जिस देश की अदालतों में 44880748 केस पेंडिग हो, जहां जांच के स्तर पर ही अकेले बिहार में 2.67 लाख केस पेंडिंग हो, वहीं बिहार के सारण (छपरा) जिले में एक ट्रिपल मर्डर केस में न सिर्फ अभियुक्त को 1 घंटे के भीतर गिरफ्तार किया जाता है, बल्कि 50वें दिन दोनों अभियुक्तों को दोषी मानते हुए, आजीवन कारावास की सजा भी सुना देती है. और इस तरह बिहार के नाम एक नया रिकॉर्ड दर्ज हो जाता है कि यह देश का पहला राज्य और सारण देश का पहला जिला बन गया, जहां नए भारतीय न्याय संहिता 2023 के तहत इस तरह के गंभीर अपराध में पहली सजा सुनाई गयी है. सवाल है कि आखिर हम इस केस की चर्चा क्यों कर रहे है?
इसलिए, क्योंकि कुछ मूल सवाल हैं, जिनके जवाब जानना जरूरी है. मसलन, इस तरह के केसेज का समाधान स्पीडी जांच और स्पीडी ट्रायल से ही संभव है. फिर, सारण पुलिस का यह मॉडल क्या पूरे बिहार या पूरे देश में लागू हो सकता है? फिर यह भी कि स्पीडी जांच का मोडस ऑपरेंडी क्या था?
स्पीडी जांच का अर्थ
सारण जिले के रसूलपुर थाना के धनाडीह गांव में 17 जुलाई 2024 को तारकेश्वर सिंह के घर की छत पर धारदार हथियार से 03 व्यक्तियों की हत्या कर दी गयी थी. इस मामले में एक एफआईआर 133/24 दिनांक-17.07.2024, धारा-103(1)/109(1)/329(4)/3(5) दर्ज की गयी. पुलिस अधीक्षक, सारण के के नेतृत्व में घटना के एक घंटे के भीतर ही दो अभियुक्तों सुधांशु कुमार उर्फ रौशन और अंकित कुमार को गिरफ्तार कर लिया गया. बहरहाल, यह तो पुलिस सक्रियता से सभव हुआ, लेकिन जांच महज कुछ दिनों में कैसे संपन्न हुई, इसे ले कर किसी के भी मन में सवाल हो सकते है. इस बारे में सारण एसपी कुमार आशीष बताते हैं कि इस केस की जांच वैज्ञानिक तरीके से की गयी, जिसके लिए फॉरेंसिक विशेषज्ञों, एफएसएल पटना और पटना अभियोजन टीम का सहयोग लिया गया. इसमें आरोपियों के निशान और डीएनए आदि की भी जांच की गयी. नतीजतन, महज 2 सप्ताह के आसपास की जांच के बाद ही सारण पुलिस ने अदालत में चार्जशीट दायर कर दी.
स्पीडी ट्रायल की मांग
पुलिस अधीक्षक के मुताबिक सारण पुलिस ने न्यायालय से स्पीडी ट्रायल की सिफारिश की, जिसे मानते हुए 14 दिनों के बाद ही न्यायालय ने 13 अगस्त 2024 से त्वरित सुनवाई शुरू कर दी. सुनवाई के बाद 03 सितंबर 2024 को दोनों अभियुक्तों को धारा 103(1)/109(1)/329(4) को भारतीय न्याय संहिता के तहत दोषी पाया गया और उन्हें 5 सितंबर 2024 को (मामले के 50वें दिन) सारण के जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत ने आजीवन कैद की सजा सुनाई. अदालत ने सारण पुलिस की जांच प्रक्रिया, जांच प्रक्रिया में अपनाई गयी वैज्ञानिक विधि की सराहना भी की और इससे निकले तथ्यों को सही भी पाया. यह भी माना जा रहा है और खुद सारण एसपी ने भी यह कहा कि नए कानून बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) के तहत, ऐसे गंभीर क्राइम में यह पहली सजा दी गयी है. जाहिर है, यह बिहार के लिए, बिहार पुलिस के लिए न सिर्फ गर्व की बात है, बल्कि यह एक ऐसे मॉडल के रूप में भी उभर कर सामने आया है, जिसे सबसे पहले बिहार भर में लागू किए जाने की जरूरत है. क्योंकि, ऐसे केसों में त्वरित न्याय आने से अपराधियों और आपराधिक मानसिकता के लोगों की बीच भय व्याप्त होगा, जिससे न्याय का एक सिद्धांत “डेटरेंट थ्योरी” भी सार्थक होगा.
त्वरित न्याय और उस पर सवाल!
कई लोगों को यह आशंका हो सकती है या होती भी है, कि कहीं इतनी जल्दी में जांच, अभियोजन, सुनवाई और फैसले से अभियुक्तों के साथ गलत तो नहीं हो गया. इस बारे में पटना उच्च न्यायालय के अधिक्वाक्ता कुमार अमित कुमार बताते हैं कि ऐसी आशंका निर्मूल और बिलकुल गलत है. उनका कहना है कि अदालत कोई भी फैसला हवा में नहीं देते. सारण पुलिस ने निश्चित ही साइंटिफिक जांच के आधार पर ठोस सबूत पेश किए होंगे, सारण पुलिस ने प्रोसीक्यूशन के साथ मिल कर बेहतर तरीके से काम किया होगा और खुद पुलिस अधीक्षक ने केस में पर्सनली इन्वोल्व होते हुए समय पर सारे सबूत और गवाही कराए होंगे. बचाव पक्ष ने भी अपनी दलीलें रखी होंगी. इस सब के बाद ही अदालत ने फैसला सुनाया है, तो फिर इस पर किसी भी शक की गुंजाइश नहीं रह जाती.
सारण बन सकता है मॉडल
फिलवक्त, तो बिहार को ही चाहिए और यहां नियुक्त नए डीजीपी आलोक राज को भी चाहिए कि वह सारण पुलिस के इस साइंटिफिक और एफएसएल बेस्ड इन्वेस्टीगेशन मॉडल को पूरे बिहार में सख्ती से लागू कराएं. न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश में जांच के स्तर पर ही केस की पेंडेंसी बहुत अधिक है. सिर्फ बिहार में ही इस वक्त 86 हजार से अधिक नॉन-बेलेबल वारंट पेंडिंग है. ऐसे में सारण पुलिस और वहां के एसपी ने जिस तरीके से साइंटिफिक जांच की है, तुरंत गिरफ्तारी हुई त्वरित जांच और आरोप पत्र दाखिल हुए, उससे एक नया मॉडल उभरता है.
यहां याद दिलाना ठीक होगा कि नीतीश कुमार सरकार जब पहली बार सीएम बने थे, तो स्पीडी ट्रायल के तहत 50 हजार से अधिक अपराधियों को जेल भेजा गया था. फिर इसमें धीरे-धीरे कमी आ गयी थी. एक बार फिर सारण पुलिस की इस सक्रियता ने आम लोगों का जहां न्यायालय और पुलिस के प्रति भरोसा बढाया है, वहीं यह अपराधियों के मनोबल को तोड़ने का काम करेगा. तो क्या बिहार और देश ऐसे गंभीर मामलों में सारण मॉडल को लागू करेगा. क्या ऐसा कर के निर्भया या पश्चिम बंगाल जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है. निश्चित ही, लेकिन इसके लिए सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति ही नहीं, बल्कि सारण पुलिस जैसी तत्परता और समर्पण की भी जरूरत होगी.
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