मॉर्गन स्टेनली ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत बदल गया है और आज विश्व व्यवस्था में एक स्थान हासिल करने की ओर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत एक दशक से कम समय में बदल गया है. मौजूदा भारत 2013 से अलग है. 10 साल के छोटे से अरसे में भारत ने दुनिया की व्यवस्था में स्थान बना लिया है.


मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भारत सरकार ने काफी वक्त से लंबित सुधारों को कानून के जरिए लागू किया है. इसके अंदर अप्रत्यक्ष करों को सरल बनाने के लिहाज से जीएसटी का जिक्र है. रिपोर्ट में इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड के बारे में कहा गया है. आधार का जिक्र है. कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत में डिजिटल लेनदेन बढ़ रहा है, जो अर्थव्यवस्था के संगठित होने का संकेत है. डायरेक्ट कैश ट्रांसफर का जिक्र है. कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की बात कही गई है. सरकार ने कैपिटल एक्सपेंडिचर को बढ़ाया है.


इस रिपोर्ट में इन सब आर्थिक सुधारों की बात कही गई है. इस रिपोर्ट में जो सबसे बड़ी बात कही गई है, वो ये है कि जब हम इन बातों का जिक्र करते है तो क्या इससे अर्थव्यवस्था की कम्प्लीट तस्वीर मिलती है. हमें किसी भी डेटा से अर्थव्यवस्था की कम्प्लीट तस्वीर नहीं मिलती है. जैसे जीडीपी मार्केट प्राइस पर है, तो इसका मतलब है कि अगर कीमतें 15% बढ़ेंगी तो जीडीपी भी 15% बढ़ जाएगा, अगर हम कोई एडिशनल गुड्स प्रोडक्ट नहीं करेगे तो.


इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये हैं कि हमें व्यापक संदर्भ में देखना होगा. हमारी एवरेज इनकम लेवल क्या है. जिसे पर कैपिटा इनकम कहते हैं, उसको देखना होगा. रोजगार के मोर्चे पर क्या है. मुद्रास्फीति, असमानता इन सब पर भी सोचना होगा. ये भी देखना होगा कि हमारा फाइनेंशियल सिस्टम हेल्दी है या नहीं. इन सब पर बात करनी होगी.


हम बात करें एब्सोल्यूट जीडीपी के ग्रोथ रेट की. सालाना जीडीपी ग्रोथ रेट वित्तीय वर्ष के तौर पर 2015 से 2017 के ये ग्रोथ औसतन 8% रहा. उसके बाद ग्रोथ रेट कम हुई है. 2020 में 4% गिरा है. वहीं 2021 से 2023 के बीच तो 2021 में 6%, 2022 में 9% और 2023 में 7%. इसके बढ़ने का कारण है बेस इफेक्ट. हमारा जो पिछला आधार लो बेस था. इसकी वजह से भारत को सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का स्टेटस मिला. जब ये लो बेस इफेक्ट धीरे-धीरे कम होना शुरू होगा तो फिर ग्रोथ रेट 5.5 से 6.5% के बीच रहेगा.


प्रति व्यक्ति आय या पर कैपिटा इनकम की बात करें, तो ये 2014 से 2023 के बीच ये 67% बढ़ी है. जबकि 2004 से लेकर 2014 के बीच में देश में प्रति व्यक्ति आय  में 145% की बढ़ोतरी हुई थी.


इंफ्लेशन या महंगाई दर की बात करें तो ये बिल्कुल सही बात है कि 2014 तक हमने डबल डिजिट में इंफ्लेशन देखा था. इसमें समस्या कहां पर तो समस्या क्रूड ऑयल की ऊंची कीमत समस्या है. जैसे-जैसे कच्चे तेल की कीमतें कम होते गईं, पहले ये 90 डॉलर से ऊपर थे, उसके बाद ये 30 डॉलर से कम पर आ गए थे. ये अंतर 2013 के मध्य से 2016 के मध्य के बीच आ गया. तब हमारी घरेलू मुद्रास्फीति थोड़ी सी कम हुई थी. पिछले 4 साल छोड़ दे तो अभी रिटेल इंफ्लेशन थोड़ी बहुत कंट्रोल में है. आरबीआई का टॉलरेंस बैंड भी 2 से 6% का है.


अगर बेरोजगारी की बात करें तो हमारा देश सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश है. यहां जॉब क्रिएशन बहुत ही ज्यादा जरूरी चीज है. जीडीपी के बढ़ने से ज्यादा महत्वपूर्ण ये है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2017-18 में बेरोजगारी दर 45 साल में सबसे ऊपरी स्तर पर था. ये सरकार ने कहा था. ये भी सही तस्वीर नहीं दिखाती है क्योंकि अब लोगों ने काम खोजना ही बंद कर दिया है. ये बहुत कम हो गया है. रोजगार दर कम हुई है, लोग जॉब ढूंढ़ ही नहीं रहे हैं.


गरीबी पर अगर बात करें, तो अक्टूबर 2022 में विश्व बैंक की जो रिपोर्ट आई थी...उसमें कहा गया था कि दुनिया में सबसे ज्यादा गरीब लोगों की संख्या भारत में है. 2019 की बात करें तो 13.7 करोड़ लोग 46 रुपये प्रतिदिन पर जी रहे थे और 61.2 करोड़ लोग 78 रुपये प्रतिदिन पर जी रहे थे. बाद में कोविड महामारी की वजह से हालात और बुरे हुए.


अगर हम असमानता की बात करें तो 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में आर्थिक तौर से सबसे ज्यादा असमानता वाले देशों में से एक है. यहां की शीर्ष 10% आबादी की आय आर्थिक तौर से निचले स्तर के लोगों से 22 गुना ज्यादा है. इससे पता चलता है कि आर्थिक असमानता कितनी बढ़ी है. 1990 के दशक की शुरुआत में जब हम लिबरलाइज हुए थे, उसके मुकाबले ये खाई बहुत बढ़ गई है.


1991 में जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे, तब हमारे यहां लिबरलाइजेशन आया था.  ये सही है कि लंबे वक्त से आर्थिक सुधार से जुड़े लंबित मुद्दे को इसी सरकार ने सुलझाया है. लेकिन अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है. दुनिया में जो बहुत बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, उनको फिलहाल आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. भारत में ग्रोथ रेट एक अच्छी स्थिति में जरूर है, लेकिन घरेलू तौर से हमें आर्थिक मोर्चे पर बहुत कुछ करने की जरूरत है.


इसमें सबसे प्रमुख नौकरी पैदा करना है. ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिले, साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय में इजाफा हो. हमारे भविष्य के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा करना सबसे अहम है. सरकार को इस पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.


यूपीए सरकार में ग्रामीण इलाकों में रोजगार के लिए मनरेगा आया था. आज अगर मौजूदा सरकार की बाक करूं तो मनरेगा में काफी समस्या आ रही है. लोगों को समय से पैसा नहीं मिल पा रहा है. मनरेगा का बजट भी कम कर दिया गया है. लोगों को मनरेगा के तहत काम नहीं मिल रहा है. मनरेगा मनमोहन सिंह सरकार का अच्छा कदम था.भारत की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित रही है और अब इसमें बदलाव हो रहा है. सर्विस सेक्टर को ज्यादा महत्व मिल रहा है. सरकार भी इस बदलाव के लिए कई तरह के कानून और नीतियां ला रही है. इसके बावजूद रोजगार नहीं बढ़ पा रहा है.


(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.)