अधिकांश लोग मानते हैं कि पंजाब ही इकलौता ऐसा राज्य है जहां हर तरह के नशे ने अपनी गहरी जड़ें जमा ली हैं और वहां की युवा पीढ़ी को बर्बाद करके रख दिया है. काफी हद तक ये सही भी है और इसीलिए इस मुद्दे पर एक फ़िल्म भी बनी थी- "उड़ता पंजाब", ताकि लोग जान सकें कि एक सूबे की पूरी जवान कौम को नशा कैसे बर्बाद करके रख देता है. वहां इसमें कितनी कमी आई, ये हम भी नहीं जानते और न ही मुख्यमंत्री भगवंत मान सरकार ने इस बारे में कोई आंकड़ा सार्वजनिक किया है.


लेकिन अब ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि दक्षिण भारत के तटीय यानी समुद्री इलाके वाले दो राज्य नशीले पदार्थों का सुनहरा अड्डा सिर्फ बन ही नहीं चुके हैं, बल्कि वे इस पर बेहद तेजी से आगे भी बढ़ रहे हैं. तमिलनाडु और केरल ऐसे प्रदेश हैं जो पाकिस्तान से तस्करी के जरिये लाये जाने वाले हर किस्म के नशीले पदार्थों का सबसे महफूज़ केंद्र बन चुके हैं. इसकी बड़ी वजह ये है कि इन दोनों प्रदेशों के समुद्र की सीमाएं काफी लंबी हैं और कई बन्दरगाहों से इनकी सीधी कनेक्टिविटी है. इसीलिये यहां से श्रीलंका और मालदीव को ड्रग्स की तस्करी का खेल बेख़ौफ़ होकर खेला जा रहा है.


सवाल उठता है कि श्रीलंका से सटे तमिलनाडु में नशे के इस कारोबार के पीछे आखिर कौन-सा ड्रग सिंडिकेट है, जो अभी तक जांच एजेंसियों की पकड़ से बाहर है और क्या उसे राज्य सरकार का प्रश्रय मिला हुआ है? हालांकि इस महीने की शुरुआत में ही केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो ने तमिलनाडु को हाई अलर्ट पर रखते हुए ये चेतावनी दे दी थी कि "कांजी पनाई" के नाम से मशहूर कुख्यात ड्रग तस्कर मोहम्मद इमरान रामेश्वरम के रास्ते भारत में दाखिल हो चुका है. उसका क्रिमिनल रिकॉर्ड तो है ही लेकिन उसे भारत और श्रीलंका के समुद्री रास्ते में हर तरह के गैर कानूनी कामों का भी सरताज माना जाता है. लिहाज़ा, आर्थिक कंगाली से जूझ रहे श्रीलंका के इस दौर में उसका गैर कानूनी तरीके से भारत में घुसना ही बड़ी बात है क्योंकि वह इसी रास्ते से ड्रग्स की तस्करी करता आया है.


अगर केरल की बात करें, तो वह प्रदेश भी ड्रग तस्करों के लिए सोने की खान बनता जा रहा है. शायद लोग भूल गए होंगे कि मार्च 2021 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ने श्रीलंका के छह नागरिकों को तिरूवनंतपुरम के समुद्री इलाके से गिरफ्तार किया था जिनके कब्जे से 300 किलोग्राम हेरोइन,पांच AK-47 राइफल्स औऱ 9mm की एक हजार गोलियां बरामद की गई थीं. हालांकि दुनिया की लगभग तमाम एन्टी नारकोटिक्स एजेंसियां मानती हैं कि भौगोलिक लिहाज से पाकिस्तान इकलौता ऐसा देश है, जो अपने आसपास के देशों के लिए ड्रग्स के लिहाज से एक सुनहरा पक्षी बन जाता है. लेकिन अफगानिस्तान से आने वाली अफ़ीम की तस्करी कर के ये कुछ देशों के लिए मौत का त्रिकोण भी बन जाता है. चूंकि पाकिस्तान में न तो इतना सख्त कानून है और न ही उस पर अमल करवाने वाले इतने गंभीर है, इसलिये उस मुल्क की हर सीमा नशीले पदार्थों के सौदागरों के लिये किसी सौगात से कम नहीं है.


