हिंदी पट्टी के तीन महत्वपूर्ण राज्यों में कांग्रेस को हार मिली है. इंडिया गठबंधन का अभी तक न तो संयोजक तय हुआ है, न ही प्रधानमंत्री पद के चेहरे पर कोई बात हुई है. सीटों का बंटवारा भी अभी तक नहीं हुआ है. हालांकि, कांग्रेस और कई दलों के नेता कह रहे हैं कि गठबंधन में सब कुछ ठीकठाक है और समय आने पर पीएम पद के लिए चेहरे का भी चयन कर लिया जाएगा. फिलहाल, कांग्रेस के पास चुनौती लोकतंत्र और संविधान बचाने की है. इसी माहौल में राहुल गांधी एक बार फिर भारत जोड़ो न्याय यात्रा पर निकल पड़े हैं और उससे कांग्रेस को उम्मीद है कि बहुत कुछ बदल जाएगा. 


रामलला तो सबके हैं


कांग्रेस बिल्कुल तैयार है. ठीक है कि तीन राज्यों में हमारी अपेक्षा के मुताबिक परिणाम नहीं निकले हैं, लेकिन हमारा वोट प्रतिशत वही है जो 2018 के चुनाव में था, जब हम जीते थे. भाजपा का वोट बढ़ा और इस वजह से हम चुनाव हारे. पांच राज्यों के चुनाव में अगर कुल संख्या देखें तो वोटों के मामले में हमें 10 लाख वोट ज्यादा मिले हैं, लेकिन सीट अधिक नहीं मिल सकी. कार्यकर्ताओं में निराशा नहीं है. वह समझ रहे हैं कि जो देश का माहौल 2014 के बाद बनाया गया है, जो धार्मिक उन्माद पैदा करने का काम किया गया है, उसमें किसी भी पार्टी के लिए मुश्किल होता है कि वह धार्मिक उन्माद से कैसे निबटे, उसका असर लंबे समय तक लोगों पर रहता है. जब लोगों को लगता है कि उनकी प्राचीन सभ्यता या धर्म पर खतरा है, तो उनको ठीक नहीं लगता है.


यह बात सही नहीं है लेकिन भाजपा का पूरा एजेंडा यही है. जहां तक धर्म या आस्था का सवाल है, तो यह व्यक्ति विशेष का मामला है. यह उस पर निर्भर करता है, उसका निजी मामला है. इसमें पार्टी की संलिप्तता नहीं है. इसलिए, जो रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के आमंत्रण का सवाल है, तो उस पर पार्टी थोड़े न फैसला लेगी, वह व्यक्ति लेगा. हो सकता है, वह बाद में जाए या उसी समय जाए. उसके लिए आमंत्रण हो या न हो, मायने नहीं रखता. राम में जिसकी आस्था होगी, वह जाएगा. दुख की बात है कि भाजपा इस तरह से दिखा रही है कि यह कार्यक्रम उसका है. ऐसा है नहीं. राम मंदिर जो बना, वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बना, भाजपा की वजह से नहीं. कांग्रेस का स्टैंड शुरू से यही है. 



कांग्रेस को परहेज नहीं


राम तो रोम-रोम में हैं. हमारी प्राचीन सभ्यता बताती है कि राम सबके हैं. हम पुरुषोत्तम राम को मानने वाले हैं. आज भाजपा जो तस्वीर दिखा रही है राम की, वह असली राम नहीं हैं. हम तो रामराज की बात करते हैं. रामराज्य का मतलब क्या है, यही न कि सभी लोग मिलकर रहें. भाजपा का शुरू से ठीक यही प्रयास था कि इसे राजनीतिक मसला बनाएं, इसीलिए जान-बूझकर चुनाव से ठीक पहले रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा करने को कहा. हमारी रणनीति यह है कि चुनाव देश के असली मुद्दों पर लड़ा जाए. महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार हमारा असली मुद्दा है. जिस तरह लगातार लोकतंत्र पर और संविधान पर जो मोदी सरकार द्वारा हमले हो रहे हैं, जिस तरह संवैधानिक संस्थाओं चाहे ईडी हो, सीबीआई हो, उसका जो दुरुपयोग हो रहा है, उसका हम विरोध करेंगे. ये भाजपा की तरफ से षडयंत्र है. वे जहां चुनाव नहीं जीत पाते हैं, आप देखेंगे कि अब तक जिन लोगों को ईडी की नोटिस गयी है, लगभग 121 लोगों को दी गयी है, उनमें 115 लोग विपक्ष के हैं. तो, जहां वे जीत नहीं पाते हैं, वहां की सरकार को अस्थिर करने की चेष्टा है, दबाव बनाने की बात है. कल तक जो नेता भाजपा के लिए भ्रष्ट थे, वे भाजपा में जाते ही नेकदामन हो जाते हैं. भाजपा का यह षडयंत्र जो विपक्ष के खिलाफ चल रहा है, वह गलत है. 


