Opinion: महुआ मोइत्रा की सदस्यता रद्द करने से लेकर संसद सुरक्षा में सेंधमारी तक... सरकार की मंशा पर सवाल
संसद की सुरक्षा में सरकार की नाकाम से लेकर पिछले दिनों जिस तरह महुआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म की गई, इसको लेकर सरकार के एक्शन सवालों के घेरे में है. दरअसल, ये ऐसी कानून की व्यवस्था है कि जिस व्यक्ति पर आरोप लगाया जाता है, उसे अपनी बातों को रखने के लिए पूरा मौका दिया जाता है. लेकिन, महुआ वाले मामले में बिना सबूतों के किसी आदमी ने कोई आरोप लगाए. जब आरोप लगाए जाते हैं तो आरोप के बाद आपको सिद्ध करना पड़ता है, जो भी आपने आरोप लगाए हैं, वे बिल्कुल सही हैं और उसके प्रमाण देना होता है.
लेकिन इस मामले में किसी ने आरोप लगाए और संसदीय समिति ने देख लिए और उनके ऊपर अपना फैसला भी सुना दिया. इसके साथ ही, महुआ मोइत्रा को अपनी बातों को रखने का पूरा अवसर नहीं दिया गया या फिर जिसने भी आरोप लगाए थे, उसे क्रॉस एग्जामिनेशन करने का, जो न्यायिक प्रक्रिया है. यानी, एकतरफा तानाशाही के रुप में निलंबित कर दिया गया.
नहीं दिया गया पक्ष रखने का मौका
ये तो देश का कानून ही है कि जब आपके ऊपर आरोप लगता है तो जवाब का मौका दिया जाता है. यहां तो जो भी मनगढ़ंत आरोप लगे थे, उस पर न कोई प्रमाण दिया गया, बस बोल दिया गया. उदाहरण के लिए यदि मैं ये कह दूं कि आपने मुझसे 2 करोड़ रुपये लिए हैं, तो फिर क्या इस पर आपको निलंबित कर दिया जाएगा या फिर मुझे वो प्रमाण देने पड़ेंगे कि मैंने आपको 2 करोड़ रुपये दिए हैं. कहां दिए, कब दिए और कैसे मिला, क्या हुआ? या मैं सिर्फ ये बात कह दूं और आपको जेल में डाल दिया जाएगा. ये तो उचित नहीं है ना.
सुरक्षा में सेंध पर सरकार नाकाम
हमारी आंखों के सामने संसद में साल 2001 में आतंकियों ने हमला किया था. उसके बाद सुरक्षा और पुख्ता की गई थी. सुरक्षा पुख्ता करना एक निरंतर काम है और इसमें बदलाव आते रहते हैं. नई-नई चीजें आती रहती है. लेकिन, हमें इस बार ये मालूम था कि खालिस्तानी आतंकी संगठन पन्नू ने भी धमकी दी थी कि 13 दिसंबर को कुछ करेंगे.
इसको लेकर सतर्कता रहनी चाहिए थी. लेकिन वो लोग जो रंगीन बम लेकर आ गए थे, अगर वही सचमुच में बम होता और 2-4 सांसद हताहत हो जाते तो उसके बाद क्या होता? आज इसके ऊपर ये कहना तो बड़ा आसान है कि राजनीति न करें, लेकिन हम राजनीति में क्यों हैं, संसद में क्या है... ये राजनीतिक स्थल है और वहां पर जब कभी भी सुरक्षा में सेंध लगती है तो ये स्वभाविक है कि लोग पूछेंगे.
चार सौ तैतालिस सांसद संसद भवन में बैठे हों और इस प्रकार एक बेखौफ आदमी बम लेकर आ जाता है, यदि वहीं रंगीन बम की जगह अगर हैंड ग्रेनेड होता या सचमुच बम होता और मर जाते तो क्या होता. जिस व्यक्ति ने पास दिया, वह भारतीय जनता पार्टी का सांसद है. हम जब भी किसी को पास देते थे तो उसके ऊपर हमें अंडरटेकिंग देनी पड़ती थी.
