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Raj Ki Baat: 100 करोड़ कोरोना टीका और पीएम मोदी की रणनीति

Raj Ki Baat: कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश ने मौत का तांडव देखा था. दवा, आक्सीजन की कमी, पर्याप्त टीके न होने से इस महामारी से लड़ने की कमजोरी को सहा था. अपनों को जाते देखा, बिन दवा और अस्पतालों में बिना बेड लोगों को तड़प-तड़प कर आंखों के सामने जान देते देखा. श्मसान और कब्रिस्तान तक में अपनों को अंतिम विदाई देने के लिए भी सबसे दर्दनाक इंतजार को भी बर्दाश्त किया. मगर अब उलाहनों या शिकायतों से उबर कर एक नया भारत उभरा, जिसने 100 करोड़ टीके लगाने का विश्वकीर्तिमान बनाया. ये आंकड़ें तो आपके सामने हैं, लेकिन इस असंभव से आंकड़े पर इतनी जल्दी पहुंच पाने के पीछे का राज क्या आप जानते हैं? इस राज के साथ ही आपको ये भी बताएंगे कि कैसे हर माह भारत ही सिर्फ 40 करोड़ डोज निर्माण में न सिर्फ सक्षम हो रहा है, बल्कि दुनिया को सबसे ज्यादा वैक्सीन भी हमारी सरजमीं से ही निर्यात की जाएगी.

कोरोना की पहली लहर से जिस तरह भारत लॉकडाउन कर निपटा, उससे पूरी दुनिया में देश की धाक जमी. मगर दूसरी लहर में जिस तरह से हर मोर्चे पर बेबसी का आलम छाया, उसके बाद सियासत के आरोप-प्रत्यारोप की तो जाने दें, लेकिन भारतवासियों का भरोसा भी हिला. मगर जो भारत की सबसे बड़ी ताकत है कि संकट की घड़ियों में आत्मबल बढ़ाकर संगठित होकर और ज्यादा मजबूती से उभरना. अपनी इस इच्छाशक्ति के बूते भारत दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से टीकाकरण कर इस बीमारी से लड़ने में विश्वपटल पर सशक्त हस्ताक्षर के रूप में चमक रहा है.

वैज्ञानिकों, स्वास्थ्यकर्मियों से लेकर हर अंग ने अपना सर्वस्व दिया, लेकिन राज की बात ये है कि अगर सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान व्यवस्थागत कमियों को न दुरुस्त किया होता तो इतना बड़ा अभियान परवान चढ़ना नामुमकिन था. इस कड़ी में राज की बात ये है कि पीएम मोदी का ट्रंपकार्ड साबित हुए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडवाडिया. डॉ. हर्षवर्धन की सुस्त और आत्ममुग्ध कार्यसंस्कृति को बदला तो तस्वीर भी बदल गई. राज की बात ये भी कि हर्षवर्धन की विदाई तो उनके निस्तेज प्रदर्शन के लिए हुई ही, लेकिन उस दौरान जिस तरह से मांडविया दवाओं की कमी से जूझने के लिए अपने स्तर पर जो प्रयास कर रहे थे, उससे उन्हें दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान वाले मंत्रालय की जिम्मेदारी भी पीएम मोदी ने सौंप दी.

राज की बात में इस पूरे घटनाक्रम को समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे ले चलते हैं. कोरोना की पहली लहर में भारत दुनिया के लिए औषधि केंद्र बन गया था. लेकिन जब कोविड की दूसरी लहर आई तो डेल्टा वैरियंट की वजह से केस तेजी से बढ़ने लगे. वैक्सीन उपलब्ध होने के बावजूद लोग लगाने नहीं जा रहे थे. राजनीति हो रही थी कि यह मोदी वैक्सीन है, बीजेपी की वैक्सीन है. सवाल उठ रहे थे- मोदी खुद क्यों नहीं लगाते, लेकिन उन्होंने दूसरी लहर से पहले वैक्सीन लगवाकर संदेश भी दिया. प्रधानमंत्री मोदी के विश्वस्त माने जाने वाले मनसुख भाई मांडविया ने रसायन व उर्वरक राज्य मंत्री के तौर पर दवाई निर्माताओं और वैक्सीन निर्माताओं के प्लांट में जाने का फैसला किया. चार दिन तक वे सभी जगहों पर गए और रात्रि प्रवास कर पूरी स्थिति का जायजा लिया. इसमें उन्होंने कंपनियों से पूछा कि उनकी उत्पादन क्षमता क्या है? कितना कच्चा माल चाहिए और किस तरह की मदद की जरूरत है जिससे दवाईयों और वैक्सीन की उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जाए.