भाजपा और मोदी का हर संस्थान पर दबाव


वजह कई हैं. वजह ये है कि सभी चीजों पर मोदी जी और भाजपा ने कब्जा कर रखा है. यहां तक कि मीडिया भी दबाव में है. किसी मीडिया की हिम्मत नहीं है कि वह मोदीजी से या भाजपा से बात करे. यह दुनिया में पहली बार है कि हमारे प्रधानमंत्री ने इतने वर्षों में कोई प्रेस-कांफ्रेंस नहीं की है. यानी, मीडिया का कोई सम्मान नहीं है. लोकतंत्र में मीडया की बड़ी भूमिका होती है. विपक्ष माहौल इसलिए नहीं बना पा रहा है कि 2014 के पहले मीडिया सरकार के विरुद्ध, प्रधानमंत्री के विरुद्ध खुलकर लिखते थे, आज 90 फीसदी मीडिया दबाव में है. जब विपक्ष का एजेंडा लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है, तो भला विपक्ष ताकतवर कैसे बनेगा? जहां तक केजरीवाल का सवाल है, तो मोदीजी किसी हद तक जा सकते हैं. आपने देखा है कि कई राज्यों में भाजपा के खिलाफ जनादेश आया, लेकिन भाजपा ने या तो धमका कर या खरीद कर वहां सरकार बना ली. तो, भाजपा का यह सिद्धांत है कि बल से हो, धार्मिक उन्माद से हो या छल से हो, उनको सत्ता चाहिए. 


राहुल की न्याय यात्रा


राहुल गांधी की न्याय यात्रा का मतलब ये है कि हर वर्ग को न्याय मिले. किसान को, मजदूर को, आम आदमी को न्याय मिले. जिन भी राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, हम देख रहे हैं कि सरकारें कैसे चल रही हैं. वहां बिल्कुल तानाशाही का मामला है. वहां कोई संविधान, कोई कानून नहीं बचा है. हमें खतरा है कि 2024 में अगर तीसरी बार भाजपा सत्ता में आयी तो जो भी बचा-खुचा है, वह भी चला जाएगा. संविधान की अवहेलना तो लगातार हो ही रही है. गांधी-नेहरू जैसे जो हमारे पूर्वज नेता थे, उन सबके खिलाफ पूरे देश में एक माहौल खड़ा किया जा रहा है. अपने ही देशभक्तों को, स्वतंत्रता सेनानियों की छवि धूमिल की जा रही है. इसकी आगे चल कर देश को कीमत चुकानी होगी. 


पीएम फेस नहीं महत्वपूर्ण


जहां तक पीएम फेस का सवाल है, तो इंडिया अलायंस की पहली बैठक में ही यह बात साफ हो गयी थी. लोकतंत्र में सबसे पहले तो बहुमत लाना चाहिए. 2014 और 2019 में हम इसलिए हारे क्योंकि हम बंटे थे. इस बार पहली बार पूरा विपक्ष एक साथ है. 2019 में भाजपा को केवल 37 फीसदी वोट मिले थे, यानी 63 फीसदी वोट उनके खिलाफ थे. हम उस 63 फीसदी वोट को एक साथ लाने की कोशिश ला रहे हैं. चेहरे की बात कीजिए तो इस देश में विपक्ष के पास कई बार चेहरा नहीं रहा है. 1977 में भी विपक्ष के पास चेहरा नहीं था, 2004 से 2014 तक भी चेहरा नहीं था. चेहरे से बहुत फर्क नहीं पड़ता है. लोगों को जब यह महसूस हो जाएगा कि हमें इस सरकार को हटाना है तो वो हमें वोट करेंगे. फिर, जब मत आ जाएंगे तो चेहरा भी चुन लिया जाएगा. फिलहाल, तो चुनौती लोकतंत्र को बचाने की है. 




[नोट- यह आलेख तारिक अनवर के विस्तृत साक्षात्कार के चुनिंदा अंशों से तैयार किया गया है]