अगर आगे कभी देशों के बीच में लड़ाई होती है तो वह समुद्र के बीच में होगी. चीन का विस्तारवाद किसी से छिपा नहीं है. भारत अपनी समुद्री सीमाओं को लेकर काफी सचेत है. हाल में ही भारतीय नौ सेना ने कई साहसिक कार्य किए है. उन्होंने एक मर्चेंट शिप को भी छूड़ाया है. जिसमें करीब 35 नाविक थे. ये म्यांमार और बुल्गेरिया के लोग थे. इसको लेकर बुल्गेरिया के राष्ट्रपति ने भी बधाई और धन्यवाद दिया है. यकीनन भारतीय नौ सेना की ताकत बढ़ी है. भारतीय नौ सेना पिछले कुछ माह से काफी सुर्खियों में है. चीन से भारत की तानातनी चल रही है. इसके बावजूद समुद्री क्षेत्रों में भारतीय नौ सेना के द्वारा रेस्क्यू अभियान चलाया जा रहा है. जानकारों की मानें तो इस समय भारतीय समुद्री क्षेत्र में कई तरह की समस्याएं है.


चीनी विस्तारवाद और पायरेट्स हैं चुनौती


भारतीय नौसेना की बड़ी चुनौती चीन का समुद्री क्षेत्र में विस्तारवाद भी है. चीन का समुद्री क्षेत्र में बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने में भारतीय सेना का लगातार प्रयास है, लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि काफी समय से युद्ध नहीं हुआ है. वैसे, चीन का जो परिप्रेक्ष्य है वो काफी अलग है. पड़ोसी देशों के साथ युद्ध कम होते है और काफी दिनों के बाद होते हैं, लेकिन युद्ध को छोड़ दे तो समुद्री क्षेत्र में बहुत सारी और भी समस्याएं होती है. उसमें एक चुनौती पायरेट्स की भी होती है. सोमालिया और अदन की खाड़ी के पास जो होता था, वो किसी से छिपा नहीं है. ये 2009 में काफी बढ़ गया था. उसके बाद 2009 से 2012 तक कई देशों की सेना और खुद भारत की सेना ने भी सभी के सहयोग से काम किया और फिर समुद्री लूट में काफी कमी आ गई थी.



पिछले दस सालों में ये चीजें नियंत्रण में थी, लेकिन ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने जब लाल सागर में आक्रमण करना शुरू कर दिया, उसके बाद सेना और लोगों का ध्यान उस तरफ ज्यादा होने लगा. उसके बाद से जो पायरेट यानी समुद्री लुटेरे थे, उनको फिर से एक मौका मिल गया कि सारी सेनाएं उधर व्यस्त है तो ऐसे में वो फिर से अपने पुराने धंधे को शुरू कर सकते हैं.  उनकी योजना थी कि जहाजों को पकड़ सकें और उनके नाविकों के बदले फिरौती मांग सके. वो भूल गए थे कि भारतीय नौ सेना पिछले दस सालों में और भी मजबूत हो गई है और उसकी विश्वसनीयता बढ़ गई है.


लाल सागर के अंदर तो दूसरी सेनाएं इन चीजों को देख रही है, लेकिन लाल सागर के थोड़ी बाहर अदन की खाड़ी के बाहर आ गए तो वहां पर पहले से ही भारतीय सेना तत्पर थी. इससे पहले एमवी केम प्लूटो पर किसी मानव रहित विमान से आक्रमण किया गया था, उसके बाद भारतीय नौसेना तुरंत वहां पर पहुंची. तटरक्षक और नौसेना की ओर से लोग पहुंचे. उसके बाद सहायता के काम हुए अभी भी भारतीय नौ सेना तुरंत तैयार रहती है. अगर पायरेट्स कुछ करते हैं तो तो उसकी प्रतिक्रिया देने के लिए भारतीय नौसेना तुरंत पहुंच जाती है.


