“वसुधैव कुटुम्बकम्” यह वाक्य लोकतंत्र के मंदिर, भारतीय संसद के सेंट्रल हॉल के मुख्य द्वार पर लिखा हुआ है और यह सनातन धर्म से लिया गया है. इसका अर्थ है, ये पृथ्वी ही अपना परिवार है, और यह भारतीय लोकतंत्र का मूल आधार है.
वैक्सीन मैत्री, भारत द्वारा पड़ोसी देशों को COVID-19 टीके देने की पहल है. बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, म्यांमार, अफ़ग़ानिस्तान, बहरीन और कई अन्य राष्ट्रों ने भारत से वैक्सीन प्राप्त करते ही अपनी जनता में टीकाकरण प्रारम्भ की. पिछले कुछ वर्षो में, NRC, CAA और रोहिंग्या शरणार्थी को लेकर कुछ राजनीतिक दलों ने इसे अपना चुनावी मुद्दा भी बनाया है. आज लगता है कि वे सभी मुद्दे चुनाव के वोट बैंक की राजनीति तक ही सीमित थे. पडोसी मुल्क या रोहिंग्या शरणार्थी हो, उनके साथ कोरोना त्रासदी से उत्पन्न संकटों का हर किसी ने दरकिनार किया है. आज वे राजनीतिक पार्टियां जिनका चुनावी मुद्दा रोहिंग्या शरणार्थी को नागरिकता दिलाने का होता था, वो आज पड़ोसी मुल्कों को वैक्सीन देने से भी इंकार कर रहे हैं. इससे इन राजनीतिक पार्टियों के मंसूबों का पता चलता है.
दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र के प्रति टीकाकरण की प्रतिबद्धता में भारत, चीन से बहुत आगे था. यहां की वैक्सीन की गुणवत्ता और उत्पादन को लेकर पूरी दुनिया संतुष्ट थी. हर पड़ोसी मुल्क आपस में किसी न किसी प्रकार से जुड़े हुए हैं और हर देश की एक दूसरे के प्रति कुछ जिम्मेदारियां भी हैं. भारत वैक्सीन उत्पादन में बहुत आगे था, और सप्लाई भी सुचारू रूप से चल रही थी. भारत ने कनाडा, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, मिस्र, ओमान, सीरिया, इत्यादि, कुल मिलकर 95 राष्ट्र को भारत ने वैक्सीन की आपूर्ति की.
अमेरिका, इटली और अन्य कई देश कोरोना त्रासदी की पहली लहर में जब उलझे हुए थे और महामारी का वैश्विक केंद्र बने हुए थे – उस वक्त भारत ने मास्क, चिकित्सा के उपकरण और कई प्रकार की जरूरी दवाइयां भी उपलब्ध की, उसी दौरान भारत खुद भी वायरस से लड़ने की कोशिश कर रहा था.
कोरोना की पहली लहर ने भारत में दूसरे देशों की तुलना में ज्यादा तबाही नहीं मचाई, हालांकि उस वक्त भारत में मजदूरों के पलायन से बहुत बड़ा संकट उत्पन्न हुआ था. COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न अप्रत्याशित चुनौतियों से निपटने के लिए दुनिया भर के सारे देश इससे निपटने में एकजुट थे. ऐसा लगता है बारी-बारी से हर एक देश में इसकी लहर आती है और पूरे तंत्र को झकझोर देती है. मार्च 2021 तक ऐसा लगा की भारत में त्रासदी थम गई है, जीवन फिर से पटरी पर धीरे-धीरे आ रही है.
यहां भारत ने अपने देश में भी टीकाकरण की शुरुआत की, आपूर्ति और मांग में किसी भी प्रकार की कठिनाई नहीं थी. लेकिन कई राजनीतिक कारणों से भारत निर्मित वैक्सीन के प्रति लोगों में अविश्वास फैल गया, इसके फलस्वरूप यहां टीकाकरण की गति धीमी हो गयी. लोगों में अविश्वास के कारण, कई राज्यों में लाखों टीके बर्बाद भी हुए.
जब हमें लगने लगा की हमने कोरोना को मात दे दी है, अचानक से अप्रैल महीने के मध्य में कोरोना की दूसरी लहर ने तबाही मचाना शुरू कर दिया. चारों तरफ चीख, पुकार और मायूसी छा गयी. भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था पहले से ही चरमराई हुई है. श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में अस्थियां की लम्बी कतारें लगने लगी, चारों ओर अंधकार छा गया. ऐसी प्रचंड कोरोना की लहर जो कि थमने का नाम नहीं ले रही है. आज दुनिया के कई मुल्क इस बुरे वक़्त में हमारे साथ खड़े हैं. कई देशों से दवाइयां, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, और कई अन्य जरुरी उपकरण मुहैया हो रहीं हैं.
