेकिन जमीनी स्तर पर मामला ढाक के तीन पात ही देखने को मिलता है. खनन माफिया को जहां कहीं भी मौका मिल रहा है, वे अपना अवैध काम शुरू कर दे रहे हैं. हरदा जिले में भी पूर्व मंत्री कमल पटेल के इलाके से लगातार अवैध खनन हो रहा है. यहां से दिन रात अवैध रेत से भरे ओवरलोड डंपर और ट्रैक्टर-ट्रक निकल रहे हैं. इसके खिलाफ टिमरनी के विधायक ने शिकायत भी की थी, लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात. जब-तब दिखावे के लिए सरकारी कर्मचारी कुछ कार्रवाई करते हैं औऱ ट्रकों-डंपरों को बंद कर देते हैं, लेकिन माफिया फिर सरकारी जुर्माना भर कर अपने वाहन छुड़ा लेता है और फिर बेरोकटोक खनन शुरू कर देता है.
मामला होता है दर्ज, पर उसके बाद...
शाजापुर के ताजा मामले के बाद एक बार फिर मामला दर्ज हो गया है पर इसका असर कितना होगा यह अपने आप में सबसे बड़ा सवाल है. सवाल इसलिए क्योंकि मध्यप्रदेश में इस तरह की घटनाओं का सिलसिला बहुत लंबा है. मध्यप्रदेश में यह हालात तब हैं जब पटवारी से लेकर आईपीएस अधिकारी तक की हत्या माफिया कर चुके हैं. हत्या और हमलों के बाद छोटी मछलियों को मसलने वाले बहादुर आज तक पता न कर सके कि इस मंसूबे को हौसला देने वाले घड़ियाल कौन हैं. माफिया की मनमानी को लेकर एमपी की सियासत भी काफी सहिष्णु हो चुकी है. हर घटना के बाद मामला उठता है, बयानबाजी होती है और फिर ढाक के तीन पात. कुछ दिन के शोर के बाद सब मौन में चले जाते हैं और इसी मौन के बाद आती है एक नई मौत की खबर. कभी किसी अधिकारी के हमले में मर जाने की, कभी सिस्टम के इकबाल के मर जाने की. वैसे सिस्टम का इकबाल तो काफी पहले ही मर चुका है, वह अगर जिंदा रहता तो फिर इस तरह की अनहोनी ही नहीं होती. वह भी एक के बाद एक, लगातार, बेरोकटोक. यहां यह भी याद दिलाने की बात है कि जब-जब किसी सत्यनिष्ठ अधिकारी ने माफिया से टकराने की कोशिश की है, तो उसे हमले के अलावा तबादले का भी अस्त्र झेलना पड़ा है. इस क्रम में 2021 की एक घटना याद करनी चाहिए.
मुरैना जिले में तैनात वन विभाग की एसडीओ श्रद्धा पंढारे ने खनन माफिया के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था. राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में उन्होंने बतौर अधीक्षक पद संभाला औऱ अप्रैल 2021 में अपनी तैनाती के बाद से ही रेत खनन माफिया के ख़िलाफ़ लगातार कार्रवाई की. उन पर इस दौरान ग्यारह हमले भी हुए. तीन महीनों के बाद ही 'रूटीन कार्रवाई' में उनका तबादला कर दिया गया. हालांकि, तब भी लोग कुछ और ही कहानी कहते थे, अब भी कुछ और ही कहते हैं.
मध्यप्रदेश का मान
सवाल यह है कि ऐसी मरण की स्थिति में मध्यप्रदेश के मान का क्या होगा? सवाल यह है कि ऐसे विकट माफियाराज में क्या मध्यप्रदेश फल-फूल पाएगा? सवाल यह भी है कि अगर ऐसे हालात बार बार बने रहे तो क्या यह नहीं मान लिया जाए कि एमपी में इस बात की स्वीकारोक्ति हो गई है कि शहर से लेकर गांव तक चुनी हुई सरकार चलेगी लेकिन नदियों के तट पर और खनिज क्षेत्र का झत्रप माफिया को ही मानना पड़ेगा?
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