आर्मी चीफ मनोज पांडे ने कहा है कि चीन एलएसी पर तेजी से आधारभूत संरचना का विकास कर रहा है. उसने अपनी सेना भी नहीं कम की है. ऐसे में सवाल है कि भारत की क्या तैयारी है और इससे कैसे निपटना चाहिए.
चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत आधारभूत संरचना को बढ़ा रहा है. साथ ही साथ वो अपने हिसाब से एलएसी पर स्थिति को बदलने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भारत ऐसा होने नहीं देगा. हम भी पूरी तरह से मुस्तैद हैं और अपनी इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ा रहे हैं.
चीन के लिए बातचीत करने का रास्ता भी उसकी विस्तारवादी सोच को दर्शाता है. चीन की नीयत ठीक नहीं है. अभी यूक्रेन के साथ युद्ध चल रहा है जिसमें उसने रूस के साथ गठजोड़ किया है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग अभी रूस जा रहे हैं. चीन की विस्तारवादी नीति का सबसे बड़ा लक्ष्य दक्षिण चीन सागर में है, जिसे अमेरिका ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन को साथ लेकर रोकने की कोशिश कर रहा है.
ऐसे हालात में भी चीन को भारत के साथ अपने मुद्दों को सुलझाने के लिए वार्ता के टेबल पर बैठना पड़ेगा. चूंकि यूक्रेन युद्ध के चलते ऐसे हालात बने हुए हैं कि वो हिंदुस्तान के साथ एक दम से स्थिति खराब हो जाए, ऐसा नहीं करेगा. प्रत्यक्ष तौर पर भारत के साथ एलएसी पर कूटनीतिक तौर पर इन्वोल्व होना वर्तमान परिस्थिति में शूट नहीं करता है. लेकिन हम अपनी मुस्तैदी को कम नहीं कर सकते. हमें भी बेहतरीन इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाकर किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहना चाहिए और भारत भी एलएसी से सटे इलाकों में तेजी से विकास कार्यों को कर रहा है.
इससे सामरिक और कूटनीतिक दोनों नजरिया जुड़ा है. कूटनीतिक दृष्टिकोण से पड़ोसी देशों में चीन हमेशा विकास से विस्तार की नीति के तहत काम करता है और घुसपैठ करता है. समंदर में भी हथियाने की कोशिश कर रहा है. दूसरा ये कि वो अभी दक्षिण चीन सागर में उलझा हुआ है और ताइवान उसका पहला टारगेट हो सकता है, न कि भारत. लेकिन हमें किसी भी हालात के लिए तैयार रहना चाहिए और हम अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को भी बेहतर तरीके से विकसित कर रहे हैं.
ये स्थिति लगातार बनी रहेगी. 1962 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने जो गलती की, उसकी वजह से आज भारत ऐसी परिस्थिति में हैं, जैसे इजरायल है. हमारे एक तरफ पाकिस्तान है तो दूसरी तरफ से चीन है और ऊपर से इन दोनों का गठजोड़ है. ऊधर, चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर अपनी पैठ जमा रखी है. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए हमें हमेशा तैयार रहना पड़ेगा.
हम चीन के साथ कूटनीतिक, राजनीतिक और सामरिक तौर पर भी डील कर रहे हैं. हमारा मजबूत पक्ष ये है कि हमारे पास ह्यूमन कैपिटल है. इसमें हम भी चीन के बराबर ही हैं और हमारे सैनिक चीन के सैनिक से कहीं ज्यादा मोटिवेट और कमिटेड हैं. ऐसी परिस्थितियों में भारत डील करने की सामर्थ्य रखता है. भारत अब हमेशा युद्धरत स्थिति में रहता है. चूंकि जब तक पाकिस्तान और चीन का गठजोड़ है हमें वॉर के मोड में रहना पड़ेगा और जिस तरह की चीन की विस्तारवादी नीति है उसको देखते हुए भारत को आत्मनिर्भर भी बनना पड़ेगा और कंटिन्यू स्टेट ऑफ वॉर में रहना होगा. चाहे वो हाईब्रिड वॉरफेयर हो या अन्य किसी तरह का हमें हमेशा तैयार रहना होगा और ये हम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे.
