लेह में हो रही G20 की बैठक वैश्विक बिरादरी के लिए बड़ा संदेश, भारत बदल रहा है विदेश और घरेलू नीति के बारे में धारणाएं
लेह में 30 से अधिक देशों के 100 से अधिक प्रतिनिधि जी20 की बैठक में हिस्सा लेने पहुंचे हैं. लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाने के बाद ये पहला बड़ा अंतरराष्ट्रीय जमावड़ा यहां होने जा रहा है. यहां आए ये सभी प्रतिनिधि Y20 बैठकों में भाग लेने के लिए आए हैं. केंद्र शासित प्रदेश में यह बैठक G-20 के तहत 26-28 अप्रैल, 2023 को हो रही है. भारत ने चीन और पाकिस्तान की तमाम आपत्तियों को दरकिनार कर यह बैठक आयोजित की है. इससे पहले इसी स्तर के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन अरुणाचल प्रदेश में भी हो चुके हैं और मई में कश्मीर में जी-20 की आगामी बैठक प्रस्तावित है.
कश्मीर के बदले हालात से मिलती है खुशी
कश्मीर को जिस तरह हमने 'कांस्टीट्यूशनली अनटचेबल' बना कर रखा था, इस सरकार ने उस स्थिति को बदला है, इसके लिए सबसे पहले बधाई. फेडरल स्ट्रक्चर की हम बात करते हैं, जिसमें कश्मीर से कन्याकुमारी तक नागरिकों को समान अधिकार मिलने की बात थी, लेकिन कश्मीर को संवैधानिक तौर पर ही अलग रखा गया था. यह जो बदलाव हुआ है, यह विषय वैश्विक राजनीति के लिए भी अहम है. कश्मीर एक बॉर्डर स्टेट है. हमारे एक तरफ चीन है, एक तरफ पाकिस्तान. अब हमने जब कश्मीर को हर तरह से सुरक्षित कर विश्व-पटल पर पेश करने का सोचा है, तो यह निश्चय ही एक सुखद बदलाव है. हम जानते हैं कि 200 वर्षों के बाद जब अंग्रेज हमारे देश से गए तो उन्होंने हरेक सीमाई इलाके में ऐसे डिस्टप्यूट छोड़ दिए और हम अकेले भी नहीं है. विश्व के हरेक देश में बॉर्डर-डिस्प्यूट हैं. वर्तमान केंद्र सरकार विदेशनीति के संदर्भ में अगर देखें तो जिस तरह से इसको रिजॉल्व कर रही है, वह काबिलेतारीफ है.
हम जब यह जानते हैं कि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है, पूरा देश एक है चाहे वह दिल्ली हो या लेह-लद्दाख हो तो जी-20 की बैठक को भी इसी नजरिए से देखना चाहिए. हमारी विदेश नीति 2014 से पहले डिफेंसिव थी, लेकिन आज जो हमारी नीति है, वह अटैकिंग, अग्रेसिव और असर्टिव है. विश्व के सामने हम अपनी राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक समझ और नजरिए को पूरी ताकत से पेश कर रहे हैं. उसी को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने लेह में यह बैठक रखी है, ताकि पूरे विश्व का ध्यान उस पर रहे. यहां तक कि यूएन में भी इस पर बात उठाई गई थी. जैसा कि पहले भी मैंने कहा है, एक फेडरल स्ट्रक्चर होने के नाते हम देश के किसी भी कोने में कोई भी कार्यक्रम कर सकते हैं.
वैश्विक अर्थव्यवस्था का 80 फीसदी इन्हीं देशों से
विदेश नीति में परसेप्शन यानी धारणा और मैसेजिंग यानी संदेश का बड़ा महत्व है. भारत का जो पिछले 70 साल से परसेप्श्न बना हुआ था, उसे अभी की सरकार बड़ी खूबसूरती से बदल रही है. यह सरकार दिखा रही है कि भारत अपनी सुरक्षा और संप्रभुता के लिए किस हद तक जा सकती है? हम जब भी किसी देश की विदेशनीति या घरेलू नीति को देखते हैं तो हमारा पहला काम इतिहास को देखना होगा. हम जानते हैं कि दुनिया में 'एंग्लोफोनिक' और 'फ्रैंकोफोनिक' दो ही कॉलोनियल पावर थीं. इसमें एंग्लोफोनिक ताकतों ने जब डी-कॉलोनाइज किया तो हरेक जगह उन्होंने बॉर्डर डिस्प्यूट छोड़ा, सिविल वॉर की स्थितियां छोड़ीं, ताकि बाद में भी वो दखल दे सकें. आप यह भी याद रखें कि जब 1700 ईस्वी में अंग्रेज यहां आए तो वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारा योगदान 32 फीसदी था, जब ये हमेंं छोडकर गए तो हमारा योगदान मात्र 3.2 फीसदी था.
