भारत-कनाडा के बीच का तनाव अब सिर्फ़ दो देशों का मसला नहीं रह गया है. इस पर अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम से लेकर तमाम पश्चिमी देशों की ओर से लगातार प्रतिक्रिया आ रही है, उससे एक बात तय है कि भविष्य में अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर इसका व्यापक असर पड़ने वाला है. इस मामले से जुड़े हर पहलू को अगर समझें, तो पता लगेगा कि पूरा प्रकरण जितना सपाट दिखता है, उतना है नहीं.


जी 20 समिट के बाद भारत की हो रही थी तारीफ़


भारत में 9 और 10 सितंबर को जी 20 का सालाना शिखर सम्मेलन होता है. भारत ने जिस भव्यता और कुशलता के साथ इसका आयोजन किया, पूरी दुनिया में उसकी चर्चा होती है. इसके साथ ही जी 20 में जिस तरह से अफ्रीकन यूनियन को जी 20 का सदस्य बनाए जाने के भारत के प्रस्ताव पर सहमति बनती है, उसकी भी चर्चा पूरी दुनिया में हो रही थी. सम्मेलन के पहले ही दिन दिल्ली घोषणापत्र पर सहमति बनती है. यह अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की बढ़ती ताक़त और भारतीय कूटनीति की धमक है, जो अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बटोर रही होती हैं.


जस्टिन ट्रूडो की टाइमिंग पर सवाल


इस बीच कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत से अपने वतन वापस लौटते हैं. फिर अचानक 18 सितंबर को कनाडा की संसद में वे खालिस्तानी अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत के ऊपर एक आरोप लगा देते हैं. इससे द्विपक्षीय संबंधों में तो भूचाल आ ही जाता है, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भी खलबली मच जाती है. यह मामला सिर्फ़ द्विपक्षीय कूटनीति तक ही सीमित नहीं लग रहा है. इस प्रकरण से कई आयाम और तार जुड़े नज़र आ रहे हैं.



द्विपक्षीय से अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश


कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो सबसे पहले 18 सितंबर को अपने देश की संसद में कहते हैं कि खालिस्तानी अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या और भारत सरकार के एजेंट के बीच 'संभवत: कोई संबंध' है. यही से तात्कालिक तनाव पैदा होता है, जो लगातार बढ़ते जाता है. पहले कनाडा से एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक को निष्कासित कर दिया जाता है. उसके बाद भारत की ओर से भी कनाडा के एक राजनयिक को निष्कासित कर जवाबी कार्रवाई की जाती है.


कनाडा में खालिस्तान समर्थक तत्वों की बढ़ती गतिविधियों के कारण पिछले कुछ महीनों से दोनों देशों के बीच संबंध तनावपूर्ण हो रहे थे. ट्रूडो के आरोपों को पूरे मामले को द्विपक्षीय से अंतरराष्ट्रीय बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए.


कनाडा के आरोप निहित स्वार्थों से प्रेरित


जस्टिन ट्रूडो के आरोपों को भारत की ओर से तत्काल ही बेबुनियाद बताकर सिरे से ख़ारिज कर दिया जाता है. भारत जस्टिन ट्रूडो के आरोपों को बेतुका और निहित स्वार्थों से प्रेरित क़रार देता है. भारत ने कनाडा के इन आरोपों पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए पूरे प्रकरण को खालिस्तानी आतंकवादियों और चरमपंथियों से ध्यान हटाने की कोशिश बताया है, भारत का कहना है कि इन खालिस्तानी आतंकवादियों और चरमपंथियों को कनाडा में आश्रय दिया गया है, जो भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए खतरा बने हुए हैं.


अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया है चौंकाने वाली


इस विवाद में तेज़ गति से अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम के साथ ही कई और यूरोपीय देश, चीन, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों की प्रतिक्रिया आने लगती है. अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की ओर से इतनी त्वरित प्रतिक्रिया कूटनीतिक नज़रिया से बहुत कुछ सोचने को मजबूर करती है. द्विपक्षीय संबंधों को छोड़ दें, तो जी 20 समिट का सफल आयोजन, भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताक़त, मुक्त व्यापार समझौते से जुड़े आर्थिक पहलू से जुड़े नज़रिया पूरे मामले को समझते हैं.



हरदीप सिंह निज्जर की हत्या 18 जून को


इस साल 18 जून को कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत के सरे में एक गुरुद्वारे के बाहर खालिस्तानी अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है.  हरदीप सिंह निज्जर कनाडाई नागरिक था. भारत के लिए वो आतंकवादी था.


भारत निज्जर को जुलाई 2020 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत 'आतंकवादी' घोषित किया था. एनआईए ने सितंबर 2020 में भारत में निज्जर की संपत्ति कुर्क भी की थी.इतना ही नहीं इंटरपोल 2016 में ही निज्जर के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया था.