चीन की तरफ से एलएसी पर जो अभी स्थिति है उससे घड़बड़ाने की बात नहीं है. मोटिवेशन में तो आपने देखा ही है कि हिंदुस्तानी सैनिक अपने देश की रक्षा के लिए सर्वस्व न्योछावर करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. इसमें सबसे ज्यादा जरूरी सैनिकों का फिटनेस और मोटिवेशन है. चूंकि ये दोनों ही चीजें बड़ी-बड़ी पासे पलट देती है. बड़ी-बड़ी ताकत अफगानिस्तान से भी भागे और वियतनाम से भी भागे हैं. चीन के लिए ताइवान प्राथमिकता है और दूसरा साउथ चाइना सी है. हमारे साथ वो उलझा हुआ जरूर रहेगा लेकिन उसके डिजाइन सिर्फ एक्सटेंशन को बरकरार रखने के लिए ही होते हैं, उसके आगे वो सहन नहीं कर सकता है. एक्सटेंशन बरकरार रखने का मतलब ये है कि वो छोटी-छोटी चीजों को लेकर टेंशन क्रिएट करता रहेगा.
आज की तारीख में जो वैश्विक परिस्थिति है उसमें देश को तैयार भी रहना चाहिए और लोगों को घड़बड़ाने की भी जरूरत नहीं है. चूंकि वर्तमान में जो रणनीतिक परिस्थितियां बनी हुई हैं वो हिंदुस्तान के हक़ में है, हमारे खिलाफ में नहीं है. एक तरफ चीन के खिलाफ जहां नाटो हमारी मदद करने को तैयार है तो वहीं दूसरी तरफ रूस भी हमारे साथ है.
चाहे चीन हो या पाकिस्तान हो हम सभी न्यूक्लियर ताकतें हैं. इस स्थिति में थोड़े देर के लिए एक लिमिटेड वॉर फेयर की संभावना बनी हुई है. भारत कहता तो है कि हम परमाणु हथियारों का इस्तेमाल पहले नहीं करेंगे लेकिन जिस देश के पास कमजोरी आती है वहां पर वो परमाणु हमले का विकल्प रखता है. तो ऐसे हालात में फूल स्केल युद्ध नहीं होगा युद्ध व्यापारिक रहेगा, पोस्चरल रहेगा. युद्ध की तैयारियां हमेशा होते रहेंगी और आक्रामक रवैया भी बरकरार रहेगा. चीन तब युद्ध करेगा जब वह जीतने की स्थिति में हो, लेकिन उसकी पहली प्राथमिकता दक्षिण चीन सागर और ताइवान ही रहेगा. इसके अलावा वो एक स्ट्रौंग पोस्चरिंग ऑफ वॉर अपना व्यापार बढ़ाने के लिए ही करेगा. जैसे उसने अभी सऊदी अरब और ईरान का समझौता कराया है, लेकिन वहां उसका प्रमुख लक्ष्य व्यापार के जरिए गल्फ के देशों पर अपना प्रभुत्व जमाना है. यही उसकी आगे भी पॉलिसी रहेगी. जैसे एक समय में ब्रिटेन था.
जब शीत युद्ध हुआ तो उसमें यूनीपोलर वर्ल्ड बना जिसमें सिर्फअमेरिका ही वर्ल्ड पुलिसिंग की जिम्मेदारी निभा रहा था. लेकिन अब फिर से वर्ल्ड पावर बाइपोलर हो गया है जिसमें चीन ने रूस की जगह थोड़ी सी बढ़त ले ली है. लेकिन आप देखेंगे कि हाइब्रिड वॉर फेयर व्यापार में भी तब्दील हो गया है. तो अपनी वित्तीय स्थिति को और बेहतर बनाने के लिए और अपनी आर्थिक शक्ति को दिखाते हुए व्यापार में वो अपना प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश करेगा. चीन रूस का फायदा उठाने के लिए वहां जा रहा है. वो रूस से सस्ते दामों में गैस और तेल खरीदने जा रहा है. सस्ती गेहूं लेगा और रूस को एक पोस्चरिंग सपोर्ट देगा और शांति स्थापित करने की बात भी करेगा कि युद्ध बंद करो. युद्ध का रुक जाना चीन को सूट नहीं करता है. जहां तक रूस का सवाल है वो ऐसा कोई भी काम नहीं करेगा जो भारत के पक्ष में नहीं है. रूस की कोशिश यही रहेगी कि वो चीन से यही कहेगा कि तुम हिंदुस्तान के साथ समझौता करेगा. वर्तमान वैश्विक राजनीतिक परिस्थितियों में कुछ इसी तरह का परिदृश्य दिख रहा है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार हैं. ये आर्टिकल बीजेपी राज्यसभा सांसद और रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल डीपी वत्स से बातचीत पर आधारित है.]