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भारत-फ्रांस दोस्ती पूरे यूरोप के लिए है फायदेमंद, पीएम मोदी की यात्रा रक्षा सहयोग के लिहाज से अहम

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फ्रांस दौरा बहुत ही महत्वपूर्ण है. अमेरिका के हाल की यात्रा के बाद ये दूसरा बड़ा दौरा है. भारत और फ्रांस के बीच प्रगाढ़ होते हुए रिश्ते को ऐसे समझा जा सकता है कि फ्रांस को भारत एक नया दोस्त के तौर पर मिला है. हर्शल इंस्टीट्यूट के एक रिसर्चर ने 2019 में ये बात कही थी.

फ्रांस जाने से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि फ्रांस के साथ रिश्ता गहरे तूफानों में भी स्थिर और लचीला है. उनका ये कहना है कि ग्लोबल साउथ के लिए भारत यूरोप के लिए एक मजबूत कंधा हो सकता है. फ्रांस के एक अखबार से बातचीत के दौरान उन्होंने ये बातें कही.  प्रधानमंत्री ने कहा कि दोनों देशों के बीच रिश्ता एक बेहतरीन दौर में है. ये एक मजबूत और विश्वसनीय रिश्ता है.

गहरे तूफानों में स्थिर होने की जो बात प्रधानमंत्री मोदी ने कही है, मुझे लगता है कि उनका इशारा ये भी रहा होगा कि जब भारत ने अटल बिहार वाजपेयी सरकार के दौरान मई 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण किया था तो उस वक्त अमेरिका समेत कई सारे यूरोप के देशों और चीन, जापान, मलेशिया समेत कई एशियाई देशों की ओर से कड़ा स्टेटमेंट दिया गया. भारत पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इन सबके बीच उस वक्त फ्रांस ने भारत के खिलाफ कोई बयान जारी नहीं किया. फ्रांस ने भारत के कदम की आलोचना नहीं की. प्रधानमंत्री मोदी के बयान को इस नजरिए से भी देखा जा सकता है.

पुडुचेरी फ्रांस का उपनिवेश रहा है, तो हम कह सकते हैं कि भात और फ्रांस के बीच काफी पुराना रिश्ता रहा है. ये रिश्ता अब मजबूती के साथ एक नई ऊंचाइयों को छू रहा है.

दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी काफी महत्वपूर्ण है. भारत फ्रांस से अपनी नेवी के लिए 26 राफेल एम विमान और स्कॉर्पीन श्रेणी की 3 पनडुब्बी खरीदेगा. इसकी भी संभावना है कि फिफ्थ जेनरेशन फाइटर प्लेन और हेलीकॉप्टर के लिए बातचीत हो सकती है.

दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ है. इसको देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी का ये दौरा हो रहा है. फ्रांस के राष्ट्रीय दिवस समारोह के बैस्टिल डे परेड में भारतीय सेना की एक टुकड़ी भी हिस्सा लेगी. दूसरे विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों ने फ्रांस में नाजियों के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ी थी. उनके सम्मान में वहां स्मारक भी है. इस बात को जैक्स शिराक समेत फ्रांस के तमाम राष्ट्रपति स्वीकार करते हैं. इसी कड़ी में मौजूदा राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों भी इसकी अहमियत समझते हैं.

भारत का फ्रांस के साथ रिश्ता बहुत ही मजबूत हो चुका है. अमेरिका की एक पॉलिसी रही है कि वो चीन के मामले में तो भारत के साथ दिखता है, लेकिन पाकिस्तान के मामले में उस तरह से सपोर्ट नहीं करता है, जो उसे करना चाहिए. रीगन के समय पाकिस्तान को लड़ाकू विमान अफगानिस्तान में रूस की बढ़ती दखलंदाजी को रोकने का हवाला देते हुए दिया गया था, ये भारत के हितों के हिसाब से सही नहीं था. अमेरिका की सरकार की जो विदेश नीति रही है, वो हमेशा बदलते रही है. चेक एंड बैलेंस की विदेश नीति पर वो चलते हैं.

फ्रांस के साथ ऐसा नहीं है. वो पाकिस्तान को ये विमान नहीं देगा. वो खुलकर भारत का साथ देता रहा है. फ्रांस से हमें एयरफोर्स के लिए राफेल लड़ाकू विमान मिला भी है और अब नौसेना के लिए भी मिलने जा रहा है. अमेरिका का कुछ नहीं कह सकते हैं. कब उसकी रुचि पाकिस्तान में फिर बढ़ जाए.

जब जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री थे, उस वक्त इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते पहला परमाणु परीक्षण किया था. उससे पहले फ्रांस ने एक न्यूक्लियर पावर प्लांट पाकिस्तान को दिया था, जहां से यूरेनियम संवर्धित करके पाकिस्तान ने एटम बम हासिल करने का प्रयास किया था. इसके अलावा उसके बाद फिर पाकिस्तान के साथ फ्रांस के आगे चलकर इस तरह के रिश्ते कभी नहीं रहे हैं.

फ्रांस से भारत को राफेल जैसे लड़ाकू विमान मिले हैं, पनडुब्बियां बनाने में सहयोग मिला है. हम कह सकते हैं कि अमेरिका के मुकाबले भारत का फ्रांस के साथ रिश्ता ज्यादा टिकाऊ और विश्वसनीय है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि वे भारत को इतना मजबूत कंधा मानता हूं कि अगर ग्लोबल साउथ को ऊंची छलांग लगानी है तो भारत उसे आगे ले जाने के लिए अपने कंधे का सहारा दे सकता है. ग्लोबल साउथ के लिए भारत ग्लोबल नॉर्थ के साथ भी अपने संबंध बना सकता है और इस लिहाज से यह कंधा एक तरह का पुल बन सकता है. प्रधानमंत्री का ये बयान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत की बढ़ती भूमिका को रेखांकित करता है.

ग्लोबल साउथ टर्म उन देशों के लिए इस्तेमाल होता है, जिनका ज्यादा विकास नहीं हुआ है. ग्लोबल साउथ के देशों में सामाजिक और आर्थिक अस्थिरता ज्यादा है. इसमें अफ्रीकन और लैटिन अमेरिकी देश भी आ जाते हैं. एशिया के भी कई देश इसमें आ जाते हैं. भारत की ग्लोबल भागीदारी बढ़ रही है. भारत की बढ़ती भूमिका की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ये कह रहे हैं कि यूरोप के लिए भारत ग्लोबल साउथ के लिए एक कंधा साबित हो सकता है.

भारत एक ऐसी जगह पर स्थिर है कि यहां से साउथ चाइना सी भी नजदीक है. यहां चीन की बढ़ती भूमिका को लेकर अमेरिका और यूरोप के देशों में काफी तनाव है. प्रधानमंत्री के बयान से इस बात को भी रेखांकित किया जा रहा है. फिलीपींस और वियतनाम जैसे देश विकास में पीछे हैं और चीन की बढ़ती भूमिका इनके लिए भी खतरा है. इसलिए भारत वियतनाम के साथ अपने रिश्ते को और प्रगाढ़ कर रहा है. फ्रांस के साथ ही बाकी यूरोप के देशों के लिए भी भारत के साथ मजबूत संबंध उनके हित में होंगे. भारत से ज्यादा फ्रांस और बाकी यूरोप के देशों को भारत की जरूरत है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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