(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
यूपी और बिहार की 120 सीटों पर ही इंडिया गठबंधन का ढीला है कस-बल, नीतीश और अखिलेश को नहीं साध पा रही कांग्रेस
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हुए, दिसंबर के शुरुआती सप्ताह मेे नतीजे भी आ गए. नतीजों में कांग्रेस की विराट हार हुई और उसके कस-बल ढीले पड़े. उसके बाद ही विपक्षी गठबंधन की चर्चा फिर से केंद्र में आयी. नतीजों वाले दिन यानी 3 दिसंबर को ही कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इंडिया गठबंधन के साथियों की बैठक आहूत की, लेकिन उसमें अखिलेश यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और स्टालिन के नहीं आने से बात ही नहीं बनी. वह बैठक टल कर 19 दिसंबर को हुई, लेकिन उसके बाद नीतीश कुमार के गुस्सा होने और अखिलेश के आहत होने की खबरें गर्म हैं. सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जहाँ से लोकसभा की लगभग एक तिहाई सीटें आती हैं, उन 120 सीटों पर इंडिया गठबंधन की रणनीति कुछ है भी या नहीं और अगर है तो वह क्या है? नीतीश की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह भी एक ऐसा सवाल है, जो राजनीतिक गलियारों में जोर पकड़ रहा है.
नीतीश हैं सबके
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कब क्या फैसला लेंगे और कब किधर पलटी मार जाएंगे, यह ठीक से उनके अलावा शायद उनके बहुत नजदीकी लोग भी नहीं जानते. फिलहाल, उनके साथ चल रहे लालू प्रसाद ने ही कभी उनके बारे में कहा था कि नीतीश के पेट में दाँत हैं. इस कहावत को डीकोड करें तो अर्थ यही होगा कि नीतीश के अलावा उनकी रणनीति और कोई नहीं जानता है. 19 दिसंबर की विपक्षी गठबंधन की बैठक से भी उनके गुस्से में आने की खबर गर्म है. बैठक के दौरान डीएमके के नेता ने जब उनके भाषण का अंग्रेजी अनुवाद मांगा था, तो भी नीतीश बिगड़ गए थे. उन्होंने जो प्रतिक्रिया दी थी, उसका अर्थ यही था कि गठबंधन को अपने अंग्रेजीदां होने से बाहर आना पड़ेगा, वरना आगे की राह मुश्किल होगी.
वहां तो मनोज झा और ललन सिंह ने बड़ी मुश्किल से बात बनायी, लेकिन नीतीश अपना नाम प्रधानमंत्री या समन्वयक के तौर पर नहीं देखकर जाहिर तौर पर निराश हुए ही थे. आखिर, पिछले एक साल से वह घूम-घूमकर भाजपा के खिलाफ माहौल बना रहे थे. उनके ही प्रयासों से गठबंधन बना और जब पीएम कैंडिडेट का नाम घोषित हुआ तो ममता बनर्जी ने खड़गे का नाम आगे कर दिया. नीतीश बैठक से उठ कर न केवल बिहार वापस आ गए, बल्कि 29 दिसंबर को जेडीयू की कार्यकारिणी की बैठक भी आहूत कर दी, जिसमें वे क्या करने वाले हैं, किसी को नहीं पता. हालांकि, ललन सिंह ने बाद में रफू करने की कोशिश की, लेकिन बिहार में यह चर्चा जोरों पर है कि नीतीश तो खुद ललन सिंह से ही नाराज चल रहे हैं, क्योंकि वह लालू-तेजस्वी के अधिक करीब हो गए हैं.
तेजस्वी को है मुख्यमंत्री बनना
बिहार की राजनीति दरअसल कुछ दिनों से फंसी हुई सी है- राजद और जेडीयू के बीच. लालू के करीबी सूत्रों का कहना है कि नीतीश जब पलटी मार कर राजद के फोल्ड में आए थे, तो समझौता यही हुआ था कि नीतीश केंद्र की राजनीति में चले जाएंगे और तेजस्वी को गद्दी सौंप देंगे. कई बार नीतीश ने इसके संकेत भी दिए, जब उन्होंने अहम प्रश्नों पर तेजस्वी को आगे कर दिया. हालांकि, जब इंडिया गठबंधन में उनके नाम की घोषणा नहीं हुई तो वह अब मुख्यमंत्री पद पर ही जम गए हैं. इससे लालू को घबराहट हो रही है, क्योंकि अपने खराब स्वास्थ्य और ईडी के बार-बार आते समन को देखते हुए वह इस फिराक में हैं कि नीतीश अब तेजस्वी के लिए गद्दी छोड़ दें.
इस बीच में सबसे बड़ी बाधा उनकी कांग्रेस के साथ जुगलबंदी है, जिसके युवराज को दुल्हा और पीएम बनाने के वादे का धर्मसंकट उनके सामने है. कांग्रेस का सबसे भरोसेमंद साथी आरजेडी रहा है, सोनिया के साथ लालू की जुगलबंदी भी बहुत अच्छी है, इसमें कोई कहने की बात नहीं, इसलिए लालू ने नीतीश के गुस्सा होने पर भी 19 दिसंबर की बैठक के बाद सब कुछ चंगा है, का भरोसा ही सबको दिया.
राहुल का डैमेज कंट्रोल, लेकिन सब ठीक नहीं
कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी ने भले ही नीतीश कुमार से फोन पर बात कर और शरद पवार से मुलाकात कर डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की हो, लेकिन कांग्रेस का घमंड गठबंधन के आड़े आ रहा है, यह उनको भी पता है. कांग्रेस अगर घमंड छोड़ भी दे, तो उसका अपना हित और स्वार्थ ही गठबंधन के साथ मेल नहीं खा रहा. जैसे, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय फिलहाल यूपी जोड़ो यात्रा पर हैं. ये पूरी यात्रा यूपी के उन्हीं जिलों से होकर गुजरेगी, जो मुस्लिम बहुत हैं. ये कोई रहस्य नहीं कि हालिया पाँच राज्यों के चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि कांग्रेस की तरफ मुसलमान वोट लौट रहा है और वह क्षेत्रीय दलों को नकार रहा है. तेलंगाना में बीआरएस की बुरी हार हो या कर्नाटक में जेडी (एस) की दुर्गति, इसके पीछे अगर समीकरण और गणित देखें तो यही पता चलेगा कि मुस्लिम वोट कांग्रेस की ओर लौट रहा है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी मुसलमान सपा-बसपा-रालोद को छोड़ कांग्रेस की तरफ लौटने लगी है और इसका आभास कांग्रेस को भी है, सपा को भी. अखिलेश ने भले ही बहाना फिलहाल बसपा के गठबंधन में शामिल होने को बनाया है, लेकिन वह कांग्रेस से भी उतने ही सावधान हैं, इसलिए बार-बार कहते हैं कि यूपी में सीटों का बंटवारा तो वही करेंगे. गठबंधन की सबसे बड़ी फांस भी यहीं है. एक तरफ तो कांग्रेस को अपना नेतृत्व भी बचाए रखना है, दूसरी तरफ भाजपा को मात देने के लिए क्षेत्रीय दलों से भी बनाए रखना है. दांव पर लोकसभा की फिलहाल तो 120 सीटें लगी हुई हैं और दो बड़े राज्य भी. अगर इंडिया गठबंधन ने यह फांस नहीं सुलझाई तो गठबंधन का असमय ही फंस जाना तय ही समझना चाहिए.
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