आज का विश्व अर्थव्यवस्था का है. हम आज दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ चुके हैं. राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास के दो घोड़ों पर सवार होकर भारत अब अपनी विदेशनीति को कस रहा है. यह तभी संभव है जब ये दोनों ही धुरियां सलामत रहें. अभी भारत जो कुछ भी कर रहा है, वह भविष्य को ध्यान में रखकर. जैसे, आप देखेंगे कि 2047 की बात हो रही है. जहां तक पुंछ में हुए हमले की बात है. हमें यह मानकर चलना होगा कि पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों के रहते हमें हमेशा सावधान रहना पड़ेगा. पाकिस्तान एक फेल्ड स्टेट है और कश्मीर उनकी घरेलू राजनीति का बड़ा हिस्सा है. आज की सरकार के बारे में हमें इतना तो मानना ही होगा कि भारत अब धमकियों-धौंस में नहीं आता. आपने देखा होगा इससे पहले भी कि उरी अटैक हो या पुलवामा या फिर अरुणाचल प्रदेश में जिस तरह भारतीय सेना ने चीनियों को पीछे धकेला, तो यह सरकार चीजों को बिल्कुल हल्के में तो नहीं लेगी.
भारत से लगाए है विश्व बिरादरी अपनी आस
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब भारत सबको डिक्टेट कर रहा है. आप रूस को देखिए, युक्रेन मुद्दा देखिए, यूरोपियन यूनियन देख लीजिए, सभी भारत की ओर देख रहे हैं. भारत की नीतियों का अध्ययन कर रहे हैं, क्योंकि सभी को कहीं न कहीं भारत से उम्मीद है. यह भारत का गोल्डन एरा है. हमारी विदेशनीति हो या घरेलू नीति. दूसरी तरफ यह भी देखिए कि हमारे यहां किसी तरह की तानाशाही नहीं है. लोग चीन से तुलना करते हैं, लेकिन चीन में पॉलिटिकल सिस्टम कहां है? भारत में तो मल्टी-पार्टी सिस्टम है और हम हरेक पांच साल बाद चुनाव में जाते हैं. फिर भी, इतनी शांति से यहां सब कुछ निबट जाता है. हम 70 साल से अपनी यात्रा पर हैं, हमारे साथ जितने देश स्वतंत्र हुए, जरा देखिए कि वे कहां हैं, उनकी क्या हालत है. अपने पड़ोसी पाकिस्तान को ही देखिए.
यह पुंछ का हमला बस दुनिया को दिखाने के लिए है, ताकि दुनिया का ध्यान यह कहकर बंटाया जा सके कि भारत में, कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद भी सब कुछ ठीक नहीं है. दुनिया का फोकस चूंकि भारत पर सबसे अधिक है. कश्मीर का मुद्दा हमारा घरेलू मुद्दा था, लेकिन उसका जिस तरह अंतरराष्ट्रीयकरण किया गया, उससे कई देशों के स्टेक वहां लग गए थे. चीन का तो आप जानते हैं, अक्साई चिन से लेकर पीओके तक, पाकिस्तान तो हजारों साल तक लड़ने की धमकी दे चुका है. हालांकि, अब जिस तरह से उस मुद्दे को हैंडल किया जा रहा है, वह बिल्कुल ठीक तरीका है, ऐसा मुझे लगता है.
जी-20 में केवल भारत का स्टेक नहीं है. विश्व की 80 फीसदी अर्थव्यवस्था का लेन-देन तो जी-20 के तहत ही होता है. पाकिस्तान के भी विदेश मंत्री आ रहे हैं तो यह स्वागत योग्य ही है. यह हमारा इंटरनल फोरम तो है नहीं. वह भी अपनी बात कहें लेकिन भारत अपनी सुरक्षा को लेकर सजग-सतर्क रहे. उनको इसका फायदा न उठाने दे. वैश्वीकरण या ग्लोबलाइजेशन के बाद हम बहुत तेजी से उसे अडॉप्ट करने के तौर पर बढ़े हैं. हमारे सामने यूएसएसआर का उदाहरण है, जो कॉलैप्स हो गया. भारत के ऊपर भी हमले इसलिए हो रहे हैं क्योंकि भारत अपनी लेगेसी को रीक्लेम कर रहा है. हमारे सामने चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन हम सही राह पर बढ़ रहे हैं, ये अच्छी बात है.
(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)