चीन ने अपनी करतूत से एक बार फिर ये साबित कर दिया कि वह सिर्फ पाकिस्तान का ही दोस्त नहीं है बल्कि वहां पलने वाले आतंकवादियों का भी उतना ही बड़ा मददगार है. पाकिस्तान के खूंखार आतंकी अब्दुल रऊफ असगर पर प्रतिबंध लगाने और उसे वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए भारत और अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद UNSC में प्रस्ताव पेश किया था लेकिन अकेले चीन ने इसका विरोध करते हुए इस पर रोक लगा दी है.


जाहिर है कि चीन के इस कदम से पाकिस्तान के खुश होने के साथ ही आतंकियों के हौसले सातवें आसमान पर आ जाएंगे लेकिन दुनिया में आतंकवाद के ख़िलाफ़ जो संयुक्त लड़ाई छिड़ी हुई है, वह इससे कमजोर होगी. इसीलिये भारत ने चीन को करारा कवाब देते हुए कहा है कि उसने जो अड़ंगा लगाया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण होने के साथ ही राजनीति से भी प्रेरित है. लेकिन बड़ा सवाल है कि चीन आतंकियों को क्यों बचा रहा है और ऐसा करके वह भारत-अमेरिका समेत बाकी दुनिया को आखिर क्या संदेश देना चाहता है?


दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक प्रतिबंध समिति है जिसमें भारत, अमेरिका और चीन समेत कुल 15 देश सदस्य हैं. ये समिति ही सर्वसम्मति से किसी अंतराष्ट्रीय आतंकी को वैश्विक आतंकी घोषित करती है. लेकिन इस समिति के बने नियमों के मुताबिक अगर कोई एक सदस्य देश भी ऐसे किसी प्रस्ताव पर अपना ऐतराज जता दे, तो वह प्रस्ताव पास नहीं हो सकता.


चीन ने इस नियम का फायदा उठाने की धूर्तता भरी चालाकी दिखाते हुए खुद को व पाकिस्तान को छोड़कर शेष दुनिया पर ख़तरे के बादल मंडराने की हिमाकत कर दिखाई है. भारत और अमेरिका ने असगर को संयुक्त राष्ट्र नामित अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव रखा था. इस प्रस्ताव में कहा गया कि अब्दुल रऊफ अजहर (असगर) को वैश्विक आतंकवादी के रूप में नामित किया जाए और उसकी संपत्ति फ्रीज की जाए.साथ ही उसकी यात्रा और हथियार खरीद को भी प्रतिबंधित की जाए. 


अब्दुल रऊफ अजहर पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद का एक शीर्ष कमांडर है और जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर मसूद अजहर का छोटा भाई है. अमेरिकी ट्रेजरी ने साल 2010 में ही रऊफ को आतंकवादियों की सूची में डाल दिया था.


सुरक्षा परिषद की 15 सदस्यीय समिति की बैठक में जब ये प्रस्ताव पेश हुआ,तो चीन एकमात्र ऐसा देश रहा, जिसने रऊफ को आतंकियों की इस सूची में डालने पर हामी नहीं भरी.जबकि यूएनएससी के अन्य सभी 14 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. 


हालांकि चीन ने अपनी इस करतूत को भी जायज ठहराने की कोशिश की है. न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स से बात करते हुए चीनी मिशन के प्रवक्ता ने कहा कि हमने प्रस्ताव इसलिए रोका क्योंकि हमें इस मामले का अध्ययन करने के लिए और समय चाहिए. समिति के दिशानिर्देशों में प्रस्ताव को रोकने का प्रावधान है. इस तरह से पहले भी समिति के सदस्यों द्वारा प्रस्ताव रोके गए हैं.


अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के विश्लेषक मानते हैं कि चीन ने ये प्रस्ताव रोककर भारत से बदला लेने की कार्रवाई की है.अब्दुल रऊफ अजहर (असगर) ने भारत में ही सबसे ज्यादा आतंकी हमले किये हैं,इसलिये ये प्रस्ताव पास होने को आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत की एक बड़ी जीत के रुप में ही देखा जाता. लेकिन चीन ऐसा नहीं होने देना चाहता था क्योंकि भारत व अमेरिका संयुक्त रुप से ये प्रस्ताव लाये थे और वो दोनों को ही अपना दुश्मन समझता है.


असगर को पाकिस्तानी अधिकारियों ने 2019 में टेरर फंडिंग के आरोपों में गिरफ्तार किया था, लेकिन अब वह कहां है, इसका खुलासा पाकिस्तानी सरकार ने भी कभी नहीं किया.उसे भारत में हुए कई आतंकी हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता है.साल 1999 में हुए इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहरण औऱ सएआल 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले के अलावा भारतीय वायुसेना पर हमला, पठानकोट, पुलवामा और जम्मू के अन्य स्थानों में सुरक्षा बल के जवानों पर हुए हमलों में भी वह शामिल रहा है. 


लेकिन ये पहली बार नहीं है,जब आतंकवाद के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय की साझा लड़ाई में चीन ने अपना दोहरा रवैया उज़ागर किया हो.बीते दो महीने में दूसरी बार ऐसा हुआ है, जब चीन ने यूएनएससी में भारत-अमेरिका द्वारा नामित आतंकी को लिस्ट में डालने के प्रस्ताव पर रोक लगाई है.


इससे पहले बीते जून में भी चीन ने प्रतिबंध सूची में लश्कर-ए-तैयबा के उप प्रमुख अब्दुल रहमान मक्की को सूचीबद्ध करने के भारत और अमेरिका के संयुक्त प्रस्ताव को रोक दिया था. मक्की साल 2008 में हुए मुंबई आतंकी हमलों में शामिल रहा है. भारत में हिंसा फैलाने के लिए धन जुटाने, युवाओं को भर्ती करने और कट्टरपंथी बनाने में भी उसका हाथ रहा है. सवाल उठता है कि खुद को दुनिया का सबसे ताकतवर पहलवान समझने वाला चीन आतंकियों को बचाने को रणनीति पर आगे बढ़ते हुए किस नई साजिश को अंजाम देना चाहता है? 


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