ख़ुद कनाडा में सरे की स्थानीय पुलिस ने निज्जर को आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने संदेह में 2018 में अस्थायी रूप से नजरबंद किया था. हालांकि बाद में उसे रिहा कर दिया गया था. हरदीप सिंह निज्जर प्रतिबंधित खालिस्तान टाइगर फोर्स का प्रमुख  था और भारत के सर्वाधिक वांछित आतंकवादी में उसका नाम शामिल था.


जी 20 समिट के तुरंत बाद घटना को तूल


भारत से जाने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री ने जिस तरह आरोप लगाए हैं, उसमें एक गंभीर सवाल उठता है कि हरदीप सिंह निज्जर की हत्या 18 जून को होती है.  जस्टिन ट्रूडो इस घटना के ठीक 3 महीने बाद अपनी संसद में इस तरह का आरोप भारत पर लगाते हैं. अब सवाल उठता है कि इतना वक़्त क्यों लिया. वो भी ठीक उस वक़्त, जब जी 20 समिट के बाद पूरी दुनिया में भारत की तारीफ़ हो रही थी. उस हत्याकांड की जांच कनाडा की पुलिस कर रही है.


ट्रूडो की जल्दीबाज़ी से पैदा होते हैं कई सवाल


जांच के बीच ठोस नतीज़े आए भी नहीं हैं, उसके बावजूद कनाडा के प्रधानमंत्री की भारत के ऊपर आरोप लगाने की जल्दबाज़ी को इस दृष्टिकोण से भी सोचने की ज़रूरत है. मामला उठता नहीं है कि बड़े-बड़े देशों से प्रतिक्रिया की बाढ़ लग जाती है. यह सोचने को विवश करता है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में भारत की हो रही तारीफ़ और बढ़ती ताक़त से ध्यान हटाने के लिए तो इतनी जल्दबाज़ी में पूरे मामले को तो शह नहीं दिया जा रहा है.


व्यापारिक पहलू भी समझने की ज़रूरत


इस प्रकरण से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू आर्थिक परिप्रेक्ष्य से जुड़ा है. ग़ौर करने वाली बात है कि जस्टिन ट्रूडो के बयान के पहले ही दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते को लेकर जारी वार्ता को रोकने का फ़ैसला किया जाता है. भारत और कनाडा व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) के लिए वार्ता कर रहे थे. तीन महीने पहले ही दोनों देशों की ओर से उम्मीद जताई गई थी कि इस साल के अंत तक कोई क़रार हो जाएगा.


दोनों देशों के बीच जल्द मुक्त व्यापार समझौता होने से भारत और कनाडा को तो काफ़ी लाभ होने वाला था, इसमें कोई दो राय नहीं है. कनाडा और भारत के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता द्विपक्षीय व्यापार को 6.5 बिलियन डॉलर तक बढ़ा सकता है, जिससे 2035 तक कनाडा के सकल घरेलू उत्पाद में 3.8 बिलियन डॉलर से लेकर 5.9 बिलियन डॉलर का लाभ हो सकता है.


भारत-कनाडा मुक्त व्यापार से किसे नुक़सान?


भारत-कनाडा के बीच मुक्त व्यापार समझौता न हो, दुनिया की कुछ ताक़तें ऐसा ज़रूर चाहती हैं. इस संदर्भ में भी कुछ सवाल ज़रूर खड़े होते हैं. क्षेत्रफल के लिहाज़ से कनाडा दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, लेकिन उसकी आबादी 4 करोड़ से भी कम है. कनाडा की गिनती दुनिया के अमीर देशों में होती है. कनाडा की अर्थव्यवस्था सर्विस सेक्टर की वजह से काफ़ी मज़बूत है. कनाडा दुनिया के चंद ऐसे देशों में शामिल है, जो अमीर तो है, लेकिन खाने-पीने के सामानों और बाक़ी वस्तुओं के मामले में घरेलू ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आयात पर काफ़ी हद कर निर्भर करता है. भारत के साथ अगर कनाडा का मुक्त व्यापार समझौता हो जाता है, तो कनाडा में भारतीय सामानों ख़ासकर खाने-पीने की सामग्री के पहुंचने में ज्यादा आसानी होगी.


अमेरिका है सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार


फिलहाल कनाडा का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार उसका पड़ोसी देश अमेरिका है. कनाडा के व्यापार का तीन चौथाई हिस्सा अमेरिका से जुड़ा हुआ है. भारत के साथ कनाडा का द्विपक्षीय व्यापार फिलहाल 4 बिलियन डॉलर के आसपास है, वहीं अमेरिका के साथ कनाडा का व्यापार 450 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा का है. अमेरिका के बाद कनाडा का सबसे ज्यादा व्यापार चीन और यूनाइटेड किंगडम के साथ है. अगर भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता जल्द हो जाता है, तो ये कुछ देशों के लिए कनाडा के साथ द्विपक्षीय व्यापार के लिहाज़ से हानि का सबब भी बन सकता है.