संसद पास की लेनी होती है अंडर टेकिंग
अंडरटेकिंग में ये लिखा होता था कि मैं फलां व्यक्ति के लिए पास मांग रहा हूं. इस व्यक्ति को इतने सालों से जानता हूं और इसका चरित्र अच्छा है और इसकी पार्लियामेंट में किसी भी तरह की हरकत के लिए मैं जिम्मेदार रहूंगा.
अगर आप लोकसभा की रूल्स एंड प्रोसीजर देखेंगे तो उसके अंदर 386, 387 और 387ए में उसका बहुत ही विस्तार से उल्लेख है कि जब आप किसी संसद का पास बनाते हैं तो आपके ऊपर क्या-क्या हो सकता है. अंतर्गत उन जिम्मेवार सांसदों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई है? क्यों नहीं पार्लियामेंट से निकाला गया है.
यदि एक पासवर्ड के लिए महुआ मोइत्रा को निकाला जा सकता है तो इन्होंने पास जिस व्यक्ति को दिया, संसद के अंदर ये घुसे कैसे? घुसाया किसने? ये तो पहले आप बताइये ना. किस व्यक्ति से ताड़ जुड़े थे या नहीं जुड़े थे ये तो आगे की बात है. इसकी जड़ में तो जो था उसे सरकार पकड़ नहीं पा रही है.
इस घटना ने न सिर्फ संसद की सुरक्षा-व्यवस्था बल्कि सरकार की पोल खोलकर रख दी है. जो संसद की सुरक्षा नहीं कर सकते, जो सांसद देश के लिए कानून बनाते हैं, राज्यसभा में 280 सदस्य और लोकसभा में कुल 543 सदस्य हैं, अगर ये इन आठ सौ, नौ सो लोगों की संसद में सुरक्षा नहीं कर सकते, एक ऐसी जगह में जहां पर दिल्ली पुलिस है, उसके बाद सीआरपीएफ है, पार्लियामेंट के वॉच एंड वॉर वाले लोग हैं, जब सरकार इनकी सुरक्षा नहीं कर सकती तो फिर देश कैसे सुरक्षित होगा?
रोज हमारे देश में कश्मीर से घुसपैठ हो रही है. सीमा पर हमारे ऑफिसर और जवान शहीद हो रहे हैं. लेकिन आप ही बताइये कि आखिर सरकार पर हम कैसे भरोसा करें.
इससे पहले जिन 14 सांसदों का निलंबन किया गया, उनमें से एक तो दिल्ली में ही नहीं था. लेकिन, जब इनसे बात नहीं बनी तो उन्होंने कहा कि ये उस दिन का नहीं है. यानी जो सांसद पार्लियामेंट तो छोड़िए, दिल्ली में ही नहीं है, उनका नाम उसमें आ जाता है. उसके बाद बातों को पलट रहे हैं. ये सिर्फ तानाशाही है और इसके अलावा और कुछ नहीं है.
सांसदों का अधिकार विपक्ष में होता है कि हम सरकार से जवाब मांगें और सरकार को उसका जवाब भी देना चाहिए. मुझे याद है कि 2001में संसद पर अटैक हुआ था तो 2 दिन के अंदर डिबेट हुई थी, उसमें प्रधानमंत्री ने जवाब दिया था. उसे डिबेट को गृह मंत्री ने खोला और खत्म किया था. लेकिन प्रधानमंत्री ने बीच में उसका जवाब दिया था. आज ये सरकार इन सभी चीजों से भागती रहती है.
देश में आज जिस प्रकार हम टेलीविजन और अखबार देख रहे हैं, ऐसे लगता है जैसे मानो अपना देश अमेरिका बन गया हो. लेकिन, जो परिस्थिति दिखनी चाहिए वो नहीं दिखाई जाती है. विपक्ष के राज्यों में अगर कोई घटना होती है तो उसे बढ़ाचढ़ा कर ऐसे दिखाया जाता है कि क्या बताया जाए. जैसे कर्नाटक के बलगावी में हुआ, विपक्ष की सरकार थी तो उसे खूब बढ़ाचढ़ कर दिखाया गया. लेकिन, एक लड़का जो एबीवीपी का सदस्य है, उसने एक लड़की को कुचल दिया और उसके ऊपर कुछ भी खबर सामने नहीं आयी.
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