मंडवाडिया की ये सक्रियता उस स्थिति में पीएम की नजर में चढ़ी और 7 जुलाई को मोदी के विश्वस्त मनसुख मांडविया देश के स्वास्थ्य मंत्री बन गए, तभी यह जाहिर हो चुका था कि वैक्सीनेशन को लेकर उनकी दृष्टि क्या है. मांडविया के बारे में धारणा ये बनी और खुद सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने भई माना कि वे मंत्री कम, सीईओ की तरह ज्यादा काम करते हैं. जब अप्रैल में उन्होंने सभी कंपनियों का दौरा किया था तभी उन्होंने वैक्सीनेशन के उत्पादन संबंधी रणनीति बना ली थी.

खास बात ये कि उस वक्त वे पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन की अगुवाई वाली मंत्रिमंडलीय समूह के सदस्य थे. उन्होंने हर गतिविधि को बारीकी से देखा-समझा था और खामियों की भी जानकारी उन्हें हो चुकी थी. ऐसे में स्वास्थ्य मंत्री बनते ही मांडविया ने वैक्सीनेशन की रफ्तार में आने वाली खामियों को दूर करने पर फोकस किया. हर कंपनी के प्रतिनिधियों से रोजाना शाम को बातचीत करना, प्रोडक्शन की जानकारी लेना, वैक्सीन के कंपनी से लेकर टीकाकरण स्थल तक पहुंचने की गतिविधियों को ट्रैक करना, उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है.

एक राज की बात और कि 100 करोड़ का आंकड़ा 14 अक्टूबर को ही भारत छू लेता. लेकिन नवरात्रि के त्योहार के वजह से लोगों का उपवास होता है और खाली पेट वैक्सीन नहीं लगती है. ऐसे में इस दौरान इसकी रफ्तार में कमी आई. लेकिन 21 अक्टूबर को भारत ने वैक्सीन की शतकीय यात्रा पूरी कर ली है तो उसके पीछे एक मुकम्मल रणनीति थी, जिसे साकार करने में केंद्र सरकार ने महत्ती भूमिका निभाई.

दरअसल, अब  भारत सरकार को हर दिन यह मालूम है कि उसे आने वाले किस महीने में कितना वैक्सीन डोज किस कंपनी से मिलने वाला है. इस प्रक्रिया का नतीजा यह निकला कि सितंबर महीने में हमें 25 करोड़  डोज मिले. अक्टूबर में 29 करोड़ डोज मिले हैं जिसमें से 22 करोड़ डोज सीरम और 6 करोड़ डोज भारत बायोटेक और 1 करोड़ डोज जायडिस कैडिला दे रही है. यानी देश प्रतिदिन 1 करोड़ डोज लोगों को लगा पाने में सक्षम है. मतलब ये कि दीपावली जैसे त्योहारों के बाद दिसंबर में भारत को हर माह  40 करोड़ डोज मिलने वाले हैं.

राज की बात ये कि आने वाले दिनों में भारत टीका निर्यात का बहुत बड़ा केन्द्र बनेगा. और जब भारत टीका निर्यात के बाजार में आएगा तो दुनिया में टीका का बाजार टूट जाएगा क्योंकि यहां के वैक्सीन की कीमत ढाई डॉलर है जबकि विदेशी वैक्सीन 10-15 डॉलर वाले हैं. भारत नवंबर, दिसंबर में ज्यादा निर्यात करने वाला देश होगा.  मतलब, अपनी जान भी बचाएंगे, दुनिया की भी और विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ाएंगे. 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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