भारत के ख़िलाफ़ लामबंदी में जुटे ट्रूडो


जस्टिन ट्रूडो भारत पर आरोप लगाते हैं और उसके बाद ये भी ख़बर आती है कि ट्रूडो अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों समेत कनाडा के कुछ करीबी सहयोगी देशों को पूरे मामले की जानकारी देते हैं. यह एक तरह से कनाडा की ओर से भारत को घेरने की कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिए. सबसे ज्यादा हैरानी अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया की प्रतिक्रिया से होती है. अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, और न्यूजीलैंड  'फाइव आइज’ खुफिया गठबंधन ढांचे के तहत कनाडा के सहयोगी हैं.


अमेरिका इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा है?


अमेरिका से तो लगातार बयान आ रहे हैं. ताज़ा बयान अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलीवन का है. अमेरिका बार-बार ये दोहरा रहा है कि वो कनाडा के साथ इस मसले पर लगातार संपर्क में है. अमेरिका जल्द से जल्द जांच पूरी करने पर ज़ोर दे रहा है. भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए अंतरराष्ट्रीय कानून, संप्रभुता और गैर-अहस्तक्षेप के सिद्धांतों का पालन करने के महत्व पर ज़ोर दिया था. उसी तरह से अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के रणनीतिक संचार समन्वयक जॉन किर्बी ने स्पष्ट कहा था कि अमेरिका मामले की जांच के लिए कनाडा के प्रयासों का समर्थन करता है और भारत को इसमें सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है.


उधर भारत का नाम लिए बिना ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने भी कहा कि सभी देशों को संप्रभुता और कानून के शासन का सम्मान करना चाहिए. हम  कनाडा की संसद में उठाए गए गंभीर आरोपों के बारे में अपने कनाडाई सहयोगियों के साथ लगातार संपर्क में हैं. ऑस्ट्रेलिया ने भी भारत के साथ इस मसले को उठाने की बात कही है.


जस्टिन ट्रूडो ने कनाडाई संसद में तो भारत पर आरोप लगाए हैं. उसके बाद अमेरिकी धरती पर जाकर भी उन्होंने अपनी बात दोहराई. न्यूयॉर्क में  प्रेसवार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि इस बात को मानने की विश्वसनीय वजहें हैं कि कनाडा की धरती पर एक कनाडाई नागरिक की हत्या में भारत सरकार के एजेंट शामिल थे. सवाल उठता है कि अचानक से जस्टिन ट्रूडो इतनी शिद्दत से अंतरराष्ट्रीय पटल पर इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं.


जस्टिन ट्रूडो की है राजनीतिक मजबूरी!


कनाडा, उत्तरी अमेरिका और ब्रिटेन में खालिस्तान का समर्थन करने वाले लोग बहुतायत में हैं. गाहे-ब-गाहे इन देशों से ऐसे लोगों की भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल होने की ख़बर आते रहती है. कनाडा  की आबादी के वितरण पर अगर नज़र डालें तो वहां भारतीय मूल और उसमें भी सिख समुदाय के लोगों की तादाद काफ़ी है. कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के इस तरह से खुल्लम-खुल्ला भारत विरोधी रुख़ इख़्तियार करने से जुड़ा एक पहलू वहां सिखों की बड़ी तादाद को भी माना जा रहा है.


कनाडा की आबादी में हैं 2.1% सिख


जनगणना 2021 के आंकड़ों के मुताबिक कनाडा में 7 लाख 71 हज़ार से अधिक सिख हैं. कनाडा की आबादी में 2.1% सिख हैं. फिलहाल लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो की सरकार न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी की मदद से चल रही है. न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी  के सिख नेता जगमीत सिंह हैं. उनका रवैया भी भारत विरोधी ही रहता आया है. स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं होने के बावजूद 2019 और 2021 में जस्टिन ट्रूडो की सरकार को बरक़रार रखने में जगमीत सिंह का सहयोग महत्वपूर्ण रहा है. भारत पिछले कुछ सालों से कनाडा पर लगातार दबाव बनाते रहा था कि कनाडा की ज़मीन का इस्तेमाल खालिस्तान समर्थक अलगाववादी न कर पाए.