वैसे तो अफ़ीम का हमारे देश भी उत्पादन होता है लेकिन इसकी सबसे ज्यादा पैदावार मध्यप्रदेश के पश्चिमी निमाड़ इलाके में ही होती है. पिछले कई दशकों से अफ़ीम की तस्करी वहां से भी होती आ रही है और जाहिर है कि स्थानीय पुलिस और नारकोटिक्स से जुड़ी एजेंसी की मर्जी के बगैर ये मुमकिन नहीं ही सकता. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि अफगानिस्तान में ही अफ़ीम की पैदावार दुनिया में सबसे ज्यादा होती है. उस अफीम से ही हर तरह की ड्रग्स तैयार होती है जिसे हेरोइन कहें, स्मैक कहो या कोई और नाम दे दो. कई मामलों की पड़ताल के बाद हमारा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो इस नतीजे पर पहुंचा है कि ये सारी ड्रग्स तैयार तो अफगानिस्तान में ही होती हैं लेकिन वो तस्करी करके पहले पाकिस्तान लाई जाती हैं. फिर उसे किसी भी तरीके या जुगाड़ की मार्फत हमारे पंजाब में भेजा जाता है. वहां से इसे सामान से लदे ट्रकों में छिपाकर देश के विभिन्न राज्यों में सप्लाई की जाती है. जो हल्की किस्म वाली ड्रग्स होती है उसे तस्कर तमिलनाडु के रामनाथपुरम बंदरगाह तक पहुंचा देते हैं जो श्रीलंका की समुद्री सीमा के सबसे नजदीक है.


लेकिन ये भी समझना होगा कि ड्रग्स तस्करी और आतंकवाद का चोली-दामन का साथ है. पिछले कुछ सालों में हमारे देश में हुई आतंकी वारदातों पर गौर करें तो उसमें इस्लामिक स्टेट यानी ISIS से जुड़े संगठनों का हाथ सामने आया है जिनकी बुनियाद ही ड्रग्स की तस्करी से आये पैसों पर खड़ी है. भारत को सिर्फ इसलिए फिक्रमंद नहीं होना है कि अफगानिस्तान में फिर से तालिबान लौट आया है या पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान की गूंज सुनाई दे रही है बल्कि ज्यादा चिंता ये करनी है कि तमिलनाडु में LTTE फिर से अपने पैर पसार रहा है. इन तीनों को ड्रग तस्करी का नापाक रिश्ता ही आपस में जोड़ता है जो आतंकवाद के एक बड़े खतरे का संकेत है. शायद आपको ये जानकर हैरानी हो सकती है कि अफगानिस्तान में तालिबानी हुकूमत आने के बाद वहां अफीम की खेती 32 फीसदी ज्यादा बढ़ गई है और वहां के किसानों की आमदनी महज एक साल के भीतर ही तिगुनी हो गई है.


संयुक्त राष्ट्र का एक विभाग है- United Nations Office on Drugs and Crime (UNODC). इसने पिछले साल नवंबर में जारी की गई अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि 2 लाख 33 हजार हेक्टेयर भूमि पर अफीम की खेती की मोनिटरिंग करने के बाद हमने पाया कि इसमें पहले के मुकाबले 32 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जो चौंकाने के साथ ही दुनिया के लिए एक बड़े खतरे का भी संकेत है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 में उसे अफीम की खेतो से 42.5 करोड़ डॉलर की आमदनी ही हुई थी,जबकि वह 2022 में बढ़कर 100 करोड़ से भी पर पहुंच गई है. ये हाल तब है, जबकि अप्रैल 2022 में तालिबानी हुकूमत ने अफीम की खेती पर प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था. लेकिन लगता है कि वह महज दिखावा ही था.


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