कई देशों को सहायता दी इंडियन नेवी ने


जनवरी माह में आईएनएस सुमित्रा ने एक चालक दल को सोमालिया से बचाया था. उसमें 19 पाकिस्तानी सदस्य भी थे. पांच जनवरी को लाइबेरिया के जहाज को किडनैप होने से बचाया. इसके अलावा जनवरी से लेकर मार्च तक कई ऐसी संभावनाओं को भारतीय सेना विफल कर चुकी है. एक तरह से ये कूटनीतिक जीत भी है. दोस्ती के अलावा सामरिक जीत भी है. भारतीय सेना की इन दिनों जो ताकत बढ़ी है उसके प्रति विदेशों में काफी सकारात्मक रुख है. 1990 में जब शीत युद्ध खत्म हुआ था. उसके बाद से भारतीय सेना ने खुद को काफी मजबूत किया. उसके बाद भारत को एक मजबूत शक्ति के तौर पर भी देखा जा रहा है. भारत सभी तरफ से काफी सक्षम हुआ है. भारत को माना जाता था कि वो सोवियत संघ के साथ है.


बाद में सब अलग हो गया. 2008 के बाद समुद्री लूट शुरू हुई उस समय सबसे पहला देश भारत ही था जो सीमा पार कर के अपने गन से पायरेट्स के जहाज को डुबो दिया था. इस चीज को दूसरे देशों ने भी देखा और उन्हें लगा कि भारतीय नौसेना अपना कोई अंदरूनी स्वार्थ नहीं देख रही है. उसके बाद लगा कि भारत निःस्वार्थ काम कर रहा है तो दूसरे देशों का भारत के प्रति नजरिया बदल गया.


अब दूसरे देश भारतीय नौसेना को इस रूप में देखते हैं कि सबसे पहले प्रतिक्रिया देती है और हमेशा दूसरों की सहायता के लिए भी उपलब्ध रहती है. भारत एक पसंदीदा और चुनिंदा सेक्युरिटी पाटर्नर के रूप में भी अब देखा जा रहा है. भारत की सेना पर पड़ोसी देशों को भी भरोसा है कि वो मदद के लिए हमेशा खड़ा रहता है तो ये एक भारत के लिए सफलता है. इससे आसपास के देशों को भी लाभ हो रहा है. उससे भी मजबूती मिल रही है.


भारतीय नौसेना, समंदर की मुहाफिज


चीन को भारत को अब कोई काउंटर करने की जरूरत नहीं है. अभी हाल में ही फिलिपीन्स के पत्रकारों, विदेशमंत्री और लोगों ने भी एक कड़ी प्रतिक्रिया देकर चीन का मजाक उड़ाया है. उसने कहा है कि समुद्र का असली बॉस तो भारत ही है. बुल्गेरिया के राष्ट्रपति और विदेशमंत्री ने भारत का आभार जताया है. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत के विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद ने कहा है कि आखिरकार दोस्त इन्हीं दिनों के लिए होते हैं. वायु सेना और थल सेना का एक अपना एक डोमेन होता है. उसी में रहकर वो काम करते हैं. लेकिन जल सेना में एक ये अलग प्रकार होता है. ये दूसरे देश की सीमा के पास 12-13 मील तक जाते हैं, उसके बावजूद भी सभी कुछ शांत व सामान्य रहता है. थल सेना अपनी सीमा से बाहर जाती है तो उसे युद्ध माना जाता है. हालांकि, देश का विकास होना है या फिर कोई सामान आना है या ट्रेडिंग होनी है तो ऐसे में ट्रेड सिर्फ समुद्री मार्ग से ही संभव है. क्योंकि जमीन से वो अभी तक व्यवस्था नहीं बन पाई है.


व्यापार का काम हो सक तो. एक तरफ से चीन है और दूसरे तरफ पाकिस्तान भी है. अगर समुद्री मार्ग से व्यापार हो रहा है, चीजें आ जा रही है तो भारत को समुद्री मार्ग को सही रखने का काम करना होगा, और उसकी सुरक्षा भी करनी होगी. इसकी सुरक्षा के लिए भारत की जल सेना लगातार काम कर रही है. फिलिपीन्स कुछ कहे या ना कहे, लेकिन भारत की नजर चीन के हर क्रियाकलाप पर है. जो भी वो हिंद महासागर में करना चाहता है. चीन के सैन्य की जहाज हो या रिसर्च की जहाज हो जैसे ही वो मालक्का सागर से  लेकर अदन की खाड़ी के पास आता है तो भारत की वहां पर पैनी नजर रहती है. उनको पता है कि समुद्री की हर गतिविधि भारत ध्यान में रखता है. इतने विशाल क्षेत्र में जल सेना ये सब कर सकती है तो एक मैसेज चीन को भी जाता है, लेकिन फिर भी हमें चीन को कम नहीं आंकना चाहिए.



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