भारत की हैसियत लगातार बढ़ रही है


पिछले साल एक दिसंबर से भारत जी 20 समूह के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रहा है. पिछले 10 महीने में भारत ने इस मंच के माध्यम से दिखाया है कि वो अब हर वैश्विक मुद्दों पर नेतृत्व करने की क्षमता रखता है. इसके अलावा भारत उन अमीर और ताक़तवर देशों की तरह भी व्यवहार नहीं करता है, जिनके लिए निजी हित के सामने छोटे-छोटे अल्प विकसित और ग़रीब देशों की आवाज़ का कोई महत्व नहीं होता. भारत ने दिखाया है कि कैसे वो ग्लोबल साउथ कहलाने वाले 100 से अधिक देशों की आवाज़ बनने की क्षमता रखता है. यूरोपियन यूनियन की तर्ज़ पर अफ्रीकन यूनियन को जी 20 की सदस्यता दिलाने में भारत ने जो दमख़म दिखाया है, वो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है.


भारत के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय साज़िश तो नहीं!


कनाडा से जुड़े प्रकरण को लेकर यह भी सवाल उठता है कि कहीं यह भारत के ख़िलाफ़ किसी अंतरराष्ट्रीय साज़िश का हिस्सा तो नहीं है. साथ ही यह भी सवाल उठता है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो उस साज़िश का मोहरा तो बनकर काम नहीं कर रहे हैं. हम सब जानते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध जब से शुरू हुआ है, वैश्विक व्यवस्था को दो ध्रुवीय बनाने के प्रयासों में तेज़ी आई है. एक ध्रुव पर रूस और चीन जैसे देश खड़े हैं, तो दूसरे ध्रुव पर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे देश. इन सबके बीच भारत दो ध्रुवीय नहीं, बल्कि बहुध्रुवीय दुनिया का हिमायती रहा है, जिसमें भारत ग्लोबल साउथ के देशों की भी बड़ी भूमिका मानता है.


भारत है बहुध्रुवीय दुनिया का हिमायती


फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत हुई. उसके बाद से ही अमेरिका और बाक़ी पश्चिमी देशों के तमाम दबाव के बावजूद भारत बहुध्रुवीय दुनिया की अपनी कूटनीति पर अडिग रहा है. रूस पर अमेरिका और यूरोपीय देशों के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भारत पिछले 15 महीने से बड़े पैमाने पर रूस से क्रूड ऑयल खरीद रहा है. बहुध्रुवीय दुनियाको लेकर भारतीय कूटनीति की मज़बूती  जी 20 समिट के दिल्ली घोषणापत्र से भी ज़ाहिर होती है.


वैश्विक बाज़ार में भारत अब बड़ा खिलाड़ी


भले ही अमेरिका के साथ भारत का संबंध पिछले कुछ सालों में तेज़ी से मजबूत हुए हैं, लेकिन भारत के लिए अमेरिका को लेकर रूस की तरह विश्वसनीयता अभी भी उस तरह से नहीं बनी है. ऐसे भी दुनिया के जो तमाम बड़े-बड़े देश हैं, उनके लिए भारत प्रेम उनकी मजबूरी भी है. भारत अब दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है. हर क्षेत्र के लिहाज़ से भारत जैसे विशाल बाज़ार की अनदेखी या उपेक्षा का ख़तरा कोई देश मोल नहीं ले सकता है.


भारत की नज़र वैकल्पिक बाज़ार पर


सच है कि दुनिया के लिए भारत एक विशाल बाज़ार है, लेकिन उससे भी बड़ा सच यह है कि भारत अब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में एक ऐसी हैसियत रखता है, जिसमें वो अपने आप को विशाल बाज़ार तक ही सीमित नहीं रख सकता है.अब भारत अधिकांश क्षेत्रों में घरेलू उत्पादन को इतनी तेज़ी से मज़बूत कर रहा है कि उसके लिए भी दुनिया एक बाज़ार की तरह है. ऐसे में भारत की तरक्की कई सारे देशों को खटक सकती है. भारत की कोशिश है कि वो व्यापार के मामले में अमेरिका और चीन पर अपनी निर्भरता को धीरे-धीरे कम करे. इस मकसद से ही भारत रिछले कुछ महीनों से कनाडा, यूनाइटेड किंगडम समेत कई और यूरोपीय देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने की दिशा में तेज़ी से क़दम उठा रहा है.


वैश्विक व्यवस्था पर पड़ेगा दूरगामी प्रभाव


कनाडा की ओर से जितनी तेज़ी से सब कुछ किया गया और उसके बाद जिस तरह से उतनी ही तेज़ी से पश्चिमी देशों से प्रतिक्रिया आई, उससे कई सारे सवाल खड़े होते हैं. यहां तक कि पूरे प्रकरण को भारत की छवि को धूमिल करने के प्रयास के तौर पर मानने से भी इंकार नहीं किया जा सकता है. इतना तय है कि कनाडा जो भी कर रहा है, उसका असर भारत के साथ द्विपक्षीय रिश्तों पर तो पड़ेगा ही, इस प्रकरण का दूरगामी प्रभाव वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था पर भी देखने को मिल सकता है.


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