भारत में चल रही दूसरी लहर ने अनिश्चिता के साथ बहुत सारे सवाल भी खड़े कर दिये हैं. भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना की दूसरी लहर से संघर्ष करने में सक्षम नहीं है. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है, अगर वायरस अनियंत्रित रूप से फैलता रहा तो और भी घातक हो सकता है और ऐसे वेरिएंट में भी बदल सकता है जो वर्तमान में हो रहे वैक्सीनेशन का असर को कम कर दे और इससे किसी भी देश में अन्य प्रकार के कोरोना वेरिएंट की लहर भी आ सकती है.
वैक्सीन उत्पादन-वितरण की असमानता को लेकर कई देशों में भारी संकट उत्पन्न हो चुके हैं. COVAX (COVID-19 वैक्सीन ग्लोबल एक्सेस) का उद्देश्य है कि टीकों के उपलब्ध होते ही हर देश में इसका उचित वितरण हो, जिससे दुनिया के सभी देशों की आजीविका और अर्थव्यवस्थाओं का पुनर्निर्माण हो सके. कोरोना महामारी में, हर कोई असुरक्षित है. ऑक्सीजन, वेंटिलेटर जरूरी दवाइयों की कमी होने लगी है. इस त्रासदी में वैक्सीन ही एकमात्र विकल्प दिखा, टीका की मांग बढ़ने लगी जिसके कारण कई राजनीतिक दल टीका के अन्य देशों में देने पर सवाल भी उठा रहे हैं.
कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत के समय में अमेरिका ने वैक्सीन के कच्चे माल के निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के भारत के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया और 'अमेरिकन फर्स्ट’ का हवाला दिया. जब देश दूसरी लहर में उलझा हुआ था, उस वक़्त देश की जनता के बीच इस बात को लेकर एक अनिश्चितता का माहौल उत्पन्न हो गया.
हालांकि, अमेरिका की सरकार ने कच्चे माल के निर्यात की अनुमति कुछ ही दिनों में दे दी, साथ ही और भी आवश्यक दवाइयां, ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर और बाकी अन्य चीजें का भी आपूर्ति की. हमारी आज की स्थिति ऐसी नहीं है, कि हम किसी की मदद कर सके. इस वक्त पडोसी राष्ट्र में वैक्सीन मैत्री या COVAX में भारत द्वारा टीका की आपूर्ति पर सवाल करना उचित नहीं है, जब सारी दुनिया हमारे साथ खड़ी है और कोरोना से लड़ने में हरसंभव सहयोग दे रही है.
भारत आज कठिन परिस्थिति के दौर से गुजर रहा है. स्वास्थ्य व्यवस्था में हर प्रकार की कमियां नजर आ रहीं हैं. पीड़ित परिवार मदद मांगने के लिए एक दूसरे पर आश्रित हैं, अंतिम संस्कार के लिए मुट्ठी भर परिजन भी मौजूद नहीं होते है., कुछ परिवार अपनों को अंतिम विदाई भी नहीं दे पा रहे हैं. किसी अन्य राष्ट्र की त्रासदी के वक़्त, भारत का मदद करना, उस वक़्त सभी राष्ट्रों के लिए प्रेरणादायक था और आज वे सभी राष्ट्र हमें कोरोना की दूसरी लहर से निकलने के लिए अपने देशों में अभियान चला रहें है, हरसंभव मदद कर रहें हैं.
भारत के संसद के मुख्य द्वार पर लिखी ये दो पंक्तियाँ, जो पूरे विश्व को अपना परिवार मानता है, और यह भारत तथा हर भारतीय की आत्मा का प्रतीक है.
अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम् ।
उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम् ।।
त्रासदी कब तक चलेगी, इसकी कितनी लहरें आएँगी? महामारी खत्म होने के बाद लोगों का जीवन कैसा होगा? इन सभी सवालों का उत्तर ढूंढने के लिए सभी देशों को एक साथ- एकजुट होकर काम करना होगा. इस त्रासदी का भी अंत निश्चित है. लकिन जब-जब यह त्रासदी इतिहास के पन्नों से बाहर आएगी, तब-तब हमारे इस वक़्त किये गए आचरण पर भी सवाल उठेंगे. आज कोरोना महामारी में हर एक असुरक्षित है, जब तक हर एक सुरक्षित न हो.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)